उपलब्धियों, वीरता एवं त्याग की अद्वितीय गाथाएं हैं, भारतीय महिलाओं की


बीर दास जी के मतानुसार नारी की निन्दा नहीं करनी चाहिए। नारी अनेक रत्नों की खान है –
नारी निन्दा ना करो, नारी रतन की खान।
नारी से नर होत है, ध्रुव-प्रह्लाद समान।
इतना ही नहीं, नारी से ही पुरुष की उत्पत्ति होती है। ऐसे में ध्रुव और प्रह्लाद नारी की ही देन हैं और इसी सोच और मत को चरितार्थ किया है भारत की कुछ निमनलिखित महिलाओं ने –

रानी अहिल्याबाई होलकर –
ईश्वर ने मुझे जो जिम्मेदारी सौंपी है, मुझे उसे निभाना है। साथ ही हर उस कार्य जिसके लिए मैं जिम्मेदार हूं, मुझे उसका जवाब ईश्वर को देना है।
अपने परिवार के 27 जनों को खोने के बाद भी इस नारी शासिका ने प्रजा और सत्ता की बागडोर को बखूबी संभाला। शिव भक्त अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई सन् 1725 में हुआ था। हालांकि, इनके पिता मानकोजी शिंदे एक साधारण व्यक्ति थे, लेकिन इनका विवाह इंदौर के संस्थापक मल्हार राव होलकर के पुत्रा खंडेराव के साथ हुआ था। ऐसे में अहिल्याबाई अपने ससुर से राजकाज की शिक्षा लिया करती थीं, जिसने उन्हें आगे चलकर एक शासिका के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। इन्होंने अपने शासन काल में प्रजा के हित के लिए हमेशा कार्य किया तो वहीं अहिल्याबाई होलकर ने सदैव अपने शासन की रक्षा के लिए सेना को अस्त्रा-शस्त्रा से सुसज्जित रखा।
बच्चों और महिलाओं की स्थिति को लेकर हमेशा चिंतन करने वाली महारानी अहिल्याबाई होलकर ने सदैव नारी समाज के उत्थान के लिए कार्य किया, साथ ही धार्मिक संस्कारों से ओत-प्रोत रानी अहिल्याबाई ने देश के विभिन्न स्थानों और नगरों में मंदिरों, धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। साथ ही यातायात के विकास के लिए कई जगहों पर सड़कों और रास्तों का निर्मांण कराया। इतना ही नहीं 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना का श्रेय भी महारानी अहिल्याबाई होलकर को दिया जाता है लेकिन राज्य का भार और अपनों से बिछुड़ने का दुख उनसे अधिक सहन नहीं हो पाया, जिसके चलते 13 अगस्त 1795 को उनकी मृत्यु हो गईं।

सावित्राी बाई फूले –
भारत की प्रथम शिक्षिका और समाज सुधारिका के रूप में जाने जानी वाली सावित्राी बाई फूले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था जिन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदाराव फूले के साथ महिला अधिकारों के प्रति आवाज बुलंद की। साथ ही इन्होंने बालिकाओं के लिए अलग विद्यालय की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। इनके पिता खन्दोजी नेवसे और माता लक्ष्मी थीं तो गुरू महात्मा ज्योतिबा के सानिध्य में सावित्राी बाई ने विधवा विवाह कराना, छुआछुत मिटाना, दलित महिलाओं को शिक्षित करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था।
इतना ही नहीं, स्कूल जाते वक्त जब लोग उन पर कीचड़ और पत्थर फेंका करते थे तो वह स्कूल पहुंचने के बाद अपनी साड़ी बदल लिया करती थीं। ऐसे में हमें उनके चरित्रा से निरंतर प्रेरणा भी मिलती है तो वहीं वह एक आदर्श कवित्राी के रूप में भी जानी जाती हैं। मानवता का संदेश देने वाली सावित्राी बाई फूले का निधन प्लेग मरीजों की देखभाल के दौरान 10 मार्च 1897 को हो गया था, लेकिन उनके कार्य और विचार आज भी महिलाओं को उनके हक और अधिकारों के लिए प्रेरित करते हैं।

