भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में विकास को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती रहती हैं। तमाम सरकारें यह दावा करती रहती हैं कि विकास का उनका माडल ही सबसे बेहतर है किंतु वास्तविक विकास क्या है? वास्तव में विकास किसका होना चाहिए और किस तरह का होना चाहिए? इन बातों का यदि विश्लेषण किया जाये तो बहुत से तथ्य एवं विचार सामने आयेंगे, जिन पर बहस की पर्याप्त गुंजाइश है।
विकास के संबंध में लोगों का नजरिया अलग-अलग हो सकता है। आपकी अपनी सोच एवं विचारधारा के आधार पर भी विकास के बारे में राय हो सकती है किंतु जहां तक मेरा मानना है कि विकास का माॅडल ऐसा हो जो अंत्योदय यानी समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास करे। दूसरे अर्थों में यह भी कहा जा सकता है कि जिस व्यवस्था में गरीब से गरीब व्यक्ति के विकास की संभावना सबसे अधिक हो, विकास का वही माॅडल सर्वोत्तम है। अमीर और अमीर होता जाये एवं गरीब और अधिक गरीब होता जाये, ऐसे विकास का न तो कोई महत्व है, न ही औचित्य। समाज में अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से सामाजिक ताने-बाने की भी डोर कमजोर पड़ती जाती है। वैसे भी कोई खा-खाकर परेशान हो और कोई खाने बिना मरने लगे तो ऐसी स्थिति राष्ट्र एवं समाज के लिए अंततोगत्वा घातक साबित होती है। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि विकास गरीबों एवं ऐसे लोगों के लिए हो जिन्होंने अभी तक विकास का स्वाद नहीं चखा है। विकास ऐसे लोगों के लिए न हो जो पहले से ही विकसित हैं अर्थात विकास अविकसित लोगों का होना चाहिए।
जिस विकास में अविकसित एवं गरीब लोग मात्रा दर्शक बन कर रह जायें तो उस विकास का कोई मतलब ही नहीं है। वैसे भी देखने में आया है कि जब भी अर्थ के लिए अर्थ के द्वारा विकास का रास्ता अपनाया जाया जाता है तो उसका परिणाम ठीक नहीं आता है। ऐसा विकास राष्ट्र एवं समाज के लिए ठीक नहीं होता है। दुखदायी होता है, समस्त मानव जाति के लिए पीड़ादायक साबित होता है। झूठी प्रतिस्पर्धा के कारण जो विकास होता है, वह न सिर्फ दूषित होता है अपितु चादर से बाहर होने लगता है यानी ऐसे विकास से कर्ज संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। ऐेसी संस्कृति में अविकसित एवं विकासशील लोगों में कुंठा एवं निराशा पैदा होती है। लोग कर्ज संस्कृति की ओर अग्रसर होने लगते हैं। ऐसी संस्कृति भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति के बिल्कुल विपरीत है। विकसित देशों एवं पाश्चात्य संस्कृति का उद्देश्य भी यही है कि भारतीय विकास माॅडल को अपने अनुरूप एवं चाल-ढाल में विकसित किया जाये। हालांकि, काफी हद तक वे इस मामले में कामयाब भी हैं।
किन्तु देश में इस समय अन्त्योदय यानी समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास से संबंधित स्थिति बहुत सुखद है यानी मोदी सरकार विकास की जो नीतियां बना रही है या अब तक बना चुकी है उसके केन्द्र में अंत्योदय का विकास है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी का भी सपना यही था कि समाज में जो व्यक्ति अंतिम पायदान पर खड़ा है, उसी को केन्द्र में रखकर विकास की नीतियां बनाई जायें। देश के लिए यह बेहद सौभाग्य की बात है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार उन्हीं नीतियों पर काम कर रही है।
जहां तक समग्र विकास की बात है तो हमेशा इस बात का ध्यान रखना होगा कि विकास और अर्थ का आपस में संबंध नहीं होना चाहिए यानी अर्थ आधारित विकास नहीं होना चाहिए। अर्थ आधारित विकास में गरीब आदमी अपने को छला हुआ महसूस करता है। ऐसे विकास का कोई मतलब नहीं जो सिर्फ अर्थ लाभ के लिए हो। विकास सिर्फ गरीबोत्थान के लिए होना चाहिए, विकास सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए हो, सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा के लिए हो, इंसान को दानव बनने से रोकने के लिए हो, मानवता को बचाने के लिए हो। स्वाभाविक विकास के लिए लोगों की सोच एवं कार्यशैली में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। दिखावे की संस्कृति से स्वाभाविक विकास नहीं हो सकता है। वर्तमान में विकास का जो माॅडल मोदी जी लेकर आये हैं, उसके संदर्भ में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि देशहित एवं गरीबों के हित में है।
हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो भी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं उससे कोई भी देश अछूता नहीं रह सकता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपने को स्थापित करने के लिए पूरी दुनिया के साथ मिलकर भी चलना जरूरी है किंतु इन्हीं परिस्थितियों में रहकर भी वर्तमान केन्द्र सरकार ने यह साबित कर दिया है कि दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था जहां धराशायी हो रही है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से अपना पैर जमाये है।
