वर्तमान राजनीतिक परिवेश में छोटे से छोटे मामलों को राजनीतिक रंग देकर तिल का ताड़ बना दिया जा रहा है। जब हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगता है तो किसी भी समस्या का समाधान बेहद मुश्किल हो जाता है। गुजरात के ऊना का मामला हो, उत्तर प्रदेश के दादरी का मामला हो, कश्मीर के आतंकी बुरहान बानी का मामला हो या देश के विभिन्न भागों में घटित कुछ अन्य मामले हों, इन मामलों को जान-बूझकर सांप्रदायिक या जातीय रंग दिया गया। आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस पार्टी का अध्यक्ष दलित समाज से रह चुका हो, प्रधानमंत्राी पिछड़े वर्ग से हो और उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्पसंख्यक समाज से हो, उस दल पर एवं उसके नेतृत्व वाली सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि वह दलित विरोधी व सवर्ण मानसिकता से प्रेरित है। निश्चित रूप से बात मैं भाजपा की कर रहा हूं, जिसके अध्यक्ष स्व. बंगारू लक्ष्मण रह चुके हैं, जो दलित समाज से थे, प्रधानमंत्राी स्वयं पिछड़े वर्ग से हैं एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैन समाज से हैं। इसके बावजूद चर्चा किस प्रकार की हो रही है, यह पूरे देश के सामने है।
हालात यहां तब पहुंच गये कि प्रधानमंत्राी को गोरक्षकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी, जिसकी तमाम हिन्दू संगठनों ने निंदा की। विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगड़िया तो एक संवाददाता सम्मेलन में रो पड़े एवं यहां तक कह डाला कि प्रधानमंत्राी ने हमें यानी गोरक्षकों को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत ने भी कहा कि गोरक्षक कानून के दायरे में रहकर अपना काम कर रहे हैं, जिनको उनका काम समझ में नहीं आ रहा है, वे कुछ भी बोल सकते हैं। प्रधानमंत्राी को यह बात किन परिस्थितियों में कहनी पड़ी, यह व्यापक बहस का विषय हो सकता है किंतु गोरक्षकों में गोरक्षा के प्रति जो जुनून है उसे कैसे रोका जा सकता है? दरअसल, जुनून सिर्फ एक ही मामले में नहीं है, जुनून के अलग-अलग प्रकार हैं। लोगों में विभिन्न प्रकार का जुनून कैसे पैदा हुआ, यदि इस विषय में चर्चा की जाये तो इसकी जड़ें बहुत गहरी एवं पुरानी हैं।
दरअसल, यदि जुनून को परिभाषित किया जाये तो वह कुछ और नहीं बल्कि वैचारिक, लक्षित, संकलित एवं संकल्पित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु परिलक्षित होता है तो वह जुनून कहलाता है। व्यक्ति अपने जुनून को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिन-रात, सोते-जागते एवं उठते-बैठते उसी में लिप्त एवं मगन रहता है। देश में आजादी पाने के लिए इसी तरह का जुनून क्रांतिकारियों के दिमाग में पैदा हुआ था जिनके जुनून के कारण देश आजाद हुआ।
यह बात अलग है कि कुछ क्रांतिकारियों में आक्रामक जुनून था तो कुछ शांति के मार्ग पर चलकर अपना काम कर रहे थे। देश आजाद तो हुआ किंतु दुर्भाग्यवश देश का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन हो गया। जिसके कारण देश में सांप्रदायिक एवं कटट्रपंथी जुनूनियों की फौज खड़ी हो गयी। इसी कट्रपंथ के बीच देश के सत्ताधारी दल ने कुछ इस प्रकार शासन चलाया जिससे तथाकथित या नकली धर्मनिरपेक्षता का उदय हुआ। इस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण का राजनीतिक खेल प्रारंभ हुआ जिसके कारण देश में तमाम समस्याएं पैदा हुईं। हर छोटी-बड़ी घटना को वोटों एवं राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगा। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कट्टरपंथ एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की वजह से देश की एक बड़ी आबादी अपने को उपेक्षित महसूस करने लगी। ऐसे लोगों को लगा कि उन्हें सत्ता द्वारा शोषित एवं पीड़ित किया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में कुछ देशभक्तों ने कमर कसी और उपेक्षित समाज के साथ खड़े हो गये।
इसी कड़ी में भिन्न-भिन्न पहलुओं के संदर्भ में जुनूनी रक्षक खड़े एवं संगठित किये गये और इसी जुनून को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जो भी गतिविधियां संचालित की गयीं, इसी दौरान देशभक्तों की एक विशाल फौज खड़ी हो गयी। यह फौज देशभक्ति की रक्षा के साथ-साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा के लिए भी तत्पर रही। आचार्य विनोबा भावे जी के नेतृत्व में चला भूदान आंदोलन व लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चली समग्र क्रांति सहित राम मंदिर आंदोलन, गोरक्षा का आंदोलन, धारा 370 के खिलाफ आवाज एवं समान नागरिक संहिता ऐसे ही जुनून का परिणाम थी। इस मिशन में जो भी लोग जुनून के साथ लगे थे, अब उन्हें ऐसा लग रहा है कि वे राजनीति का शिकार हो रहे हैं।