लेडी मेहरबाई टाटा –
मेहरबाई स्वतंत्रा विचारों वाली महिला थीं। मेहरबाई के पिता एच.जे. भाभा जो एक प्रोफेसर थे। वे बैंगलोर और मैसूर में एक प्रख्यात शिक्षाविद् थे। उन्होंने उन्हें प्रगतिशील वेस्टर्न विचारों से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं लेकिन जब पिता पश्चिमी फैशन के चक्कर में उनका नाम मेहर से मेरी करना चाहा तो मेहरबाई ने इससे इंकार कर दिया। वह अपने पिता के सामने खड़ी हुईं और अपना नाम अपने मूल फारसी रूप, ‘मेहरी’ में बनाए रखने पर जोर दिया, जो बाद में मेहरबाई बन गईं। इससे यह साफ प्रतीत होता है कि मेहरबाई किस प्रकार अपनी संस्कृति व अपने देश से प्यार करती थीं।
लेडी मेहरबाई टाटा का जन्म 1879 में हुआ था। खुले विचार की मेहरबाई बाद में चलकर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई की अगुवा बनीं। खेल के प्रति रुचि रखने वाली मेहरबाई बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। वह अन्य कुशलताओं के साथ-साथ कुशल पियानो वादक भी थीं।
उनके पति और उन्हें अकसर विंबलडन के सेंटर कोर्ट में टेनिस मैच देखते हुए देखा जाता था। मेहरबाई का खेल के प्रति जुनून टेनिस से भी आगे निकल गया। वह एक बेहतरीन घुड़सवार भी थीं और 1912 में जेपेलिन एयरशिप पर सवार होने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
मेहरबाई के बारे में कई ऐसी कहानियां हैं, जो आपके दिल को छू जाएंगी। मेहरबाई के पास एक खूबसूरत हीरा हुआ करता था। 245 कैरेट का जुबिली हीरा प्रसिद्ध कोहिनूर से दोगुना बड़ा था और यह तोहफा उन्हें अपने पति सर दोराबजी टाटा से मिला था। विशेष प्लेटिनम चेन में लगा यह हीरा देख सभी चकित हो जाते थे।
टाटा समूह के दूसरे अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई अपने समय से काफी आगे थीं। उन्होंने न सिर्फ बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि कई सामाजिक कार्य किए। जमशेदपुर में आप मेहरबाई कैंसर अस्पताल जाएं या फिर सर दोराबजी टाटा पार्क, मेहरबाई से जुड़ी कई यादें ताजा हो जाएंगी। जब 1920 में टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) डूबने के कगार पर था तो मेहरबाई ने अपना गहना बैंक में गिरवी रख धन जुटाया था।
1920 के दशक में, टाटा स्टील (तब टिस्को कहा जाता था) एक महान वित्तीय संकट से गुजरीं और पतन के कगार पर थी। दोराबजी टाटा को कुछ सूझ नहीं रहा था। कंपनी को कैसे बचाया जाए, लेकिन कोई रास्ता दिख नहीं रहा था। तभी मेहरबाई ने जुबिली हीरा गिरवी रख धन इकट्ठा करने की सलाह दी। पहले तो दोराबजी ने इससे इंकार कर दिया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी पत्नी की सलाह माननी पड़ी। धन जुटाने के लिए दोराबजी टाटा और मेहरबाई द्वारा इम्पीरियल बैंक को गिरवी रखा गया। इससे समस्या का समाधान हो गया और टाटा स्टील काफी समृद्ध होता रहा। बाद में, इस हीरे को बेच दिया गया और इस आय का उपयोग सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के निर्माण के लिए किया गया, जो भारत में कई परोपकारी गतिविधियों में सबसे आगे रहा है। रतन टाटा आज टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन हैं।
एक धनी परिवार में विवाहित होने के बावजूद, वह समाज के सभी वर्गों के साथ सक्रिय संपर्क में रहीं। एक खास कहानी बड़ी दिलचस्प है। जब उन्होंने सुना कि मुंबई के भायखला के एक गरीब इलाके में रहने वाली महिलाओं को दंगों के कारण भोजन नहीं मिल पा रहा है, तो उन्होंने अपनी कुछ महिला सहयोगियों के साथ खुद भोजन और सब्जी लेकर उनके बीच पहुंच गईं। महापौर ने उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि आप प्रतिष्ठित महिलाएं हैं। आपको यह सब करना शोभा नहीं देता। लेडी टाटा ने बेहद शांति एवं गरिमा के साथ जवाब दिया, ‘‘हम महिलाएं यहां ‘ग्रेसफुल’ होने के लिए नहीं आईं, हम यहां ‘यूजफुल’ होने के लिए आई हैं।
मेहरबाई को टेनिस खेलने का शौक था और वह इस खेल में बहुत कुशल हो गईं। वास्तव में उन्होंने टेनिस टूर्नामेंट में साठ से अधिक पुरस्कार जीते। वे ओलंपिक टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला थीं। 1924 के पेरिस ओलंपिक में मिश्रित युगल। सबसे दिलचस्प और अनोखी बात यह है कि उन्होंने अपने सभी टेनिस मैच पारसी साड़ी पहनकर खेले, जो उनके राष्ट्र में उनके गौरव से प्रेरित था और शायद अंग्रेजों की ओर भी इशारा करने के लिए, जो उस समय भारत पर शासन कर रहे थे।
29 नवंबर 1927 को उन्होंने अमेरिका के मिशिगन में बैटल क्रीक कॉलेज (अब एंड्रयूज यूनिवर्सिटी) में हिंदू विवाह अधिनियम के पक्ष में बात की। उनके उत्साही भाषण ने दर्शकों को भारतीय संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ रीति-रिवाजों और अज्ञानता का एक उत्कृष्ट मूल्यांकन प्रदान किया, जिससे देश में महिलाओं की प्रगति को बाधा उत्पन्न हो रही है।
इसके बाद उन्होंने भारत सरकार से एक प्रस्तावित विधेयक को शीघ्रता से पारित करने का आह्वान किया जो बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित करेगा और इस तरह इस सामाजिक बुराई को समाप्त करेगा। वास्तव में, वह भारत की महिलाओं के लिए एक शक्तिशाली प्रवक्ता थीं। अपने पति, टाटा समूह के दूसरे अध्यक्ष, सर दोराबजी टाटा के साथ उन्होंने व्हाइट हाउस में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति केल्विन कूलिज से भी मुलाकात की। सन 1929 में भारत में बाल विवाह अधिनियम पारित किया गया जिसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस अधिनियम को बनाने में मेहरबाई का भी सहयोग लिया गया था। वे लेडी टाटा ने भारत और विदेशों में छुआछूत और पर्दा व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं और नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस की संस्थापक भी रहीं।

