मधुबनी पेंटिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक माना गया है। पहले इस पेंटिंग को महिलाओं के द्वारा केवल दीवारों और पत्थरों पर ही बनाया जाता था, परंतु वक्त के साथ-साथ इसमें परिवर्तन होता चला गया और अब इसे कपड़ों और पेपरों पर भरपूर मात्रा में बनाया जाने लगा है। साथ ही अब यह कला महिलाओं तक ही सीमित नहीं रही बल्कि पुरुष भी इस कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
भारत को पुराने समय से ही कला और संस्कृति का देश माना गया है। मधुबनी भारत के बिहार राज्य में स्थित एक जिला है। मधुबनी दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘मधु’ और ‘बनी’। मधु का मतलब है-शहद और बनी का मतलब है- जंगल यानी शहद का जंगल। यह पेंटिंग बिहार के मधुबनी जिले की एक स्थानीय कला है, जिसकी वजह से इस पेंटिंग का नाम मधुबनी पेंटिंग रखा गया। मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है।
यह पेंटिंग बिहार की एक प्रमुख चित्राकला है। कहा जाता है कि इस कला की शुरुआत रामायण के युग में हुई थी, उस समय राजा जनक ने मां सीता के विवाह के अवसर पर इसे गांव की औरतों से बनवाया था। मधुबनी पेंटिंग में ज्यादातर कुल देवी-देवताओं का चित्राण देखने को मिलता है।
मधुबनी पेंटिंग की खासियत-
मधुबनी पेंटिंग में जिन रंगों का उपयोग किया जाता है, उन्हें घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है। जैसे- पीले रंग के लिए हल्दी, हरे रंग के लिए केले के पत्ते, लाल रंग के लिए पीपल की छाल का, सफेद रंग के लिए दूध या फिर चूना आदि चीजों का उपयोग किया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिस कागज पर इसे बनाया जाता है, उसे अपने हाथों से ही तैयार किया जाता है। कागज को तैयार करने के लिए उस कागज पर गोबर का घोल और बबूल के पेड़ का गोंद एक साथ मिलाया जाता है और उसके बाद सूती के कपड़े के सहारे उस घोल को पूरे पेपर पर लगाया जाता है। इसके बाद उसे धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है जिसके बाद ही उस पर चित्रा बनाया जाता है।
पेंटिंग करने के लिए और चित्रा बनाने के लिए केवल माचिस की तीलियों और बांस की कलम का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही रंगों की पकड़ को बरकरार रखने के लिए रंगों में बबूल के पेड़ की गोंद को मिलाया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग का इतिहास और शुरुआती दौर –
1934 से पहले मधुबनी पेंटिंग को केवल गांव की एक लोक कला के रूप में जाना जाता था लेकिन साल 1934 में मिथिलांचल में आए भूकंप के बाद से यह केवल लोक कला के तौर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कला के तौर पर जाना जाने लगा।
कहा जाता है कि जब विलियम आर्चर (जो उस समय मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर थे) भूकंप से हुए भारी भरकम नुकसान को देखने के लिए गए तब उन्होंने वहां पर अलग-अलग प्रकार की खूबसूरत पेंटिंग देखी जो उनको एकदम नई और अनोखी लगी। उसके बाद उन्होंने उन सभी पेंटिंग्स की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें निकालनी शुरू की, जिसे मधुबनी पेंटिंग के इतिहास में अब तक की सबसे पुरानी तस्वीरों में से माना जाता है। साल 1949 में उन्होंने ‘मार्ग’ के नाम से एक आर्टिकल लिखा था जिसमें उन्होंने मधुबनी पेंटिंग की खासियत के बारे में विस्तार से बताया था। उनके इस आर्टिकल के बाद पूरी दुनिया को मधुबनी पेंटिंग की सुंदरता और खासियत के बारे में पता चलने लगा।
