विश्व तरक्की की तरफ बढ़ रहा है। प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन एवं प्रकृति से छेड़छाड़ मनुष्य की प्रवृत्ति में शामिल हो चुका है। वैज्ञानिक अपने स्तर से प्रकृति का दोहन करते हुए उसे हराने के प्रयास में लगे हुए हैं जबकि उसे अच्छी तरह पता है कि प्रकृति सब कुछ है और वही हर स्तर से हावी भी है। आज विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है, उसके बावजूद वह भूकंप, बाढ़, तूफान, अत्यधिक बर्फबारी, सूखा एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी कर पाने में सफल नहीं हो पा रहा है। प्रकृति ने जब पूरी दुनिया में इंसान को दिमाग रूपी कंप्यूटर और शरीर रूपी मशीन दी है तो उसका उपयोग करने की बजाय मानव कृत्रिम कंप्यूटर व कृत्रिम मशीनों पर निर्भर होता जा रहा है। समयानुकूल प्राकृतिक खेती करने की बजाय अप्राकृतिक सब्जियों एवं फसलों के उत्पादन में लगा है। अप्राकृतिक तौर-तरीकों से खेती-बारी करने से भिन्न-भिन्न बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। प्रकृति को हराने का जो हमारा प्रयास है उसी से नयी-नयी बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि प्रकृति से बेवजह छेड़छाड़ के कारण तमाम तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। मनुष्य की जगह यदि रोबोट काम करने लगे तो क्या होगा? मनुष्य के दिमाग रूपी कंप्यूटर की जगह यदि कृत्रिम कंप्यूटर काम करने लगे तो क्या होगा? इसी संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार जिसको कि 43 देशों के सर्वे के आधार पर तैयार किया गया है, उससे बेरोजगारी की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। दुनिया के तमाम देशों में विभिन्न क्षेत्रों में रोबोट के इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण लगभग सभी देश चिंता में हैं। पूंजीवादी मानसिकता के चलते लगभग विश्व की कंपनियों के 90 प्रतिशत मालिक रोबोट के इस्तेमाल की उपयोगिता पर दृष्टि डाले हुए हैं जो कि भविष्य में काफी घातक साबित हो सकता है।
यदि भारत की बात की जाये तो रोबोट से भारतीयों की नौकरियों पर सर्वाधिक खतरा है। अंतर्राष्ट्रीय मानव संसाधन कंपनी मैन पावर ग्रुप ने दुनिया के 43 देशों में अध्ययन के आधार पर यह सर्वे जारी किया है। इस सर्वे के मुताबिक भविष्य में रोबोट कर्मियांे की वजह से भारत में 20 फीसद से ज्यादा लोगों की नौकरी खतरे में होगी। इस सर्वे में दुनिया भर के 18 हजार कंपनियों के मालिकों को शामिल किया गया जिसमें से 90 प्रतिशत मालिक रोबोट रखने पर सहमत हैं।
रोबोट से कर्मियों की संख्या पर क्या असर पड़ेगा? इस संबंध में सर्वे के माध्यम से पता चला है कि 64 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कोई फर्क नहीं पड़ेगा जबकि 5 प्रतिशत लोग असंमजस की स्थिति में हैं। 12 प्रतिशत लोगों का मानना है कि रोबोट कर्मियों के इस्तेमाल के बाद कर्मचारियों की संख्या घटेगी और 19 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कर्मियों की संख्या बढ़ेगी। ये आंकड़े अगले दो साल के लिए अनुमानित हैं। भारत में स्थिति भयावह एवं चिंताजनक इसलिए होगी कि यहां कुशल कामगारों की संख्या निहायत ही कम है।
सर्वे के माध्यम से सामने आया है कि भारत में कुशल कामगारों की संख्या मात्रा 2.3 प्रतिशत है, जबकि दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत, जापान में 80 प्रतिशत एवं जर्मनी में कुशल कामगारों की संख्या 75 प्रतिशत है। ऐसे में यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि कुशलता के पैमाने पर यदि रोबोट कर्मियों की संख्या बढ़ेगी तो अकुशल कर्मियों का क्या होगा? क्योंकि भारत में कुशल कामगारों की संख्या निहायत ही कम है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे अपने देश की नौकरियां दूसरे देशों को चुराने नहीं देंगे। यदि अमेरिका आउट सोर्सिंग बंद करता है या कम करता है तो उसका सबसे अधिक प्रभाव आई.टी. सेक्टर पर पड़ेगा जबकि रोजगार की दृष्टि से भारत को सबसे अधिक उम्मीद इसी सेक्टर से है।