कैप्टन लक्ष्मी सहगल –
24 अक्टूबर 1914 को मद्रास (चेन्नई) में जन्मी लक्ष्मी सहगल राजनीति में किसी भी बड़े पद पर रहकर कार्य कर सकती थीं क्योंकि उनके पिता डॉ. एस स्वामीनाथन हाई कोर्ट के वकील थे और मां एवी अम्मुकुट्टी स्वतंत्राता सेनानी थीं लेकिन उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज का हिस्सा बनना स्वीकार किया और रानी झांसी रेजीमेंट में लक्ष्मी सहगल काफी सक्रिय रहीं। इस दौरान उन्हें कर्नल की जिम्मेदारी सौंपी गईं।
एमबीबीएस होने के कारण लक्ष्मी सहगल ने दिसंबर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में मरीजों और पीड़ितों को चिकित्सीय सहायता प्रदान की। इतना ही नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन में भी लक्ष्मी सहगल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया लेकिन 19 जुलाई 2012 को कार्डियक अटैक आने की वजह से लक्ष्मी सहगल की मौत हो गईं जिनकी याद में कानपुर में लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया है।

  • सम्पदा जैन

भारत की कुछ महान नारियां जिन्होंने विश्व में देश का नाम रोशन किया
द सरोजिनी नायडू सन् 1947 में उत्तर प्रदेश की गवर्नर बनीं।
द विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्।यक्ष थीं।
द एम फातिमा बीवी साल 1989 में भारत के सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं।
द प्रतिभा पाटिल वर्ष 2007 में पहली महिला राष्ट्रपति बनीं।
द वर्ष 1972 में किरण बेदी भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं।
द मीरा कुमार देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर बनीं।
द महर्षि कर्वे ने पांच छात्रों के साथ मिलकर पुणे में पहला महिला विश्वविद्यालय वर्ष 1916 में शुरू किया था।
द श्रीमती सुषमा स्वराज भारत की केंद्रीय विदेश मंत्राी का पद संभालने वाली पहली महिला एवं किसी राज्य की सबसे कम उम्र की पहली महिला मंत्राी एवं मुख्यमंत्राी बनीं।
द मदर टेरेसा (1979) नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला बनीं।
द बछेंद्री पाल (1984) माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला।
द अरुंधति रॉय (1997) बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला।
द रीता फारिया ‘मिस वर्ल्ड’ बनने वाली पहली भारतीय महिला।
द मिस सी.बी. मुथम्मा पहली महिला राजदूत।
द संतोष यादव माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला।
द एनी बेसेंट राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष।
द श्रीमती सुचेता कृपलानी किसी भारतीय राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्राी।
द रोजे मिलियन बेटू संघ लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला अध्यक्ष बनीं।
द कंचन चौधरी भट्टाचार्य पहली महिला पुलिस महानिदेशक।
द पुनीता अरोड़ा पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल।
द पी. बंदोपाध्याय पहली महिला एयर वाइस मार्शल।
द सुषमा चावला इंडियन एयरलाइंस की पहली महिला चेयरपर्सन।
द रजिया सुल्ताना दिल्ली की पहली और अंतिम मुस्लिम महिला शासक रहीं।
द नीरजा भनोट अशोक चक्र प्राप्त करने वाली पहली महिला।