चूंकि, आज देश में राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कुछ उलटे-सीधे काम होने लगे हैं। कांग्रेस पार्टी द्वारा चलायी गयी सरकारों में इस प्रकार के कारनामें बहुतायत में होते रहे हैं। आज देश में जो लोग सरकार चला रहे हैं, वह विशुद्ध रूप से देशभक्त एवं राष्ट्रवादी हैं किंतु उन्हें अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं राजनीतिक मजबूरियों के कारण अपनी मूल विचारधारा से हटकर सिर्फ विकास की राह पकड़नी पड़ रही है।
विकास की राह पर चलना निश्चित रूप से बहुत अच्छी बात है किंतु विचारधारा से एक हद तक समझौता करना तो ठीक है किंतु उससे आगे बढ़ना घातक भी हो सकता है। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा कि कुछ लोगों ने गोरक्षा के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं। प्रधानमंत्राी की यह बात गोरक्षकों का जुनून किस हद तक कम कर पायेगी यह तो बाद में पता चलेगा किंतु इतिहास इस बात का गवाह है कि राजनीतिक मजबूरियों के चलते कुछ समय के लिए जुनून को कम तो किया जा सकता है किंतु हमेशा के लिए दबाया नहीं जा सकता है। कहने का आशय यह है कि जो लोग अब तक हिंदुत्व की राह पर चले हैं, गोरक्षा के लिए काम किया है, राम मंदिर के लिए संघर्ष किया है, कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए आवाज बुलंद की है एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ आवाज उठाई है, यदि उनकी आवाज को एक सीमा से अधिक दबाया गया हो उसका क्या अंजाम होगा, इस बारे में आसानी से सोचा एवं समझा जा सकता है।
श्रीमती इंदिरा गांधी ने भिंडरा वाले को किसी मकसद से आगे बढ़ाया, किंतु जब वे उसे दबाने लगीं तो उसका क्या
परिणाम हुआ पूरा देश जानता है। कहा जाता है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ आतंकियों की एक विशाल फौज तैयार करवाने में मदद की किंतु जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से चला गया तो यही आतंकी अमेरिका के लिए सिरदर्द हो गये। वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय’। कहने का आशय यह है कि अपने कुछ खास मकसद से अमेरिका ने जिन आतंकियों को संरक्षण दिया, आज उसी के लिए वे आतंकी भस्मासुर बन गये हैं। आतंकवाद एवं कट्टरपंथ भी एक जुनून है, जिसकी वजह से देश एवं दुनिया में तबाही मची हुई है। इस प्रकार के जुनून को रोकने के लिए हर स्तर से सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए। इस संबंध में यदि पाकिस्तान की बात की जाये तो उसे आतंकवाद की फैक्ट्री कहा जा सकता है। भारत को तबाह करने के लिए पाकिस्तान आतंकियों को प्रशिक्षित करके भारत भेजता रहता है किंतु आज पाकिस्तान भी आतंकवाद की चपेट में पूरी तरह आ चुका है। वैसे भी पाकिस्तान जिस रास्ते पर चल रहा है उसके लिए वह आग का दरिया साबित हो सकता है।
आतंकवाद के मसले पर जब पहले भारत बात करता था तो पश्चिमी देश भारत की बात अनसुनी कर देते थे किंतु अब वे भी उससे पीड़ित हैं। कहने का आशय यह है कि जिसके दिमाग में एक बार अलगाववाद एवं आतंकवाद का जुनून पैदा हो गया तो उसे रोक पाना बहुत मुश्किल है। जिन लोगों ने भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से परेशान होकर नक्सलवाद की राह पकड़ी, आज भी वे उसे छोड़ नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके लिए अब वह जुनून बनने के साथ रोजी-रोटी का जरिया बन चुका है। दुनिया के तमाम देशों में आज इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ एवं आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिन देशों ने ऐसे लोगों को प्रश्रय दिया एवं उसे आगे बढ़ाया, उसका दंश उन्हें भी झेलना पड़ रहा है।
इसी प्रकार देश एवं दुनिया में तमाम ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे कि यदि किसी मिशन के लिए लोगों में जुनून पैदा किया गया किंतु जूनून पूरा न होने की स्थिति में जुनूनी उन्हीं के लिए सिरदर्द हो गये जिन्होंने इन्हें संगठित एवं तैयार किया। मेरा यह सब लिखने का सीधा-सा भाव यह है कि अयोध्या में राम मंदिर बनवाना, गोरक्षा, धारा 370 हटवाना एवं समान नागरिक संहिता लागू करवाना जिनका जुनून था और आज भी है उनकी धार निश्चित रूप से कुंद हो रही है या कुंद की जा रही है, सवाल यह है कि ऐसे लोग कब तक चुप बैठेंगे?