देश की सालाना जीडीपी में आईटी क्षेत्रा की हिस्सेदारी 9.3 फीसद है। यह सेक्टर 160 अरब डालर का है। 2017 में सबसे अधिक नौकरियां इसी में निकलने की उम्मीद है किंतु रोबोट का इस्तेमाल अधिक होने की स्थिति में परिणाम प्रतिकूल भी हो सकते हैं। वैसे भी देखा जाये तो भारत में नौकरियांे में साल दर साल गिरावट ही हो रही है। 2017 की पहली तिमाही में नौकरियांे में 45 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि 2015 में यह गिरावट मात्रा 25 प्रतिशत थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि भविष्य में भारत में नौकरियों में 20-30 प्रतिशत छंटनी होने की संभावना है।
यदि यह मान भी लिया जाये कि भारत में रोबोट का इस्तेमाल कम होगा तो भी समस्या कम नहीं होगी क्योंकि भारतीय लोग रोजी-रोटी के लिए पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। यदि अन्य देशों में भी रोबोट का इस्तेमाल बढ़ता है तो भी वहां भारतीय प्रभावित हो सकते हैं।
क्योंकि आज पूरी दुनिया में एक धारणा बनती जा रही है कि पहले अपने देशवासियों को रोजगार दिया जाये, उसके बाद ही अन्य देशों के लोगों के बारे में सोचा जाये। पूरी दुनिया में जब नौकरियों से भारतीयों की छंटनी होगी तो उनमें से अधिकांश भारत की तरफ ही रुख करेंगे। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि समस्या तो भारत में ही बढ़ेगी। भारत सरकार तमाम तरीकों से रोजगार के अवसर पैदा करने में लगी है। किंतु भविष्य के खतरों को ध्यान में रखकर यदि काम किया जायेगा तभी उन खतरों से निपटा जा सकता है।
जहां तक मेरा विचार है कि भारत में अभी ऐसी स्थिति नहीं है कि रोबोट के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाये। उदाहरण के तौर पर मनरेगा जैसी योजना के माध्यम से देश के अनगिनत कुशल एवं अकुशल लोगों को रोजगार मिल रहा है किंतु यही काम यदि रोबोट कर्मी करने लगेंगे तो उसमें लगे कुशल एवं अकुशल मजदूरों का क्या होगा? इस बात का सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि मानव शरीर रूपी मशीन एवं दिमाग रूपी कंप्यूटर जो प्रकृति प्रदत्त है यदि इसके बदले कृत्रिम रोबोट एवं कंप्यूटर का इस्तेमाल अधिक किया गया तो
दुष्परिणाम ही सामने ही आयेंगे।
स्वास्थ्य क्षेत्रा में तमाम तरह की प्रगति के बावजूद कोई भी रोग जड़ से ठीक नहीं हो पा रहा है। एलौपैथ में सर्जरी के अलावा कोई ठोस कार्य नहीं बचा है। बीपी एवं शुगर जैसी बीमारियों की दवा लोगों को जीवन भर खानी पड़ रही है जबकि पुराने जमाने में वैद्य नाड़ी पकड़कर सभी रोग बता दिया करते थे और मुफ्त की जड़ी-बूटियों से लोग ठीक भी हो जाते थे। आखिर यह सब क्या है? इसका सीधा-सा जवाब है कि मनुष्य जैसे-जैसे प्रकृति से दूर होता चला गया और उससे रार बढ़ाता गया तो उसके दुष्परिणाम सामने आते गये। जरा कल्पना कीजिए मुगलों एवं अंग्रेजों से युद्ध के समय जो लोग घायल होते थे तो क्या वे ठीक नहीं होते थे। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उस समय लोग ठीक होते थे और हमेशा के लिए ठीक होते थे, क्योंकि उनका प्रकृति से गहरा लगाव था और प्राकृतिक तरीके से इलाज होता था। प्रकृति से दूर होने के कारण लोगों को न तो ठीक से धूप मिल रही है, न हवा और न ही स्वच्छ जल एवं भोजन। एयर कंडीशन की कृत्रिम हवाओं से लोग कब तक स्वस्थ रह सकते हैं?