यूपीए सरकार की नीतियां विदेशी योजनाओं से प्रभावित थीं, इसीलिए उन नीतियों को देश की जनता स्वीकार नहीं कर सकी। विदेशी परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल कर सरकार यदि अपने देश की परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करे तो वही सर्वोत्तम विकल्प है। इस दृष्टि से यदि देखा जाये तो मोदी सरकार बहुत बेहतरीन कार्य कर रही है।
हालांकि, आज की राजनीति जिस दिशा में जा रही है उसमें तमाम तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। हिन्दुस्तान के तमाम राजनैतिक दल मुफ्त में खैरात बांटकर चुनाव जीतने की इच्छा रखते हैं। किसी भी मामले में यदि जनता को थोड़ी-बहुत राहत दे दी जाये तो इससे तात्कालिक राहत तो मिल जाती है किंतु यह दीर्घकाल के लिए ठीक नहीं है। देश के प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वाभाविक विकास की योजनाओं पर काम करना होगा, इसके लिए राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। जहां तमाम दल जनता के समक्ष चुनाव जीतने के लिए मुफ्त खैरात बांटने एवं लोक लुभावन योजनाओं की बात कर रहे हैं तो ऐसे माहौल में मोदी जी ऐसा न करके सिर्फ वास्तविक विकास का खाका आम जनता के समक्ष पेश कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि मुफ्त में खैरात बांटने की बात वे कभी नहीं करते।
कुछ लोग मोदी जी पर आरोप लगाते हैं कि वे बुलेट ट्रेन की बात करते हैं, हथियार खरीदने की बात करते हैं एवं अन्य बड़े विकास की बात करते हैं तो ऐसे लोगों की समझ में यह बात आनी चाहिए कि बात तो वे सिर्फ विकास की ही कर रहे हैं। इस तरह के विकास में भी गरीबों का उत्थान निहित है किंतु वे यह नहीं कहते कि मुफ्त बिजली, पानी एवं अन्य सामानों के वितरण से गरीबों की सभी समस्याएं दूर हो जायेंगी। मोदी जी ने जन-धन योजना चलाई तो गरीब से गरीब व्यक्ति का जीवन बीमा भी कराया, उन्होंने पर्यावरण एवं स्वच्छता अभियान कार्यक्रम चलाया तो देश में साइकिल संस्कृति अपने आप बढ़ने लगी। अमीरों से गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की तो गरीबों की मदद करने के लिए लोगों में स्वतः भावना जागृत होने लगी है।
मोदी जी के प्रयासों से समाज में लोगों की सोच में परिवर्तन आ रहा है तो यह अपने आप में बहुत ही बड़ी उपलब्धि है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अब लोगों में गरीबों के प्रति संवेनशीलता आ रही है यानी कि गरीबों एवं स्वाभाविक विकास के प्रति नजरिये में बदलाव आ रहा है। लोगों की सोच में यही बदलाव स्वर्णिम भारत का मार्ग प्रशस्त करेगा।
वास्तव में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी पूर्ण रूप से सरकार की होनी चाहिए। यदि इन तीनों की जिम्मेदारी सरकार अपने ऊपर ले ले तो आम जनता का जीवन बहुत असान हो जायेगा। वर्तमान केन्द्र सरकार इसी नीति पर काम कर रही है किंतु वर्षों से सड़ी-गली व्यवस्था को बदल देना इतना आसान काम नहीं है, किंतु बदलाव की प्रक्रिया चल रही है। वास्तव में अब देशवासियों को यह अहसास भी हो रहा है कि ‘मेरा देश बदल रहा है’।
भारतीय सभ्यता-संस्कृति के मुताबिक यदि सरकार कुछ नया करना चाहती है तो तमाम दल भगवाकरण का आरोप लगातार उसके विरोध में खड़ा हो जाते हैं किंतु उन्हें यह समझना होगा कि एक ही गुरुकुल में भगवान कृष्ण एवं गरीब ब्राह्मण सुदामा नहीं पढ़े होते तो उनकी दोस्ती की मिसाल न बनती, क्या आज की वर्तमान व्यवस्था में ऐसी दोस्ती की संभावना है। इस प्रकार के उदाहरण भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में ही संभव हैं।
सभी दलों की जिम्मेदारी बनती है कि वे केन्द्र सरकार का खुले दिल से साथ दें जिससे ऐसा माहौल बने जिसमें कृष्ण एवं सुदामा एक साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण कर सकें। इसके लिए विकास का क्रम नीचे से ऊपर की ओर ले जाना होगा। विकास क्रम यदि ऊपर से नीचे की तरफ आयेगा तो ऐसा संभव नहीं हो पायेगा। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी का सतत प्रयास यही है कि विकास की रफ्तार आम आदमी से होते हुए ही खास लोगों की तरफ बढ़े।
देखा जाये तो संघ परिवार आज इसी स्वाभाविक विकास को ही ध्यान में रखकर कार्य कर रहा है। संघ परिवार के सेवा भारती, बनवासी कल्याण जैसे कई ऐसे प्रकल्प हैं जो समाज के सबसे वंचित तबके में जाकर काम कर रहे हैं यानी कि अंत्योदय के विकास में लगे हैं। इसका प्रभाव हर स्तर पर देखने को मिल रहा है। भविष्य में इसका असर और भी व्यापक रूप में देखने को मिलेगा। इसी को कहते हैं, ‘कथनी और करनी में एकरूपता’ यानी कि भाजपा एवं संघ परिवार जो कुछ भी कहता है, उस पर अमल करता है। कुल मिलाकर यदि वर्तमान परिस्थितियों का मूल्यांकन किया जाये तो तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि देश वर्तमान में स्वाभाविक विकास यानी गरीबोत्थान की दिशा में आगे बढ़ रहा है और इसी तरह के विकास में राष्ट्र एवं समाज का उत्थान निहित है।