प्रचीन काल से ही हिंदू धर्म में प्याज और लहसुन को खाने की मनाही की गई है, परंतु ऐसा क्यों और किसे प्याज या लहसुन खाना चाहिए और किसे नहीं, यह जानना भी आज बहुत जरूरी है। सवाल आता है कि इतनी महत्वपूर्ण चीज को खाने के लिए मना क्यों किया गया है? आओ जानते हैं इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी –
भोजन के प्रकारः
हिन्दू धर्म के अनुसार भोजन के तीन प्रकार हैं- 1. सात्विक 2.राजसिक और 3. तामसिक। दूध, घी, चावल, आटा, मूंग, सब्जियां जैसे सात्त्विक पदार्थ हैं। तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन आदि पदार्थों से निर्मित भोजन रजोगुण में बढ़ोत्तरी करता है। लहसुन, प्याज, मशरूम, मांस-मछली, अंडे आदि तमोगुण में बढ़ोत्तरी करता है। श्रीमद् भगवद्गीता में 17वें अध्याय में भी कहा गया है कि व्यक्ति जैसा भोजन खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है। जिस भोजन को करने से मुंह से दुर्गंध आती हो वह भोजन तामसिक ही माना जाता है।
सात्विक – सकारात्मकता, शांति, संयम, पवित्राता, ज्ञान जैसे भाव-गुण पैदा करता है।
राजसिक – साहस, शौर्य, प्रसन्नता, उत्साह, बुद्धि और जुनून जैसे भाव-गुण पैदा करता है।
तामसिक – उत्तेजना, अंहकार, क्रोध, आलस्य, अज्ञानता, अतिभोग एवं विलासिता जैसे भाव-गुण पैदा करता है।
लहसुन और प्याज को राजसिक और तामसिक भोजन में शामिल किया गया है, जो आपके भीतर रक्त के प्रभाव को बढ़ाने या घटाने की क्षमता रखते हैं।
देवी-देवताओं को नहीं लगता लहसुन-प्याज का भोग –
भगवान का भोग भी बिना लहसुन-प्याज के ही बनता है। उन्हें राजसिक या तामसिक भोज अर्पण नहीं किया जाता है।
व्रत करने वाले नहीं खाते प्याज-लहसुन –
यदि कोई व्यक्ति व्रत कर रहा है तो उसे प्याज और लहसुन नहीं खाना चाहिए, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। पृथ्वी के नीचे पाए जाने वाले भोज्य पदार्थ को कंद कहलाते हैं। प्याज, लहसुन, शकरकंद, सीताकंद, मूली, गाजर आदि। जिन कंदों में तीव्र गंध (लहसुन प्याज आदि) अथवा स्वाद में चरपराहट/तीक्ष्णता (मूली आदि) होती है उन्हें व्रत आदि में नहीं खाने की परम्परा है।
साधु-संत नहीं करते प्याज-लहसुन का उपयोग –
सनातन धर्म के अनुसार उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देने वाले खाद्य पदार्थों को साधु-संतों को उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे अध्यात्म के मार्ग पर चलने में बाधा उत्पन्न होती है और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है।
योग करने वाले भी नहीं खाते प्याज और लहसुन –
यदि आप प्रतिदिन योगासन करके योग के मार्ग पर चल रहे हैं तो आपको प्याज-लहसुन का सेवन औषधि के रूप में करना चाहिए क्योंकि प्याज या लहसुन को उचित मात्रा में खाने से यह सेहत का ध्यान रखता है।
सामाजिक तौर पर प्रतिबंध –
वैष्णवजन और जैन समाज के लोग प्याज-लहसुन का उपयोग नहीं करते, क्योंकि इस समाज के अधिकतर लोग व्रत में रहते हैं और धर्म के नियमों का पालन करते हैं। प्याज शरीर के लिए कितना ही लाभदायक हो परंतु यह धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों के लिए नहीं है। इनकी तासीर या अवगुणों के कारण ही इनका त्याग किया गया है।
प्याज की उत्पत्ति की पौराणिक कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु रूप मोहिनी जब अमृत मंथन से निकले अमृत को बांट रही थीं तो उस दौरान जब राहु ने देखा कि ये तो सिर्फ देवताओं को ही बांट रही है तो वह चुपके से उठकर भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। जैसे ही उसने अमृत चखा तो चंद्रदेव ने यह देखकर जोर से कहा कि ये तो दैत्य राहु है, तभी यह जानकर श्रीहरि विष्णु ने अपने असली रूप में प्रकट होकर उसका सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया।