प्राकृतिक आपदाओं की बात की जाये तो अब पहले की अपेक्षा इनकी अधिकता हो गयी है। बिना मौसम के बाढ़, सूखा, अति बर्फबारी एवं अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदायें लोग झेल रहे हैं। इसका सीधा सा जवाब है कि यदि नदियों की तलहटी में होटल एवं मकान बनेंगे तो बाढ़ आयेगी ही, जंगलों की अत्यधिक मात्रा में कटाई होगी तो सूखा पड़ेगा ही। रासायनिक खादों की बदौलत अन्न का उत्पादन होगा तो बीमारियां बढ़ेंगी ही इसीलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि जल, जंगल, जमीन एवं जलवायु के महत्व को समझा जाये अन्यथा समस्याएं बढ़ती ही जायेंगी। आज मानव प्राकृतिक सुख-सुविधाओं की अपेक्षा कृत्रिम सुख-सुविधाओं की तरफ अधिक भाग रहा है, इसी वजह से वह प्रकृति से कटता जा रहा है।
गांवों से शहरों की तरफ बेतहाशा पलायन के कारण समस्याओं का अंबार लगता जा रहा है। पलायन के कारण गांव खाली होते जा रहे हैं। बहुत से घरों की तो ऐसी हालत है कि उनमें दीया-बाती जलाने वाला भी कोई नहीं है। तमाम घरों की स्थिति ऐसी है कि उनमें सिर्फ बुर्जुग ही बचे हैं, जिनका काम मात्रा घर की रखवाली भर ही रह गया है जबकि शहरों में आबादी का बोझ इतना बढ़ चुका है कि यहां कदम दर कदम समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में जनसंख्या का असंतुलन पैदा हो गया है जिससे ग्रामीण क्षेत्रा में मानव शक्ति की कमी के कारण ग्रामीण संसाधनों का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है तो दूसरी तरफ बढ़ती आबादी के कारण शहरी क्षेत्रा में संसाधनों की कमी होती जा रही है। उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो भोजन की जरूरत सभी को है, लेकिन खेती करना लोग नहीं चाहते तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? लोग अपने भविष्य को लेकर लगातार मानसिक तनाव में जीवन बिताने के लिए विवश हैं। तनाव ने सबका सुख-चैन छीन लिया है। वर्तमान विज्ञान एवं मेडिकल साइंस में इतनी क्षमता नहीं है कि वह तनाव से छुटकारा दिला सके। इसके लिए भी लोगों को प्रकृति की शरण में ही जाना पड़ता है। तनाव से मुक्ति के लिए लोगों को अध्यात्म, मेडिटेशन एवं योग का ही सहारा लेना पड़ता है यानी की प्रकृति की ही शरण में आना पड़ता है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि ईश्वर का स्वरूप ही प्रकृति है या प्रकृति का रूप ही ईश्वर का स्वरूप है।
आधुनिक जीवनशैली का आम जन-जीवन पर इतना गहरा असर पड़ रहा है कि पर्यावरण पर खतरा उत्पन्न हो गया है। शहरों में हवा इतनी प्रदूषित हो गयी है कि लोगों को श्वास संबंधी बीमारियां होने लगी हैं। प्रकृति के करीब और प्रकृति से दूर रहने से यह पता चल जायेगा कि प्रकृति के करीब रहने वाले ज्यादा सुखी एवं आनंद का जीवन बिता रहे हैं।
क्हने का अभिप्राय यही है कि मनुष्य प्रकृति से जितना भी बैर बढ़ायेगा, उतना ही दुखी होगा और जितना प्रकृति के करीब आयेगा, उतना ही सुखी होगा। जीवन के किसी भी क्षेत्रा में प्रकृति से रार मानव को भारी पड़ रही है, इसके बावजूद मनुष्य इस भ्रम में है कि वह बहुत काबिल एवं चालाक है। पूर्ण रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रकृति से दूर जाने पर बेरोजगारी बढ़ेगी, बीमारी बढ़ेगी, मानसिक विकार पैदा होंगे, पर्यावरण प्रभावित होगा, प्राकृतिक आपदायें आयेंगी एवं अन्य प्रकार की समस्याएं पैदा होंगी। ऐसे में प्रकृति से जुड़ने के अलावा मनुष्य के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें भी भविष्य के खतरे को भांपते हुए कृत्रिम ताकत के बजाय प्राकृतिक ताकत पर आधारित नीतियां एवं योजनायें बनायें। इसी में सभी का कल्याण है। देश के लिए सौभाग्य की बात है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इसी रास्ते पर चल रही है। इसका परिणाम भविष्य में निश्चित रूप से बहुत सुखदायी होगा।