संपादकीय अक्टूबर 2012
वर्तमान में भारत बहुत विचित्रा राजनैतिक परिस्थितियों के दौर से गुजर रहा है। सभी राजनीतिक दल अपने को एक दूसरे से बेहतर बताने एवं साबित करने की होड़ में लग गये हैं, मगर जब भ्रष्टाचार की बात आती है तो किसी भी पार्टी का दामन पूरी तरह पाक-साफ नजर नहीं आता। राजनीतिक दलों की तो बात अलग है। देश में बहुत कम नेता ऐसे हैं, जिनका दामन पूरी तरह पाक-साफ है। आम जनता में ऐसी धारणा बनती जा रही है कि थोड़े-बहुत अंतरों के साथ सभी राजनीतिक एक ही जैसे हैं। कोई थोड़ा कम होगा तो तो कोई थोड़ा ज्यादा। अब इस बात से काम चलने वाला नहीं कि मेरी कमीज तुम्हारी कमीज से ज्यादा सफेद है। जिस किसी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़नी है, उसे अपनी कमीज पूरी तरह साफ रखनी होगी। भारतीय जनता पार्टी एक ऐसा दल है, जिससे देश को काफी उम्मीदें हैं, मगर वर्तमान दौर में भाजपा के तमाम नेता भी उन सभी बुराइयों में लिप्त होते जा रहे हैं जिससे कांग्रेस यानी सत्ता पक्ष के नेता ग्रसित हैं।
भारतीय जनता पार्टी में एक जमाना था, जब उसके पास तमाम ऐसे चेहरे थे, जिन्हें आगे करके वह अपने आपको और दलों से अलग साबित करती थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, डाॅ मुरली मनोहर जोशी, स्व. कुमाभाऊ ठाकरे, स्व. जनाकृष्ण मूर्ति, स्व. सुंदर सिंह भंडारी, स्व. प्यारे लाल खंडेलवाल, स्व. जगदीश प्रसाद माथुर, स्व. कृष्ण लाल शर्मा जैसे तमाम चेहरे ऐसे थे जो विशुद्ध रूप से राजनैतिक दल के कार्यकर्ता एवं समाजसेवी थे। सामाजिक सेवा के अलावा इन नेताओं का अलग से कोई काम नहीं था। इन्हें इस बात की चिंता नहीं थी कि यदि इनके पास पैसा नहीं होगा तो राजनीति कैसे करेंगे? ये नेता मीडिया की बजाय आम जनता में जाकर पार्टी का विस्तार करने के पक्षधर थे। ये नेता गर्मी, बरसात, ठंडी एवं अन्य किसी प्रकार की विषम परिस्थितियों में अपना प्रवास जारी रखते थे। मगर आज के अधिकांश नेता ए.सी. कमरों में बैठकर लैपटाॅप से मुद्दे ढूंडते हैं। यदि एक घंटा धूप में निकलना पड़ता है तो तमाम नेताओं को चक्कर आ जाता है या फिर बेहोश होने तक की नौबत आ जाती है। इसका कारण स्पष्ट है कि वर्तमान नेताओं को गर्मी एवं धूप में निकलने की आदत कम हो गई है। विरोध के नाम पर जो भी तौर-तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें से अधिकांश सांकेतिक एवं औपचारिक होते हैं। आज पार्टी को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जिनका दामन स्वयं पूरी तरह बेदाग हो।
जहां तक आम जनता की बात है तो उसे भी अपने नजरिये में परिवर्तन करना होगा। जिन लोगों को आज भ्रष्ट, बेईमान एवं माफिया कहा जाता है, आखिर उसे भी तो जनता ने ही चुनकर भेजा है। जनता यदि यह तय कर ले कि वह किसी भी दल को पूरी तरह समर्थन देने की बजाय अच्छे लोगों को चुनेगी तो राजनीति अपने आप पूरी तरह साफ-सुथरी हो जायेगी। किसी पार्टी का आलाकमान यदि पूरी तरह बेदाग हो तो यह जरूरी नहीं कि उसकी पार्टी के सभी लोग बेदाग हों। इसीलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि आम जनता बिना किसी प्रलोभन में आये, अच्छे व्यक्तिों को चुनकर भेजे।
अच्छे आदमी की परिभाषा आम जनता अच्छी तरह समझती है। किसी सीट पर यदि कोई भी व्यक्ति अच्छा न मिले तो उसमें से जो सबसे अच्छा हो, उसका समर्थन करना चाहिए। पार्टियों के आधार पर प्रत्याशियों के चयन से राजनीति एवं समाज का शुद्धिकरण करना बहुत मुश्किल है। वर्तमान परिस्थितियों में एक बात तो निश्चित है कि जो कृछ करना है, वह आम जनता को ही करना है। उसे ही अपने विवेक के आधार पर राष्ट्र एवं समाज का निर्माण करना है, इसलिए आज सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि आम जनमानस में परिवर्तन की दिशा में काम किया जाये।