कुछ महत्वपूर्ण योगदान –
मधुबनी पेंटिंग्स बनाने में अनेक महान महिला विभूतियों ने अपना विशेष योगदान दिया है। उन्हीं के प्रयासों की वजह से आज मधुबनी पेंटिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक जगहों पर पहचाना जाता है। मधुबनी पेंटिंग को विश्व स्तर पर पहचान उस समय मिली जब साल 1969 में बिहार सरकार के द्वारा सीता देवी को सम्मानित किया गया था।
सीता देवी को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए ‘बिहार रत्न’ और ‘शिल्प गुरु’ सम्मान से भी नवाजा गया। इसके बाद साल 1975 में जगदंबा देवी, 1984 में सीता देवी और 2011 में महासुंदरी देवी को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए पदम श्री जैसे बड़े सम्मान से नवाजा गया। साथ ही बउआ देवी कोसाल 1984 मंक नेशनल अवार्ड और साल 2017 में पदम्श्री से सम्मानित किया गया था। इनके अलावा भी अनेक महिलाओं को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए सम्मानित किया गया है।
भित्ति चित्रा –
मधुबनी भित्ति चित्रा में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है। गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है। इसे घर की तीन खास जगहों पर ही बनाने की परंपरा है, जैसे- पूजा स्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों के कमरे में) और शादी या किसी खास उत्सव पर घर की बाहरी दीवारों पर।
मधुबनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं का चित्राण किया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार इत्यादि। इन तस्वीरों के अलावा कई प्राकृतिक और रम्य नजारों की भी पेंटिंग बनाई जाती है। पशु-पक्षी, वृक्ष, फूल-पत्ती आदि को स्वास्तिक की निशानी के साथ सजाया-संवारा जाता है।
रंगों के विज्ञान से जन्मी मधुबनी चित्राकला –
प्रकाश की किरणें जब किसी वस्तु के ऊपर पडती हैं तो वह वस्तु प्रकाश के कुछ भाग को आत्मसात कर परावर्तित (प्रतिबिम्बित) करती है और वह प्रतिबिम्ब हमें रगं के रूप में दिखाई देता है। इसे इन्द्रधनुष के उदाहरण से भी समझा जा सकता है जहां प्रकाश की किरणें विबग्यारे, बैगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी एवं लाल रंगों की आभाओं में दिखाई देते हैं। इसे त्रिकोण शीशे के द्वारा भी समझा जा सकता है। रंग वस्तुतः प्रकाश का वह गुण है जो नेत्रों के द्वारा मस्तिष्क में पहुंचता है और अनुभव किया जाता है।
रंगों के भौतिक गुण –
प्रत्येक रंग के कुछ भौतिक गुण होते हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
रंगत
मान
प्रबलता
हल्की रंगत
गहरी रंगत
रंगत – रंगों का स्वभाव रंगत कहलाता है। ‘रंगत’ रंग का वह गुण होता है जिसके द्वारा हम लाल, पीले व नीले के बीच का भेद समझते हैं।
प्रबलता – रंगों की प्रबलता का अभिप्राय प्रायः चटकदार रंगों से होता है। रंगों में चटकपन शुद्धता के कारण भी हो सकता है और किन्हीं रंगों के मिश्रण द्वारा भी अर्थात जिन रंगों में चटकपन हो या जिन रंगों के मिश्रण से रंगों में तेजपन आ जाए, उन रंगों का यह गुण प्रबलता कहलाती है।
