दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए


आजकल ‘नोटबंदी’ की वजह से तमाम तरह की चर्चाएं गर्म हैं। देश की जनता, राजनेता एवं राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिये से ‘नोटबंदी’ का विश्लेषण कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि यह जनता के साथ आर्थिक डकैती है तो कोई कह रहा है कि यह बहुत बड़ा घोटाला है तो कोई कह रहा है कि प्रधानमंत्राी ने ‘नोटबंदी’ का फैसला उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया है।

बहरहाल, जो भी हो, प्रधानमंत्राी ने 8 नवंबर को ‘नोटबंदी’ लगाने से पहले शायद यह नहीं सोचा होगा कि देश में लोगों के पास इतना पैसा होगा। ‘नोटबंदी’ के बाद जैसे-जैसे समस्याएं आती गयीं, सरकार उनके निदान में लग गयी है। हो सकता है कि हालात सामान्य होने में अभी कुछ समय लगे किंतु इस पूरे प्रकरण में इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि इतना बड़ा फैसला देश के किसी अन्य नेता या अन्य सरकार ने लिया होता तो संभवतः जनता में उसकी किरकिरी हो गयी होती किंतु यह मोदी जी के ही व्यक्तित्व का कमाल है कि घंटों लाइन में लगने के बावजूद जनता उनके साथ है।

आम जनता का स्पष्ट रूप से मानना है कि प्रधानमंत्राी ने इतना बड़ा निर्णय राष्ट्र हित में लिया है। तमाम विपक्षी दलों ने ‘नोटबंदी’ के मामले में प्रधानमंत्राी को घेरने की कोशिश की किंतु वे अपने निर्णय पर अटल रहे। पश्चित बंगाल की मुख्यमंत्राी ममता बनर्जी ने तो जैसे उनके खिलाफ जंग का ऐलान ही कर दिया है।

दिल्ली के स्व-घोषित ईमानदार मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल की हालत तो ऐसी हो गयी है कि जैसे ‘नोटबंदी’ से उनका बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने तो बार-बार कहा कि प्रधानमंत्राी को नोटबंदी लागू करने से पहले कुछ वक्त देना चाहिए था। विपक्षी दल के नेता देश की जनता को यह समझा पाने में कामयाब तो नहीं हो पाये कि उन्हें समय क्यों चाहिए था किंतु मोदी जी देशवासियों को यह समझाने में निश्चित रूप से कामयाब हो गये कि विपक्षी दलों को समय क्यों चाहिए? राजनीति में इसी को कहा जाता है विश्वसनीयता का कमाल।

विश्वसनीयता की कसौती पर यदि देखा जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी जी की लोकप्रियता अभी भी पूर्ण रूप से बरकरार है। विपक्षी दलों ने जनता को तमाम तरह से उकसाने की कोशिश की किंतु उसे छुटपुट घटनाओं को छोड़कर कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई। जनता लाइन में लगकर बेहद खुश है बशर्ते वह चाहती है कि अमीरों के पास से कालाधन बाहर आये। अमीरों से कालाधन कब वापस आयेगा यह तो फिलहाल वक्त पर छोड़ देना बेहतर है किंतु आये दिन जिस प्रकार नये नोटों का जखीरा पकड़ा जा रहा है उससे यह कहा जा सकता है कि धन कुबेरों ने अपना काला धन सफेद करने के लिए नये-नये रास्ते ढूंढ लिये हैं। बैंकिंग क्षेत्रा के तमाम लोग जिस प्रकार पूरे खेल में पकड़े गये उससे यह साबित होता है कि बैंकिंग क्षेत्रा ने पूरी ईमानदारी से भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं किया। पहले से ही तमाम भ्रष्ट विभागों को हैं जिन्हें भ्रष्टाचार में बैंकिग क्षेत्रा ने पछाड़ दिया है।

हालांकि, जो लोग भी प्रधानमंत्राी को ठीक से जानते हैं उनका स्पष्ट रूप से मानना है कि प्रधानमंत्राी किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को छोड़ने वाले नहीं हैं जिन्होंने नोटबंदी के मिशन को पलीता लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। अपने देश में एक पुरानी कहावत है कि ‘दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए’। नोटबंदी के मामले में प्रधानमंत्राी ने यह साबित करके दिखा दिया है। तमाम नेताओं सहित कुछ जनता का भी यह मानना है कि प्रधानमंत्राी ने नोटबंदी से पहले समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की।

