वर्तमान समय का यदि विश्लेषण किया जाये तो अपने आप स्पष्ट हो जाता है कि पूरे विश्व में एक दूसरे के प्रति विरोध बढ़ रहा है। चाहे वह किसी भी स्तर पर हो यानी कि वह एक देश का दूसरे देश के प्रति भी हो सकता है तो एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के प्रति भी हो सकता है। इस प्रकार का विरोध बढ़ने के पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं किंतु प्रथम दृष्ट्या विचार किया जाये तो आर्थिक असमानता, रंगभेद, जातिवाद, क्षेत्रावाद, भाषावाद, संप्रदायवाद एवं कुछ अन्य कारण प्रमुख रूप से सामने आते हैं।
दुनिया के विकसित एवं मजबूत राष्ट्र अपनी आर्थिक ताकत एवं हथियारों के दम पर पूरे विश्व में अपना वर्चस्व चाहते हैं तो कमजोर देश अपने पड़ोसी देशों पर नियंत्राण करने के लिए शक्तिशाली राष्ट्रों के इर्द-गिर्द दुम दबाकर हाजिरी लगाने के लिए विवश हैं। वैसे भी देखा जाये तो कमजोर राष्ट्र यानी आर्थिक एवं सामरिक ताकत में कमजोर देश असुरक्षा की भावना से ग्रसित हैं। शायद इन्हीं कारणों से आतंकवाद, नक्सलवाद एवं अन्य प्रकार की हिंसक गतिविधियों को पनपने का मौका मिलता है। शक्तिशाली राष्ट्र अपने से कमजोर राष्ट्रों के समक्ष भले ही धौंस जमाते हों और अपने को मसीहा के रूप में पेश करने का काम करते हैं किंतु देखा जाये तो कमोबेश सभी देशों की समस्याएं लगभग एक जैसी ही हैं, उसके स्वरूप अलग-अलग अवश्य हैं।
जब छोटी-बड़ी समस्याएं सामाजिक जीवन में प्रवेश कर जाती हैं तो वे और अधिक गंभीर होने लगती हैं क्योंकि एक देश अपने देश के लोगों को दूसरे देश के खिलाफ तो कर सकता है किंतु अपने देश के लोगों के खिलाफ नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा करना भी चाहता है तो सामाजिक युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। हालात ऐसे बन गये हैं कि कुछ लोग खा-खाकर परेशान हैं तो कुछ लोग खाने बिना मर रहे हैं। आखिर ऐसी स्थिति के बारे में क्या कहा जा सकता है कि किसी के बच्चे को एक बूंद दूध नसीब न हो और किसी का कुत्ता दूध से मुंह फेर ले। ऐसी स्थिति में असंतोष ही पनपता है और यही असंतोष बढ़ते विरोध के रूप में सामने आता है और विरोध की पराकाष्ठा होने पर विद्रोह का रूप अख्तियार कर लेता है। इस प्रकार की स्थिति किसी एक विशेष राष्ट्र की नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में थोड़े-बहुत अंतर के साथ ऐसा ही देखने को मिल रहा है।
ऐसी स्थितियों के पनपने के कारणों पर विचार किया जाये तो कहा जा सकता है कि अर्थ की बदौलत शासन, मानवता एवं करूणा का पतन, दानवता की प्रवृत्ति का बढ़ना, किसी भी प्रकार की भूख का शान्त न होना, अपने को एक दूसरे से बड़ा समझना आदि प्रमुख रूप से ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से पूरी दुनिया में अशांति बढ़ रही है। कोई भी देश अपने को चाहे जितना भी ताकतवर एवं सुरक्षित समझता हो किंतु वास्तव में वैसा वह है नहीं? वास्तव में आज पूरी दुनिया बारूद के ढेर पर है। कब कहां, क्या हो जायेगा, कहा नहीं जा सकता है?