मान – मान रंगत में हल्केपन व गहरेपन का सूचक है। इसे रंगों का गहरापन व हल्कापन भी कहते हैं। किसी भी रंग में काला रंग मिलाने से गहरा तथा श्वेत रंग मिलाने से हल्का प्रभाव प्राप्त होता है। प्रकाश से लेकर अन्धकार तक सफेद व काले रंग के अनेक मिश्रण हो सकते हैं। इनके मिश्रण से रंगों के मान को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। यही श्वेत व काले रंग के विभिन्न मान कहलाते हैं।
हल्की रंगत – किसी भी रंग में श्वेत रंग मिलाने से उस रंग का हल्का रंग बनता है। इसे उक्त रंग के मान का बढ़ना कहते हैं या उक्त रंग की आभा कहते हैं। किसी एक रंग के उपवर्ण जिससे उसके हल्के-गहरेपन का आभास होता है।
गहरी रंगत – किसी भी रंग में काला रंग मिलाने से गहरा रंग बनता है। इसे उक्त रंग छाया कहते हैं तथा यह उक्त रंग के मान का घटना कहलाता है। इससे वस्तुओं में ठोसपन या धुँधलापन का प्रभाव उत्पन्न होता है।
रंगों के प्रकार –
- प्राथमिक रंग – प्राथमिक रंग तीन होते हैं – लाल, पीला और नीला। ये मौलिक रंग द्रव्य होते हैं। ये किन्हीं अन्य रंगों के मिश्रण से नहीं बनते बल्कि इनके मिश्रण से अन्य रंग बनते हैं।
- द्वितीयक रंग – किन्हीं दो प्राथमिक रंगों को मिलाकर प्रायः तीन द्वितीयक रंग बनते हैं। ये रंग होते हैं – नारंगी, बैंगनी और हरा। इन्हें हम ‘‘द्वितीय श्रेणी के रंग कहते हैं।
द पीला $ लाल = नारंगी
द लाल $ नीला = बैंगनी
द नीला $ पीला = हरा - समीपवर्ती या तृतीयक रंग – द्वितीय श्रेणी के दो रंगों के मिश्रण से जो रंग तैयार होते हैं। उन्हें हम समीपवर्ती या तृतीयक रंग कहते हैं।
द नारंगी $ बैंगनी = तृतीयक रंग
द बैंगनी $ हरा = तृतीयक रंग
द हरा $ नारंगी = तृतीयक रंग - पूरक या विरोधी रंग – वर्ण-क्रम में एक दूसरे के ठीक सामने आने वाली रंगतें एक-दूसरे की विरोधी रंगतें होती हैं अथवा किन्हीं भी दो प्रमुख रंगतों को मिला दिया जाये तो इससे प्राप्त द्वितीयक रंगत शेष बची हुई मुख्य रंगत की विरोधी रंगत होती है। जैसे – लाल का विरोधी या पूरक है – हरा, नारंगी का पूरक है नीला और बैंगनी का पूरक है पीला।
- अवर्णीय रंग – श्याम एवं श्वेत को अवर्णीय रंग माना जाता है लेकिन
किसी भी रंगत की तानों के लिए दो रंग महत्वपूर्ण होते हैं। - ऊष्ण तथा शीतल रंग – प्रकाश के प्रभाव से जब हम रंगों को देखते हैं। तब उत्तेजना के विचार से कुछ रंगों में उष्णता का प्रभाव और कुछ रंगों में शीतलता का प्रभाव उत्पन्न होता है। चित्रा में उष्ण रंगों से वस्तु निकट व शीतल रंगों से वस्तु के दूर होने का आभास होता है, जो रंगों से वस्तु के दूर होने का आभास होता है। जो रंग सूर्य के आस-पास वाले रगंत के होते हैं वे उष्ण स्वभाव के और जो रंग प्राकृतिक सुन्दरता जैसे पेड़-पौधे, सागर-आकाश के सम्बद्ध होते हैं वे शीतल स्वभाव वाले होते हैं।
- उष्ण रंग – लाल, पीला, नारंगी या इनके संयोग से बने रंग उष्ण स्वभाव वाले हैं।
- शीतल रंग – नीला, हरा या इनके संयोग से बने रंग शीत (ठण्ड) स्वभाव वाले होते हैं।
- उदासीन रंग – श्वेत, काला या इनके मिश्रण से बने रंग उदासीन रंग कहलाते हैं।
रंगों की विशेषताएं और प्रभाव –
रंग दृष्यात्मक अनुभूति का पक्ष होता है। यह मानव के मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं। रंगों का अपना प्रतीकात्मक व मनोवैज्ञानिक अर्थ भी होता हैं।