अब सवाल यह उठता है कि क्या इतना बड़ा फैसला ढोल बजाकर लिया जा सकता है। यदि प्रधानमंत्राी नोटबंदी का फैसला पूरे शोर-शराबे के साथ करते तो अपने उस मिशन में वे कामयाब नहीं होते जो सोच रहे थे। नोटबंदी का देश में क्या प्रभाव पड़ा है उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि हिंदुस्तान का धुर विरोधी राष्ट्र पाकिस्तान अपने यहां सबसे बड़ी नोट को बैन करने का विचार कर रहा है।

भारत में ‘नोटबंदी’ से प्रभावित होकर बेनेजुयला ने अपने यहां सौ के नोट को बैन कर दिया किंतु उसे बहुत कामयाबी नहीं मिल पाई। विरोध प्रदर्शन के कारण उसे अपना फैसला वापस लेना पड़ा किंतु प्रधानमंत्राी के व्यक्तित्व का प्रभाव देखिये कि भारत में आज भी जनता उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। आखिर यह सब क्या है, कहीं न कहीं जनता उनके फैसले को स्वीकार कर चुकी है।

तमाम लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्राी ने देश की जनता से पचास दिन का वक्त मांगा है। दिसंबर क महीना समाप्त होते ही पचास दिन पूरे हो जायेंगे। उसके बाद क्या होगा, उस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है क्योंकि जनता ने प्रधानमंत्राी की बात पर भरोसा किया है।

‘नोटबंदी’ के बाद उत्पन्न कैश की समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्राी ने ‘डिजिटल कैश’ के लेन-देन पर विशेष जोर दिया है। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है, किंतु ‘लेस कैश टू कैशलैस’ अभियान को सफल बनाने के लिए पूरी पार्टी प्रयासरत है। पार्टी कार्यकत्र्ता इस मामले में जनता को जागरूक कर रहे हैं। इस अभियान को भी विफल करने के लिए तमाम विपक्षी दलों एवं राजनेताओं ने कमर कस ली है। वे इसके विरोध में तमाम तरह का तर्क दे रहे हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं कि जिस देश की एक बहुत बड़ी आबादी अनपढ़ है वहां ‘डिजिटल कैश’ अभियान का क्या औचित्य है किंतु प्रधानमंत्राी धुन के पक्के हैं और इस अभियान को भी सफल बनाकर रहेंगे। आज ‘डिजिटल’ माध्यम से व्यापार एवं आपसी लेन-देन को काफी बढ़ावा मिल रहा है तथा जनता को इसमें खूब आनंद भी आ रहा है।

बात सिर्फ भारत में किसी योजना को लागू कर सफल बनाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मोदी जी ने पूरी दुनिया को अपनी नेतृत्व क्षमता का कायल बना दिया है। गुजरात का मुख्यमंत्राी रहते समय जिन देशों ने प्रधानमंत्राी को वीजा देने से इंकार कर दिया था, आज वे उनके स्वागत के लिए पलक-पांवड़े बिठाये हैं। अमेरिका सहित तमाम प्रमुख देशों में मोदी काफी लोकप्रिय हैं और उनकी निर्णय क्षमता को सराहा भी जा रहा है। भारत अब अमेरिका, इंग्लैंड एवं जर्मनी एवं अन्य देशों के साथ बराबरी के साथ खड़ा है। पूरी दुनिया भारत को तवज्जो देने लगी है। आखिर इसी को कहते हैं कि दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आगामी समय में विश्व बिरादरी में मोदी जी की प्रतिष्ठा और बढ़ेगी।

मोदी जी द्वारा लिया गया ‘नोटबंदी’ का फैसला एक मिसाल बन गया है। कैशलैस लेन-देन के लिए कहा जा रहा है कि साइबर क्राइम उसके बारे में बहुत बड़ी बाधा है किंतु उसे दूर करने के लिए प्रधानमंत्राी हर स्तर से प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्राी का स्पष्ट रूप से मानना है कि जनता का विश्वास किसी भी कीमत पर टूटना नही चाहिए। इसके लिए निहायत ही आवश्यक है कि जनता की नब्ज को पकड़े रहने का प्रयास किया जाये।

