हमारी पृथ्वी का एक मात्रा प्राकृतिक उपग्रह है चंद्रमा। यह सौर मंडल का पाँचवां, सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है। इसका आकार क्रिकेट बॉल की तरह गोल है और यह खुद से नहीं चमकता बल्कि यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी 384000 किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है। चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1/6 है। यह पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन 6 घंटे में पूरा करता है और अपने अक्ष के चारों ओर एक पूरा चक्कर भी 27.3 दिन में लगाता है। यही कारण है कि चन्द्रमा का एक ही हिस्सा या फेस हमेशा पृथ्वी की ओर होता है। यदि चन्द्रमा पर खड़े होकर पृथ्वी को देखें तो पृथ्वी साफ-साफ अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई नजर आएगी लेकिन आसमान में उसकी स्थिति सदा स्थिर बनी रहेगी अर्थात पृथ्वी को कई वर्षों तक निहारते रहो किंतु वह अपनी जगह से टस से मस नहंीं होगी। पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य ज्यामिति यानी त्रिभुजाकार अकृति बनाते हुए होने के कारण “चन्द्र दशा“ हर 29.5 दिनों में बदलती है। आकार के हिसाब से अपने स्वामी ग्रह के सापेक्ष यह सौरमंडल में सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी का एक चौथाई तथा द्रव्यमान 1/81 है। बृहस्पति के उपग्रह के बाद चन्द्रमा दूसरा सबसे अधिक घनत्व वाला उपग्रह है। सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार चन्द्रमा है। समुद्री ज्वार और भाटा चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण आते हैं। चन्द्रमा की तात्कालिक कक्षीय दूरी पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है इसीलिए आसमान में सूर्य और चन्द्रमा का आकार हमेशा समान नजर आता है। पृथ्वी से चंद्रमा का लगभग 59 प्रतिशत भाग दिखता है। जब चन्द्रमा अपनी कक्षा में घूमता हुआ सूर्य और पृथ्वी के बीच से होकर गुजरता है और सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है तो उसे सूर्यग्रहण कहते हैं।
चन्द्रमा का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समंुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है। इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है। पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है।
चंद्रमा के प्रभाव से समुद्र की लहरें एक निश्चित समय के अंतराल में ऊपर उठती है और नीचे गिरती हैं, जब समुद्री जल की लहरें ऊपर उठती हैं तो उसे ज्वार तथा जब नीचे जाती हैं उसे भाटा कहते हैं। यह प्रक्रिया 24 घंटे में 12 घंटे के अंतर में नहीं होती बल्कि 12 घंटे 26 मिनट के अंतराल में होती है। ज्वार उत्पन्न होने में 26 मिनट का यह अंतर पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण होता है क्योंकि चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का समुद्री जल पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है इसलिए पृथ्वी का वह हिस्सा जो चंद्रमा के सबसे करीब होता है उस स्थान पर तीव्र ज्वार आता है इसीलिए पूर्णिमा के दिन ज्वार ज्यादा होता है। ज्वार पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण बल के कारण उत्पन्न होता है और भिन्न-भिन्न प्रकार का ज्वार भाटा (टाइड्स), उत्पन्न करता है।