इंग्लैंड के मैनचेस्टर में आतंकी हमले के पीछे जिस युवक का नाम आ रहा है उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह इंग्लैंड में शरणार्थी के रूप में रह रहा था। अब सवाल यह उठता है कि जो लोग अपनी जान बचाकर दूसरे देशों में
शरणार्थी के रूप में अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं और वही उस देश में आतंकवाद फैलाने लगें तो असहाय लोगों को शरण देने से लोग कतरायेंगे और कोई भी देश दूसरे देश के लोगों को शरण देने से पहले सौ बार सोचेगा। यदि ऐसे ही चलता रहा तो लोगों का मानवता से विश्वास उठ जायेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिन देशों के नागरिकों को अमेरिका आने से प्रतिबंधित कर रखा है, संभवतः इन्हीं कारणों से किया होगा? भारत में बांग्लादेशी एवं पाकिस्तानी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं किंतु उनमें तमाम ऐसे हैं जो
शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के बजाय भारत में आतंकवाद एवं अन्य गतिविधियों में लिप्त हैं। आखिर ऐसे लोगों का क्या किया जाये? कहने का आशय यही है कि पूरा विश्व विनाश की कगार पर खड़ा है। सरकारें राजनीतिक स्वार्थ की वजह से समस्याओं के समाधान की बजाय समस्याओं को उलझाने में लगी हैं जबकि वास्तविकता यह है कि कभी-न-कभी तो समस्या का समाधान निकालना ही होगा। समय रहते यह काम कर लिया जाये तो अच्छा ही होगा। आशंका व्यक्त की जा रही है कि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। एक मामूली-सी चिनगारी कभी भी पूरे विश्व को युद्ध की आग में झोंक सकती है और उस दिन पूरी दुनिया विनाश लीला देखने के लिए विवश होगी।
अब सवाल यह उठता है कि जब पूरी दुनिया में समास्याएं विद्यमान हैं और सबको एक-दूसरे के साथ की जरूरत है तो क्यों न ऐसा प्रयास किया जाये जिससे पूरे विश्व का भला हो। हालांकि, दुनिया के तमाम देशों की समस्याएं सुलझाने के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन बने हैं लेकिन उनके प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अभी हाल ही में भारतीय सैन्य अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में भारत-पाकिस्तान की नापाक हरकतों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया किंतु उसकी बात पर पाकिस्तान कितना अमल करेगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता? इन समस्याओं के निदान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसी सरकार हो जिसमें सभी देशों की भागीदारी हो और वह एक मजबूत सरकार या संगठन हो। किसी भी देश के प्रति यह सरकार यदि कोई निर्णय ले तो उसे लागू कराने की भी स्थिति में हो?
एक ज्वलंत प्रश्न यह है कि पाकिस्तान के परमाणु बम यदि आतंकवादियों या चरमपंथियों के हाथ लग जायें तो उसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि यह काम पाकिस्तान सरकार के वश का नहीं है। भारत यदि कुछ करेगा तो कहा जायेगा कि यह दूसरे देश की संप्रभुता का उल्लंघन है। आखिर ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कुछ तो करना ही होगा।
उत्तर कोरिया हथियारों के मामले में बेलगाम साबित होता जा रहा है। आखिर उत्तर कोरिया को कौन नियंत्रित करेगा? इन्हीं परिस्थितियों से निपटने के लिए जहां तक मेरा विचार है कि विश्व स्तर पर एक ऐसा संगठन या सरकार बने जिसमें तपस्वी, त्यागी, सामाजिक भाव से ओत-प्रोत, किसी भी क्षेत्रा में चरम सीमा पर पहुंचकर वैराग्य धारण करने वाले व्यक्तित्व एवं अन्य सामाजिक लोग सम्मिलित हों। इस संगठन या सरकार में प्रत्येक देश का कम से कम एक प्रतिनिध सम्मिलित होना चाहिए। जिस देश की जनसंख्या अधिक हो वहां पांच करोड़ की आबादी पर एक प्रतिनिधि का चयन होना चाहिए किंतु किसी भी देश की अधिकतम संख्या दस हो, चाहे वहां की आबादी कितनी ही क्यों न हो?