गुजरात का मुख्यमंत्राी रहते समय प्रधानमंत्राी पर विपक्षी दलों का जितना प्रहार हुआ है शायद ही हिन्दुस्तान के किसी नेता पर हुआ हो किंतु प्रधानमंत्राी ने अपने को कदम-कदम पर और भी निखारने का प्रयास किया है। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगे के समय और उसके बाद से आज तक कांग्रेस पार्टी सहित तमाम विपक्षी दलों के नेता मोदी जी को मौत का सौदागर बताते रहे हैं किंतु प्रधानमंत्राी ने यह साबित करके दिखा दिया कि झूठी धर्म-निरपेक्षता से देश का भला होने वाला नहीं है।

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्राी ने भावी भारत की जो कल्पना की थी और जो खाका पेश किया था, उस पर जनता ने यकीन किया और मोदी जी को पूर्ण बहुमत दिया। गुजरात का मुख्यमंत्राी रहते समय ही कांग्रेस को यह अहसास हो गया था कि वह मोदी जी का किसी भी कीमत पर मुकाबला  नहीं कर सकती है। संभवतः इसी वजह से कांग्रेस पार्टी एवं अन्य विपक्षी दल सबसे अधिक प्रहार उन्हीं पर करते थे किंतु मोदी जी ने उन सभी दलों को झुका कर दिखा दिया कि झूठ की बुनियाद पर कोर्द भी इमारत बहुत दिनों तक बुलंद नहीं की जा सकती है।

प्र्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने बार-बार इस कहावत को चरितार्थ किया है कि ‘दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए,। यूपीए के शासन काल में चारों तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला था। जनता सरकार के प्रति नाउम्मीदों में जी रही थी। सरकार में निर्णय लेने की क्षमता नहीं के बराबर थी, ऐसे में इस प्रकार का वातावरण बन गया था कि इस देश का कुछ नही होने वाला है। कुछ भी हो जाये यहां ईमानदारी की बात नहीं हो सकती है और न ही कोई ईमानदारी से राजनीति कर सकता है किंतु लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने जनता को यह विश्वास दिलाने में सफलता पाई कि जनता का नाउम्मीद होने का कोई कारण नहीं है। यह देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। इसी वजह से जनता ने मोदी जी को अपना भरपूर समर्थन दिया और उसका उदाहरण आज सबके सामने है।

‘नोटबंदी’ के बाद देशवासियों को यह विश्वास हो गया है कि भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में प्रधानमंत्राी का यह अंतिम कदम नहीं है। प्रधानमंत्राी ने भी जनता के समक्ष यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इतने से ही शांत होकर बैठने वाले नहीं हैं। अपने देश में सोने के रूप में कालेधन की बहुत बड़ी मात्रा विद्यमान है। हालांकि, सरकार ने आंशिक रूप से यह तय कर दिया है कि कौन कितना सोना रख सकता है। मोदी जी का कहना है कि उस बेनामी संपत्तियों की बारी है, यानी कि भ्रष्टाचारियों के पीछे प्रधानमंत्राी हाथ धोकर पड़ चुके हैं। निश्चित रूप से वे देश से भ्रष्टाचार समाप्त करके ही रहेंगे।

प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने हिन्दुस्तान की राजनीति में एक और कारनामा कर दिखाया है। उन्होंने बिना किसी लोक-लुभावन घोषणा के भाजपा को केंद्रीय सत्ता में पहुंचा दिया। गुजरात में वे लंबे समय तक मुख्यमंत्राी रहे किंतु उन्होंने कोई लोक-लुभावन घोषणा नहीं की। राजनीति में बिना किसी लोक-लुभावन घोषणा के चुनाव जीतना और लंबे समय तक शासन चलाना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। आखिर इसे क्या कहा जायेगा। निष्पक्ष रूप से यदि विपक्ष विश्लेषण करे तो उसे यह समझ में आ जायेगा कि जनता का वास्तविक प्रतिनिधि वही है जो बिना छल-कपट के जनता का दिल जीते और प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने हमेशा यही किया है।