द हाई टाइड्स – अमावस्या और
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं। इन तीनों के मिले-जुले प्रभाव से टाइड्स में बढ़ोत्तरी होती है, जिस कारण इसे दीर्घ ज्वार या हाई टाइड्स कहते हैं।
द लो टाइड्स – जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के सेंटर पर समकोण बनाते हैं, जिस कारण सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के पानी को अलग-अलग डायरेक्शन में आकर्षित करते हैं, जिससे उत्पन्न ज्वार कम ऊंचे होते हैं इसे लघु ज्वार
कहते हैं।
द स्ंिप्रग टाइड्स – जिस स्थान पर दिन में ज्वार-भाटा सिर्फ एक बार आता है उसे स्ंिप्रग टाइड कहते हैं। यह डेली टाइड्स 24 घंटे 52 मिनट के बाद आता है, यह ज्वार ज्यादातर मेक्सिको की खाड़ी में देखा जाता है।
द नीप टाइड्स – जब समुद्र में दिन में चार बार ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है उसे अर्द्ध दैनिक ज्वार या नीप टाइड्स कहते हैं। इसमें दिन में दो शार्ट टाइड्स और दो हाई टाइड्स उत्पन्न होते हैं।
द कंबाइन टाइड्स – कंबाइन टाइड्स जब समुद्र में दैनिक एवं अर्द्ध दैनिक ज्वार उत्पन्न होते हैं तो उसे मिश्रित ज्वार कहते हैं।
चंद्रमा की चांदनी पीना मुहावरा है और यह संभव भी है। आपकी सेहत के लिए भी यह फायदेमंद है। चांदनी अवशोषित करने वाले पानी को पीने की बात के माध्यम से यह संभव हो जाता है। रात भर चांदनी में रखे पानी को जब हम सुबह पीते हैं तो यह हमारी सेहत और सौंदर्य के लिए कमाल करता है। यह हमारी मेंटल हेल्थ के लिए भी फायदेमंद होता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से प्रमाणित है कि फुल मून आपकी सेहत को प्रभावित करता है। प्राचीन काल से ही यही वजह है कि शरद पूर्णिमा पर जब पूरा चांद होता है तो लोग अकसर खीर बनाकर उसे चांदनी में रखते हैं। इसी प्रकार यही काम पानी भी आपकी सेहत के लिए करता है। पूर्णिमा के दौरान चांद की ऊर्जा बाहर रखे पानी में चली जाती है और जब हम उस पानी को पीते हैं तो अप्रत्यक्ष तौर पर यह ऊर्जा हमको मिलती है।
अध्ययन और अनुभवों के आधार पर “चन्द्र आवेशित, चांदनी अवशोषित जल या मून चार्ज्ड वॉटर (डववद ब्ींतहमक ॅंजमत) चन्द्रमा की रोशनी में एक गिलास पानी रखकर तैयार किया जाता है। पानी चंद्रमा की सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर लेता है, चार्ज हो जाता है। चूंकि, चंद्रमा और पानी का कुछ मौलिक संबंध है। आमतौर पर यह पानी पूर्णिमा के दौरान एकत्रा किया जाता है क्योंकि इस समय चंद्रमा की ऊर्जा अपने चरम पर होती है। हालांकि, हम इसे महीने के किसी भी समय कर सकते हैं, जब चंद्रमा दिखाई दे। केवल ग्रहण के दिन आपको चांद के नीचे पानी नहीं रखना है।
चांद और चांदनी के बहुत सारे लाभ हैं। कई आध्यात्मिक उपचारकर्ता और डॉक्टर मानते हैं कि यह मौलिक ऊर्जा स्रोत हमारे शरीर और दिमाग को कई सकारात्मक तरीकों से प्रभावित करता है। हालांकि, विज्ञान इस सिद्धांत का पूर्णतः समर्थन नहीं करता।
चंद्रमा का पानी सुबह सबसे पहले खाली पेट पीना चाहिए क्योंकि चंद्रमा और पानी दोनों में शांत और सुखदायक गुण होते हैं। यह एक मौलिक संतुलन बनाते हैं जो हार्मोनल असंतुलन पर काबू पाने में मदद कर सकते हैं। चांदनी में रखा पानी पीने से हमारी ऊर्जा पुनर्जीवित और शुद्ध करने में मदद मिलती है। इसका उपयोग आध्यात्मिक उपचार के लिए भी किया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि चंद्रमा में वह ऊर्जा होती है जो स्वीकृति, समर्पण और समभाव जैसे गुणों को बढ़ाती है व