जिस तरह सभी देश अपने यहां सरकारें बनाते हैं उसी के अनुरूप विश्व सरकार में भी प्रतिनिधियों का चयन कर उन्हें अलग-अलग जिम्मेदारी दी जा सकती है। समय एवं परिस्थितियों के मुताबिक इस विश्व सरकार की शक्तियां घटाई एवं बढ़ाई जा सकती हैं। यदि इस दिशा में गहन चिंतन एवं प्रयास किया जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विश्व शांति की दिशा में एक अनुपम पहल साबित हो सकती है। इस विश्व सरकार में कैसे लोगों को शामिल किया जाये, इस बारे में भी एक गाइड-लाइन बनाई जा सकती है जिससे किसी के मन में यह भ्रम न रहे कि इसमें किस तरह के लोग सम्मिलित हो सकते हैं? हालांकि, इस संगठन में ऐसे लोगों को जरूर तरजीह मिलनी चाहिए जो विश्व शांति एवं विश्व कल्याण की दिशा में पहले से ही प्रयासरत हैं।
फिलहाल इस सरकार में कौन लोग शामिल हो सकते हैं उन नामों पर अभी से चर्चा करना उचित नहीं समझता क्योंकि ऐसा करना अभी से जल्दबाजी होगी। फिर भी मेरे विचार से श्री अन्ना हजारे, श्री श्री रविशंकर जी, आचार्य विद्यासागर जी महाराज, संघ प्रमुख मोहन भागवत जी, अजीम ‘प्रेमजी’, बिल गेट्स, दलाई लामा जी, फ्रांसिस (पोप), जयेन्द्र सरस्वती जी (शंकराचार्य) जैसी विभूतियों को सम्मिलित किया जा सकता है परंतु इतनी बात निश्चित रूप से कहना चाहता हूं कि इस सरकार को फौरी तौर पर जो कुछ करना होगा उसके कुछ बिंदुओ ंपर अवश्य चर्चा करना चाहूंगा। उदाहरण के तौर पर जब पूरी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ अग्रसर हो रही है तो उसे रोकने का प्रयास करना होगा?
विश्व युद्ध की किसी भी चिनगारी को धधकने से पहले रोकना होगा, पूरी दुनिया में अमीर-गरीब के बीच व्याप्त खाई को पाटने के लिए गंभीर प्रयास करना होगा, अर्थतंत्रा के दम पर पूरी दुनिया पर वर्चस्व कायम रखने की इच्छा रखने वालों को नियंत्रित करना होगा, धर्म-अधर्म के बीच संतुलन कायम करना होगा, दानवी प्रवृत्ति को रोककर मानवीयता का विकास करना होगा, क्षेत्राीय एवं जातीय विषमता की खाई को पाटना होगा, भाषा, एवं नस्ल के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करना होगा। कहने का आशय यह है कि जिन-जिन कारणों से पूरी दुनिया में अशांति,
असुरक्षा एवं भय का वातावरण उत्पन्न
हो रहा है, उन्हें ही दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सरकार को युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा।
एक आशंका यह व्यक्त की जाती रही है कि पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने का कार्य राजनीतिक लोगों द्वारा संभव नहीं है या राजनैतिक लोग जान-बूझकर करना नहीं चाहते, इसीलिए यह काम गैर राजनीतिक लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। हालांकि, यह तो भविष्य में तय हो सकेगा कि इस काम के लिए किस तरह के लोग बेहतर साबित हो सकते हैं किंतु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि इस दिशा में पहल हुई तो निश्चिित रूप से इसके परिणाम बेहद सकारात्मक आयेंगे। आवश्यकता इस बात की है कि विश्व शांति के लिए चिंतित एवं प्रयासरत लोग इस दिशा में आगे बढ़ें और मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि कारवां खुद-ब-खुद आगे बढ़ता ही जायेगा।