वास्तु कला का बेजोड़ नमूना ळे विद्याशंकर मंदिर


क्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित श्रृंगेरी, जिसे ‘श्री क्षेत्रा’ भी कहा जाता है, में श्री आदिशंकराचार्य के बाद उनके शिष्य सुरेशाचार्य इस मठ के पहले प्रमुख थे। यह एक परंपरागत मठ जो श्री आदिशंकराचार्य के समय से चला आ रहा है। इसी मठ परंपरा से आने वाले और अपने समय के सबसे प्रसिद्ध महर्षि विद्यारण्य की समाधि के ऊपर उनके परम शिष्यों और विजयनगर साम्राज्य परंपरा के दो हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने मंदिर का निर्माण करवाया था, इस मंदिर का नाम है ‘विद्याशंकर मंदिर’। इस मंदिर की विशेषता है कि इसमें 12 ऐसे स्तंभ हैं जिस पर विशेष शौर्य चिन्ह बने हैं। हर सुबह जब सूरज की किरणें इन शौर्य चिन्हों पर पड़ती हैं तो वे वर्ष के उसी विशेष महीनों का संकेत देने वाले एक विशेष स्तंभ से टकराती हैं।
महर्षि विद्याशंकर कर्नाटक में ही नहीं बल्कि संपूर्ण दक्षिण भारत में एक महान व्यक्तित्व रहे हैं, उनके काल में दक्षिण में मुस्लिम आक्रमणों की शुरुआत देखी। विद्यारण्य के विषय में यह माना जाता है कि हरिहर और बुक्का ने अपने गुरु विद्यातीर्थ की समाधि के ऊपर एक मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को विद्याशंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित शारदाम्बा की चंदन की एक टूटी हुई मूर्ति भी है, जिसे स्वयं आदि शंकर ने स्थापित किया था। यह मूर्ति मुस्लिम आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त हो गई थी।
यहां अन्य पांच मंदिर हैं, जिनमें मुख्य मंदिर में श्री विद्याशंकर की समाधि के ऊपर एक शिव लिंग है जो विद्याशंकर लिंग के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं।

नाम की उत्पत्ति
श्रृंगेरी नगर का यह नाम पास ही में स्थित ऋंगी ऋषि के जन्म स्थान ‘ऋंगी गिरी’ से लिया गया है, जो पास की एक पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर ऋंगी ऋषि के पिता ऋषि विभांडक का आश्रम आज भी मौजूद है इसीलिए कहा जाता है कि श्री आदि शंकराचार्य ने अपने शिष्यों को रहने और पढ़ाने के लिए जगह के रूप में चुना था।

श्रृंगेरी में मंदिर –
श्रृंगेरी कई ऐतिहासिक मंदिरों का क्षेत्रा है। इनमें से श्री शारदम्बा मंदिर, श्री विद्याशंकर मंदिर और श्री मालाहनिकेरेश्वर मंदिर सबसे प्रमुख हैं।

श्री शारदम्बा मंदिर –
श्रृंगेरी के पीठासीन देवता, श्री शारदा के प्राचीन मंदिर का एक गौरवशाली इतिहास है, जिसकी शुरुआत श्री आदि शंकराचार्य द्वारा दक्षिणमनय पीठम् की स्थापना से होती है। मूल रूप से यह श्री चक्र पर स्थापित चंदन से बनी शारदा की मूर्ति के साथ एक सरल मंदिर था जिसे श्री आदि शंकर ने एक चट्टान पर उकेरा था।
श्री शारदम्बा मंदिर के अलावा, निम्नलिखित मंदिर मंदिर परिसर के भीतर हैं –
विद्याशंकर मंदिर, श्री थोराना गणपति, श्री आदि शंकराचार्य, श्री शक्ति गणपति, श्री कोडंदरामास्वामी, श्री मलयाला ब्रह्मा, श्री सुरेश्वराचार्य, श्री वागेश्वरी विद्यारण्य, श्री जनार्दनस्वामी, श्री अंजनेय, श्री गरुड़, श्री बालसुब्रमण्यस्वामी मौजूद हैं।

ऋंगेरी के प्रमुख विद्याशंकर मंदिर का निर्माण 1338 ईस्वी में श्री विद्याशंकर की स्मृति में हरिहर और बुक्का के संरक्षक संत श्री विद्यारण्य द्वारा विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करने वाले भाइयों द्वारा किया गया था। मंदिर में स्थित शिलालेख पर कई विजयनगर सम्राटों द्वारा किए गए योगदान के रिकाॅर्ड हैं। यह मंदिर होयसल (चालुक्य) और विजयनगर (द्रविड़) स्थापत्य कला का बेहतर उदाहरण कहा जााता है।
विद्याशंकर मंदिर के अलावा यहां अन्य कई मंदिर हैं जिनमें से कुछ प्रमुख मंदिर इस प्रकार हैं।