अन्य निम्नलिखित अप्रत्यक्ष लाभ प्रदान करते हैंः-
चंद्रमा चार्ज पानी त्वचा की चमक को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यह चंद्रमा से प्राप्त ऊर्जा के कारण होता है। चांद की रोशनी पानी को इस तरह से सक्रिय करती है कि यह आपकी त्वचा को साफ करने में मदद करती है।
मानसिक स्वास्थ्य चंद्र घटना से जुड़ा है, एक अध्ययन के अनुसार, खासकर यदि आप बाइपोलर मुद्दों (ठपचवसंत प्ेेनम) से निपट रहे हैं। कहा जाता है कि ऐसा चांद से चांदनी के शांत करने वाले गुणों और पानी में मौजूद ऊर्जा के कारण होता है।
अपने घर और वातावरण को ऊर्जावान बनाने के लिए अपने सफाई वाले पानी या फिनाइल आदि में चांद का कुछ पानी मिलाना चाहिए।
घरेलू पौधों को भी ऊर्जा की जरूरत होती है। अपने पौधों को चांद के पानी से सींचें। कुछ चम्मच मून चार्ज्ड वॉटर भी काम करेगा न कि पूरा का पूरा चार्जड वॉटर से सिंचाई।
चंद्रमा की व्याख्या यदि चंद शब्दों में की जाये तो कहा जा सकता है और निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि चंद्रमा मानव जीवन पर, पृथ्वी के चर-अचर जीवों पर, पृथ्वी के प्रत्येक द्रव्य रूपी पदार्थों पर, वनस्पतियों पर ज्वलंत प्रभाव रखकर जीवन प्रदाता के रूप में हमें स्वस्थ रखने के रूप में अद्वितीय रूप से अत्यंत सहायक होता है। द
- सम्पदा जैन
चंद्रमा का प्रभाव – प्रचलन में धारणाएं
- चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी पर इतना शक्शिाली होता है कि दुनिया भर में भूकम्प या तो पूर्णिमा, अमावस्या या किसी ग्रहण पर ही आते हैं। फिर भी लोग कहते हैं कि चन्द्रमा का हमारे मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है। चन्द्रमा मन को प्रभावित करता है और उन सभी अवयवों को प्रभावित करता है जो द्रव (स्पुनपक) के रूप में हों।
- चन्द्रमा ही कारक है, प्राकृतिक आपदाओं का। इसी हेतु प्रलयंकारी और प्रलय के अधिष्ठात्रा भगवान शंकर चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करते हैं।
- चूँकि, चन्द्रमा को शाप एक बार गणेश जी ने भी दिया था और चन्द्रमा उनसे डरते हैं, उसी हेतु ज्वालामुखी के मुख पर श्री गणेश को बिठाकर उनकी आराधना की जाती है कि यह चन्द्रमा द्वारा ज्वालामुखी के क्रियाशील होने को बाधित करेंगे, आज भी इंडोनेशिया में गणेश जी की मूर्ति ज्वालामुखी के मुहाने पर पूजनीय है।
- चंद्रमा के प्रभाव को देखते हुए पूर्णिमा और अमावस्या पर विशेष प्रकार के नियम और सिद्धांत बनाये गए। दशमी आते ही व्रत उपवास के नियम शुरू हो जाते हैं। एकादशी, द्वादशी, त्रायोदशी, चतुर्दशी तक विभिन्न प्रकार के नियम कानून बनाये गए जिससे मनुष्य स्वस्थ रह सके।
- चन्द्रमा की किरणें समुद्र में ज्वार-भाटा का कारण तो बनती ही हैं। पृथ्वी के अंदर उपस्थित द्रव रूप में जो कुछ भी है- चाहे लोहा, तांबा या कोई भी धातु के साथ-साथ पत्थरों के लावा या मैग्मा तक का संचालन चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के द्वारा होता है।