- लाल – यह सर्वाधिक उत्तेजित करने वाला रंग है। इस रंग से सक्रियता एवं आक्रमणता प्रकट होती है। यह रंग क्रोध, प्रेम, श्रृंगार व वीरता को भी प्रकट करता है।
- पीला – पीला रंग ऊर्जा प्रदान करने वाला आकर्षक रंग है। यह मानसिक सक्रियता को बढ़ाने वाला है। इससे प्रकाश, दिव्यता, प्रोत्साहन, आशा एवं सन्तुष्टि आदि प्रकट होती है।
- नीला – नीला रंग शान्ति को प्रकट करने वाला होता है। यह शीतलता व एकाग्रता प्रदान करता है। इससे आशा, लगन, आनन्द, विशालता, ईमानदारी, मधुरता, निष्क्रियता, विस्तार, अनन्तता, विश्वास, आत्मीयता एवं सद्भाव आदि प्रकट होता है।
- हरा – यह रंग ताजगी का एहसास कराने वाला है और मन को सुख की अनुभूति प्रदान करता है। इससे हरियाली प्रकट होती है। यह रंग सौन्दर्य, माधुर्य, सुरक्षा, विश्राम आदि को प्रकट करता है।
- बैगनी – यह रंग राजसी वैभव का प्रतीक है। इससे सम्मान, रहस्य, समृद्धि, प्रभावशीलता, ऐश्वर्य श्रेष्ठता एवं वीरता आदि प्रकट होती है। इसमें लाल एवं नीले रंग के मिश्रित प्रभाव विद्यमान रहते हैं।
- नारंगी – नारंगी रंग आध्यात्मिकता का सूचक है। यह प्रेरणादायक है और ज्ञान प्रदान करता है। यह अत्यधिक क्रियाशील है तथा चित्त को शान्ति प्रदान करता है। इस रंग से वीरता, संन्यास, वैराग्य, दर्शन, ज्ञान एवं गर्व आदि प्रकट होते हैं।
- सफेद – सफेद रंग शान्ति, शुद्धता, पवित्राता एवं सत्य का प्रतीक है। यह प्रकाश युक्त हल्का तथा कोमल है तथा शुद्ध रंगों की श्रेणी में आता है।
- काला – काला रंग गम्भीरता एवं एकान्तवास का प्रतीक है। यह शुद्ध रंगों की श्रेणी में आता है। इससे भय, शोक, आतंक, अवसाद, अन्धकार एवं विश्वासघात आदि प्रभाव उत्पन्न होते हैं। द
- शामभवी
रंग ः उपयोग की गई सामग्री
नीला ः नील
सफेद ः चावल का आटा
हरा-भरा ः सेब के पेड़ की पत्तियों
की लकड़ी
संतरा ः पलाश का फूल
(ब्यूटिया मोनोस्पर्म)
काला ः कालिख
लाल ः कुसुम के फूल
पीला ः हल्दी/पराग/चूना
मधुबनी पेंटिंग एक पारंपरिक कला है जिसका नाम जिला मधुबनी, बिहार के नाम पर रखा गया है।
मधुबनी या मिथिला उत्तर बिहार का एक छोटा और प्राचीन जिला है।
इसे हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सीता का जन्म स्थान कहा जाता है और रामायण में इसका उल्लेख किया गया है।
यह रंगों से भरी बहुत ही अयोग्य रेखाओं से युक्त रेखा चित्रों की विशेषता है।
यह चित्राकारी परंपरागत रूप से घरों की दीवारों पर की जाती थी।
लेकिन व्यावसायिक कारणों से अब कागजात पर काम किया जाता है।
वे पंख, टहनियाँ, कलम निब या यहाँ तक कि अंगुलियों जैसे उपकरणों का उपयोग करते हैं।
वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए, बांस के चारों ओर लिपटा कपास तूलिका
बनाता है।
उपयोग किए जाने वाले रंग स्वाभाविक रूप से निकाले जाते हैं।
व्यापक रूप से चित्रित विषय और डिजाइन हिंदू देवताओं के हैं- जैसे कृष्ण, राम, सीता, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सूर्य और चंद्रमा, तुलसी का पौधा, अदालत के दृश्य, शादी के दृश्य, सामाजिक घटनाएँ आदि।
सभी अंतरालों को भरने के लिए पुष्प, पशु और पक्षी रूपांकनों, ज्यामितीय डिजाइनों का उपयोग किया जाता है।