श्री मलहनीकारेश्वर मंदिर –
मलहनीकारेश्वर का अर्थ है आत्मा की अशुद्धियों का नाश करने वाला। यह मंदिर श्रृंगेरी शहर के केंद्र में एक छोटी पहाड़ी के ऊपर स्थित है। मंदिर की संरचना पत्थर में वास्तु कला का एक अच्छा नमूना है जिसमें नवरंग अंतराला और गर्भगृह शामिल हैं। छत पर कमल की कली की नक्काशी है। कहा जाता है कि ऋषि कश्यप के पुत्रा ऋषि विभांडक ने लिंग की पूजा की थी। कई वर्षों की तपस्या के बाद विभांडक ने भग्वान के दर्शन किए और लिंग में विलीन हो गए।
मंदिर के बाहर मीनाक्षी सच्चिदानंदेश्वर, क्षेत्रा पालका और बिंदु माधव के छोटे-छोटे मंदिर हैं। महाशिवरात्रि पर, जगदगुरु भगवान की विशेष पूजा करते हैं। कार्तिक
पूर्णिमा के दिन, दीपोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

संरक्षक देवताओं के मंदिर –
श्री आदि शंकराचार्य ने श्रृंगेरी की चारों दिशाओं में जिन संरक्षक देवताओं की स्थापना की थी उनमें पूर्व में काल भैरव मंदिर, पश्चिम में केरे अंजनेय मंदिर, उत्तर में कलिकंबा मंदिर और दक्षिण में दुर्गम्बा मंदिर हैं।

श्री पाश्र्वनाथ स्वामी बसदी –
श्री पाश्र्वनाथ बसदी (दिगंबर जैन मंदिर) श्रृंगेरी टाउन के केंद्र में स्थित है। यह बसदी मारी शेट्टी की याद में बनाई गई थी, जिसका मूल बेलूर के पास निदुगेडु गंाव के विजय नगर शांति शेट्टी से मिलता है। इसके निर्माण का समय लगभग 1150 ई. का माना जाता है। मुख्य मंदिर 50 फीट लंबा और 30 फीट चैड़ा है।
श्री पाश्र्वनाथ बसदी मंदिर के गर्भग्ृाह में काले पत्थर से बने पीठासीन देवता श्री पाश्र्वनाथ स्वामी की मूर्ति है। यह एक फुट ऊंचा है और इसके आधार पर श्रीमथपरिसनाथाय नमः शब्द अंकित हैं। इसकी खासियत यह है कि यहां कोबरा का एक जोड़ा आपस में एक छतरी की तरह अपने सात फनों को पकड़ कर रखता है इसलिए इस देवता को जोड़ी पाश्र्वनाथ स्वामी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा काले पत्थर से बनी सुखानासी में देवी पद्मावती की मूर्ति भी है। यह लगभग नौ इंच ऊंची है।

श्री चतुरमूर्ति विद्योश्वर मंदिर, विद्यारण्यपुरा –
श्रृंगेरी में विद्यारण्यपुरा अग्रहारा नामक एक छोटा सा गांव है। जहां श्री चतुरमूर्ति विद्योश्वर नामक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में विष्णु और शिव की चार मूर्तियों को मिलाकर एक मूर्ति है। इस गांव में श्रृंगेरी में मंदिरों के कई पुजारी भी रहते हैं।

श्री ऋंगेेश्वर मंदिर, किग्गास –
श्रृंगेरी के पास ही में एक छोटा सा गाँव है किग्ग। इस गांव में श्री ऋष्यश्रुंगेश्वर मंदिर तुंग की सहायक नंदिनी नदी के तट पर स्थित है। विजय नगर काल के दौरान निर्मित मंदिर में एक अद्वितीय आकार का लिंग है, जिसमें सींगों के समान तीन उभार हैं। मंदिर के सामने नंदी की एक बड़ी मूर्ति है। कहा जाता है कि ऋषि श्रृंगी ने यहां तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि लिंग की पूजा से 12 योजन (100 मील) की दूरी तक भूमि में अकाल टल जाता है।

सिरीमाने फाॅल्स –
श्रृंगेरी से करीब 12 किमी की दूरी पर ‘सिरीमाने फाॅल्स’ स्थित है जहां पर्यटकों की भीड़ हमेशा लगी रहती है।

श्री शारदा लक्ष्मीनरसिंह पीठम् –
श्रृंगेरी से लगभग 20 किमी दूर है हरिहरिपुरा, जहां श्री शारदा लक्ष्मीनरसिंह पीठ की स्थापना श्री आदि शंकराचार्य ने तुंग नदी के तट पर की थी। यहां के जंगल, सुपारी के खेतों और छोटी पहाड़ियों से घिरे चावल के खेतों के बीच यह स्थान
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संकलन – श्यामभवी अग्रवाल