- चन्द्रमा अगर न हो तो पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा क्योंकि पृथ्वी की समस्त औषधियाँ और वनस्पतियाँ इसी से पुष्ट होती हैं। कोई भी साधना या विशेष अनुष्ठान करने के लिए भी अमावस्या, पूर्णिमा या ग्रहण काल उचित बताया
गया है। - चन्द्रमा इतना प्रभावित करता है कि यह व्यक्ति को महान बुद्धिमान भी बना सकता है और यह जीव को पागलपन की स्थिति में भी ला सकता है इसीलिए पागल व्यक्तियों को स्नदंजपब बोला जाता है। स्नदंत का अर्थ चन्द्रमा से है। पागलखाने को भी स्नदंजपब ।ेलसनउ बोला जाता है क्योंकि हमारे यहाँ से ही ज्ञान प्राप्त कर ॅमेजमतद ने यह नाम दिया। ऋषि दुर्वासा के प्रभाव से जब राजा दुष्यंत शकुंतला को भूल जाते हैं तो ऋषि कण्व उन्हें चन्द्रमा की आराधना करने को कहते हैं।
- चंद्रमा के अधिक सक्रिय और प्रभावी होने के कारण हमारे शास्त्रों में अमावस्या, पूर्णिमा के दिन स्त्राी से सहवास को वर्जित बताया गया है। इस दिन गर्भाधान करने वाले बच्चे या तो अपंग या मंदबुद्धि पैदा होते हैं।
- चन्द्रमा को ऐरा-गैरा न मानें। इसका प्रभाव इस पृथ्वी के समस्त जीव चाहे वह चर हो या अचर हो, सब पर होता है।
अमृत वर्षा के लिए जानी जाती है शरद पूर्णिमा
षरद पूर्णिमा ही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। आमतौर पर हम सुनते हैं ंकि चंद्रमा में सोलह कलाएं होती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का स्वामी कहा गया है तो राम को बारह कलाओं का। दोनों ही पूर्णावतार हैं। इसकी अलग-अलग व्याख्या मिलंी है।
कुछ की राय में भगवान राम सूर्यवंशी थे तो उनमें बारह कलाएं थीं। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे तो उनमें सोलह कलाएं थीं। वर्षभर में शरद पूर्णिमा के ही दिन चांद सोलह कलाओं का होता है। इस रात चांद की छटा अलग ही होती है जो पूरे वर्ष कभी दिखाई नहीं देती। चांद को लेकर जितनी भी उपमाएं दी जाती हैं, वह सभी शरद पूर्णिमा पर केंद्रित हैं। चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं जिन्हें चन्द्रमा की सोलह कलाओं के नाम से जाना जाता है, जो निम्न हैं:
- अमृत 02. मनदा (विचार)
- पुष्प (सौंदर्य) 04. पुष्टि (स्वस्थता)
- तुष्टि(इच्छापूर्ति) 06. ध्रुति (विद्या)
- शाशनी (तेज) 08. चंद्रिका (शांति)
- कांति (कीर्ति) 10. ज्योत्सना (प्रकाश),
- श्री (धन) 12. प्रीति (प्रेम)
- अंगदा (स्थायित्व) 14. पूर्ण (पूर्णता
अर्थात कर्मशीलता) - पूर्णामृत (सुख) 16. मन
मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन ही चंद्रमा है। चंद्रमा जैसे घटता-बढ़ता रहता है। मन की स्थिति भी यही होती है। मनुष्य में सामान्य रूप से सिर्फ पांच से आठ कलाएं होती हैं। - पाक कला 02. कला
- साहित्य कला 04. संगीत कला
- शिल्प कला 06. सौंदर्य कला
- शस्त्रा और शास्त्रा कला।
इनके विभिन्न रूप होते हैं। पांच कलाओं से कम पर पशु योनि बनती हैं। ईश्वरीय अवतार बारह से सोलह कलाओं के स्वामी होते हैं। हमारी सृष्टि और समष्टि सूर्य और चंद्रमा पर केंद्रित होती है। सूर्य हमारी ऊर्जा की शक्ति है तो चंद्रमा हमारे सौंदर्यबोध, हमारे विचार और मन का स्वामी है। चंद्रमा चूंकि पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है इसलिए उसका प्रभाव हमारे जीवन और मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। सोलह कलाओं का स्वामी होने से शरद पूर्णिमा परम सौभाग्यशाली मानी
जाती है।