द आरती साहा इंग्लिश चैनल पार करने वाली पहली महिला।
द इंदिरा गांधी भारत रत्न पाने वाली पहली महिला व भारत की पहली महिला प्रधानमंत्राी रहीं।
द आशापूर्णा देवी ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला रहीं।
द महला मूसा पहली भारतीय महिला जो अंटार्कटिका पहुंचीं।
द नीता अंबानी (2016) पहली भारतीय महिला जो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की व्यक्तिगत सदस्य बनीं।
द प्रेमलता अग्रवाल सात महाद्वीपीय चोटियों पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही।
द अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली दिव्यांग महिला।
द ताशी और नैन्सी मलिक माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली जुड़वां बहनें।
द गगनदीप कंग लंदन की रॉयल सोसायटी में पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक को साथी के रूप में चुना गया।
द श्रीमती निर्मला सीतारमण भारत की पहली महिला रक्षा मंत्राी (पूर्णकालिक) एवं पहली महिला वित्त मंत्राी।
द प्रांजल पाटिल पहली दृष्टिहीन महिला आईएएस अधिकारी।
द नूपुर कुलश्रेष्ठ भारतीय तटरक्षक में पहली महिला डीआईजी।
द श्रीमती वी.एस. रमा देवी (26 नवंबर 1990-11 दिसंबर 1990) भारत की पहली महिला मुख्य चुनाव आयुक्त।
द राजकुमारी अमृत कौर आजादी के बाद पहली बार भारत की महिला कैबिनेट मंत्राी बनीं। वह पहली लोकसभा (1952-57) के दौरान पहली स्वास्थ्य मंत्राी बनीं।
द कादम्बनी गांगुली भारत की पहली महिला ग्रेजुएट।
द आनंदीबाई जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर।
द कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली देश की पहली भारतीय मूल की महिला।
द गुंजन सक्सेना “द कारगिल गर्ल” भारतीय सेना की पहली महिला लेफ्टिनेंट थीं।
द अवनी चतुर्वेदी जून 2016 में पहली लड़ाकू विमान पायलट बन गयी।
इस प्रकार हमारे इतिहास में कई ऐसी नारियों के उदाहरण हैं, जिन्होंने सिर्फ नारी समाज के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को अपने जीवनकाल से एक गहरा संदेश दिया है कि मानवता से बढ़कर कोई धर्म नही होता है और जन्मनी किसी से कम नहीं होती।

भीखाजी कामा
भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे क्षति पहुंच रही है। आगे बढ़ो, हम हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हिंदुस्तानियों का है। ऐसे विचारों से ओत-प्रोत भारतीय मूल की पारसी नागरिक भीखाजी कामा का जन्म 24 सिंतबर 1861 को बंबई (मुंबई) में हुआ था। भीखाजी कामा को जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय झंडा लहराने का श्रेय दिया जाता है। एक धनी परिवार में जन्म लेने के बावजूद भीखाजी कामा ने सुखी जीवन की अपनी इच्छाओं का त्याग कर देश को अंग्रेजी शासन से आजाद करने में बिता दिया इसलिए इन्हें भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन कहा जाता है। वे जहां गईं उन्होंने वहां जाकर भारतीय स्वाधीनता की अलख जलाई और स्वराज के लिए लोगों को एकजुट किया लेकिन असीम सेवा भाव के चलते प्लेग रोगियों की सेवा करते-करते 13 अगस्त 1936 को 73 वर्ष की आयु में हमने एक महान स्वतंत्राता सेनानी को खो दिया।