हिन्दुत्ववादी नेताओं की धार यदि कुंद होगी तो वे क्या करेंगे, इस पर गंभीर एवं व्यापक रूप से चिंतन करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्राी स्वयं उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यदि किसी बच्चे को चोरी-चुपके मिठाई खाने की आदत पड़ जाये तो आसानी से नहीं छूटती है। मां अपने बच्चे को जब मिठाई खाने से रोकती है तो वह उससे नाराज होता है और झगड़ा भी कर लेता है। जिन लोगों को समय से आफिस जाने की आदत नहीं थी और भ्रष्टाचार में लिप्त थे आज यदि उन्हें समय से आफिस जाना पड़ रहा है और भ्रष्टाचार करने को नहीं मिल रहा है तो वे सरकार के खिलाफ मोर्चा बंदी कर रहे हैं। समय से आफिस न जाना एवं भ्रष्टाचार करना भी एक तरह का जुनून ही है।
प्रधानमंत्राी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समय≤ पर कार्यकर्ताओं को आगाह करते हुए कहते रहते हैं कि उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि अब वे विपक्ष नहीं बल्कि सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता हैं, इसलिए उन्हें उसी के अनुरूप आचरण करना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्राी को अच्छी तरह पता है कि विपक्ष में भी रहने का जुनून ठीक वैसे ही है जैसे कि सत्ता में बने रहने का। शायद यही कारण है कि यदि नेता चाहते हैं कि कार्यकर्ता सत्ताधारी दल वाला आचरण पेश करें तो कार्यकर्ता भी इसी प्रकार के आचरण की उम्मीद नेताओं से करते हैं।
संगठन एवं कार्यकर्ताओं का विस्तार निहायत ही कुशलता का काम है किंतु उससे भी कुशलता का काम है कि कार्यकर्ताओं को सहेज कर रखना, उन्हें उनकी क्षमता के मुताबिक काम देना। जो पार्टी ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो पाती उसका संगठन एवं कार्यकर्ता बिखर जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में यह बात बेहद महत्वपूर्ण है कि जिस पार्टी की सदस्य संख्या दुनिया में सबसे अधिक है उसकी सरकार की उपलब्धियां एवं योजनायें हर घर तक क्यों नहीं पहुंच पा रही हैं? इसका सीधा-सा अभिप्राय यह है कि इसके लिए कार्यकर्ताओं में जुनून पैदा करना होगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी का जो मिजाज रहा है और विभिन्न कार्यों के लिए नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में जिस प्रकार का जुनून रहा है क्या उनकी अनदेखी तो नहीं हो रही है। यदि हो रही है तो उनका यह जुनून सरकार की उपलब्धियों पर भारी न पड़ जाये, यह गंभीर चिंतन का विषय है। नदी की धारा को यदि रोका जायेगा तो कहीं और से धारा निकलेगी किंतु नदी की धारा किसी भी कीमत पर रुक नहीं सकती है।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने विकास के बहुत सारे काम किये थे किंतु 2004 के आम चुनाव में अपनी मूल विचारधारा की चर्चा से पार्टी बच नहीं सकी थी।
परिणामस्वरूप उस सरकार का क्या हश्र हुआ, सबके सामने है। अपनी विचारधारा पर अडिग रहना भी एक जुनून है।
समाज में समरसता एवं सद्भावना पैदा करने के लिए ऐसी जुनूनी ताकतों को और अधिक मजबूत करना होगा जो राष्ट्र को मजबूत करने में लगी हुई हैं किंतु ऐसे जुनूनियों को हतोत्साहित करना होगा जिनमें सांप्रदायिक, अलगाववाद, नक्सलवाद, क्षेत्राीय, जातीय, वर्गीय, कामचोरी एवं भ्रष्टाचार का जुनून है। समाज में जो लोग अपने आपको जनता-जनार्दन का ठेकेदार समझते हैं, उन्हें इस तरफ विशेष रूप से ध्यान होगा। इस प्रकार के जुनून को समाप्त करना होगा, यदि समाप्त न हो सके तो कम अवश्य किया जाना चाहिए।