जब सिर काटा तो उस समय तक अमृत राहु के गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीर में अमृत नहीं पहुंचा था वो उसी समय भूमि पर उसका सिर रक्त और अमृत की बूंदों के साथ गिरा और चूंकि धड़ और सिर ने अमृत को स्पर्श कर लिए था इसीलिए राहु और केतु के मुख अमर हो गए।
कहते हैं कि राहु और केतु के रूप में पृथक हुए उस समय राहु के शीश से जो रक्त गिरा उससे प्याज के पौधे का जन्म हुआ और इसी कारण प्याज को काटने पर चक्र और शंख की आकृति दिखाई देती है। चूंकि, इस पौधे में अमृत की बूंदों का भी योगदान था तो यह पौधा जहां अमृत के समान है वहीं यह मृत्य के समान भी है।
एक अन्य पौराणिक कथा में प्याज-लहसुन –
भगवान विष्णु द्वारा राहु और केतु के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं, जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि, यह दोनों खाद्य पदार्थ अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और
रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान भी हैं और यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज गंध है और ये अपवित्रा भी हैं। इसका औषधि और मसालों के रूप में सेवन अमृत के समान है परंतु इसका अति सेवक करना तामसिक गुणों को विकसित करना है। अतः कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मजबूत तो हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं।
प्याज खाने के कितने नुकसान –
- जानकार मानते हैं कि एक बार प्याज-लहसुन खाने का प्रभाव देह में करीब 27 दिनों तक रहता है और उस दौरान व्यक्ति यदि मर जाये तो शास्त्रों के अनुसार वह नरकगामी होता है।
- प्याज का सेवन करने से 55 मर्म स्थानों में चर्बी जमा हो जाती है, जिसके फलस्वरूप शरीर की सूक्ष्म संवेदनाएं नष्ट हो जाती हैं।
- कुछ देर प्याज को बगल में दबाकर बैठने से बुखार चढ़ जाता है। प्याज काटते समय ही आंखों में आंसू आ जाते हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शरीर के भीतर जाकर यह कितनी अधिक हलचल उत्पन्न करता होगा।
- हवाई जहाज चलाने वाले पायलटों को जहाज चलाने के 72 घंटे पूर्व तक प्याज का सेवन न करने का परामर्श दिया जाता है, क्योंकि प्याज खाने से तुरंत प्रतिक्रिया देने की क्षमता (त्मसिमगपअम ंइपसपजल) प्रभावित होती है।
- शास्त्रों में प्याज को पलांडू कहा गया है। याज्ञवलक्य संहिता के अनुसार प्याज एवं गोमांस दोनों के ही खाने का प्रायश्चित है।
- ब्रह्म जी जब सृष्टि कर रहे थे, तो दो राक्षस उसमें बाधा उत्पन्न कर रहे थे। उनके शरीर क्रमशः मल और मूत्रा के बने हुए थे। ब्रह्म जी ने उन्हें मारा तो उनके शरीर की बोटियां पृथ्वी पर जहां-जहां भी गिरीं, वहां प्याज और लहसुन के पौधे उग आए। संभवतः, इसीलिए लैबोरेटरी में टेस्ट करने पर भी प्याज और लहसुन में क्रमशः गंधक और यूरिया प्रचुर मात्रा में मिलता है, जो क्रमशः मल-मूत्रा में पाया जाता है।
- इतने प्रमाण होते हुए भी केवल जीभ के स्वार्थ हेतु प्याज-लहसुन खाते रहेंगे, तो जड़ बुद्धि कहलाएंगे इसलिए इनका तुरंत परित्याग करने में ही भलाई है।
- ज्यादा प्याज खाने से गैस, डकार और अपच की समस्या हो जाती है।
- ज्यादा प्याज खाने से मुंह से तेज दुर्गंध आती है और कफ भी बनता है।
- लहसुन और प्याज को साथ-साथ नहीं खाते हैं।
- इसको खाने से सिर में दर्द भी पैदा होता है और मस्तिष्क में कमजोरी आ जाती है।
- इसको खाने से मन में बचैनी बढ़ जाती है और आलस्य भी बढ़ जाता है।
- यह कामेच्छा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं।
- ये रक्त की चाल और हार्मोन्स को प्रभावित करते हैं।
- प्याज को काटने भर से आंसू आते हैं और इसे कच्चा खाने से जीभ में जलन होती है तो सोचिये की शरीर में ये क्या करता होगा?
- संपदा जैन (छात्रा – चंडीगढ़)