द यह कि स्वस्थ व अस्वस्थ रहने के
लिए योग, भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं हैं।
द यह कि लकवा सोडियम की कमी के कारण होता है।
द यह कि हाई बी.पी. में स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी में डालकर स्नान करें।
द यह कि लो बी.पी. में सेंधा नमक डालकर पानी पीयें।
द यह कि कूबड़ निकलना फास्फोरस की कमी के कारण होता है।
द यह कि कफ फास्फोरस की कमी से निकलता है। फास्फोरस की पूर्ति हेतु गुड़ व शहद खाएं ।
द यह कि दमा, अस्थमा सल्फर की कमी के कारण उभरता है।
द यह कि सिजेरियन आपरेशन आयरन, कैल्शियम की कमी के कारण भी होता है।
द यह कि सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद सेवन करनी चाहिए।
द यह कि अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले लेनी चाहिए।
द यह कि जम्भाई शरीर में आक्सीजन की कमी के कारण भी आती है।
द यह कि जुकाम जिसको हो अगर वह प्रातः काल जूस पीते हैं तो उसमें काला नमक व अदरक डालकर पियें।
द यह कि तांबे के बर्तन में रखा पानी प्रातः खड़े होकर नंगे पांव की अवस्था में नहीं पीना चाहिए।
द यह कि भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी न पियें।
द यह कि गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है। गिलास अंग्रेजों (पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है। अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है।
द यह कि अस्थमा, मधुमेह, कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियां बचाती हैं, खाई जानी चहिए।
द यह कि वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा।
द यह कि परम्परायें वहीं विकसित होगीं जहां जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होंगी।
द यह कि अर्जुन की छाल के सेवन से पथरी की समस्यायें न के बराबर
होती हैं।
द यह कि आर. ओ. का पानी कभी न पियें, यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता। कुएं का पानी पियें। बारिस का पानी सबसे अच्छा, पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है।
द यह कि सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें।
द यह कि पेट के बल सोने से
हार्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या पनपती है।
द यह कि भोजन के लिए पूर्व दिशा उत्तम मानी जाती है।
द यह कि भारत में लगभग 4,000 बड़े कत्लखाने हैं, जिनके पास पशुओं को काटने का लाइसेंस है।
द यह कि इसके अलावा लगभग 40,000 से अधिक छोटे कत्लखाने हैं जो गैर कानूनी ढंग से चल रहे हैं। जहां हर साल 400 करोड़ पशुओं का कत्ल किया जाता है।
द यह कि जिसमें गाय, भैंस, सूअर, बकरा,बकरी, ऊंट आदि शामिल हैं, मुर्गियां कितनी काटी जाती हैं इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है।
द यह कि मांस के अलावा दूसरी जो चीज कत्ल से प्राप्त की जाती है वो है तेल। उसे ज्मससवू कहते हैं।
द यह कि गाय के मांस से जो तेल निकलता है उसे ठमम िज्मससवू और सूअर की मांस से जो तेल निकलता है उसे च्वता ज्मससवू कहते हैं।
द यह कि इस तेल का सबसे ज्यादा उपयोग चेहरे में लगाने वाली क्रीम बनाने में होता है, जैसे थ्ंपत – स्वअमसलए च्वदकेए म्उंउप इत्यादि।
द यह कि ये तेल क्रीम बनाने वाली कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है।
द यह कि थ्ंपत ।दक स्वअमसल कंपनी ने खुद मद्रास हाई कोर्ट में माना था कि हम इसमें सूअर की चर्बी का तेल मिलाते हैं।
द यह कि कत्लखानों में मांस और तेल के बाद, जानवरों का खून निकाला जाता है।
द यह कि खून का सबसे ज्यादा प्रयोग अंग्रेजी दवा (एलोपैथिक) बनाने के काम में किया जाता है।
द यह कि क्म म्गवतंदहम बहुत ही च्वचनसंत दवा है और डाक्टर इसको खून की कमी के लिए महिलाओं को लिखते हैं, खासकर जब वो गर्भावस्था में होती है।
द यह कि इसके अलावा इस रक्त का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर स्पचेजपबा बनाने में होता है।
द यह कि चाय तो पौधे से प्राप्त होती है और चाय के पौधे का ैप्रम उतना ही होता है, जितना गेहूं के पौधे का होता है।
द यह कि उसमें पत्तियां होती हैं और पत्तियों के नीचे का जो टूट कर गिरता है, जिसे डंठल कहते हैं, आखिरी हिस्सा लेकिन ये चाय नहीं है।
द यह कि कंपनियां ठतववाइवदकए स्पचजवदए आदि ब्रांड की चाय पत्ती के नीचे के चूरे में जानवरों के खून को मिल कर सुखा कर डिब्बे में बंद कर बेचती हैं।
द यह कि तकनीकी भाषा में इसे ज्मं क्नेज कहते हैं। इसके अलवा कुछ कंपनियां छंपस च्वसपेी बनाने में प्रयोग करती हैं।
द यह कि मांस, तेल, खून के बाद कत्लखानों में पशुओं की हड्डियां निकलती हैं, इसका प्रयोग ज्ववजी च्ंेजम बनाने वाली कंपनियां करती हैं।
द यह कि ब्वसहंजमए ब्सवेम न्चए च्मचेवकमदजए ब्पइंबं आदि आदि ैींअपदह ब्तमंउ बनाने वाली काफी कंपनियां भी इसका प्रयोग करती हैं।
द यह कि आजकल हड्डियों का प्रयोग टैल्कम च्वूकमत बनाने में होने लगा है। क्यों कि यह थोड़ा सस्ता पड़ता है।
द यह कि टैल्कम च्वूकमत पत्थर से बनता है और 60 से 70 रुपए किलो मिलता है और पशुओं की हड्डियों का च्वूकमत 25 से 30 रुपए किलो मिल जाता है।
द यह कि इसके बाद गाय के ऊपर की जो चमड़ी है, उसका सबसे ज्यादा प्रयोग ब्तपबामज ठंससए विवजइंसस, जूते, चप्पल इत्यादि बनाने में किया जाता है जो ेवजि होती है।
द यह कि अगर भ्ंतक उंजमतपंस है तो ऊंट और घोड़े के चमड़े का है। इसके अलावा चमड़े का उपयोग पर्स, बेल्ट व सजावट के सामान में किया जाता है।
द यह कि गाय के शरीर के अंदर के कुछ भाग हैं। उनका भी बहुत प्रयोग होता है। जैसे गाय में बडी़ आंत, इसको पीस कर ळमसंजपद बनाई जाती है।
द यह कि जिसका बहुत ज्यादा उपयोग आइसक्रीम, चाकलेट, डंहहपए च्प्र्रंए ठनतहमतए भ्वजकवहए ब्ींूउपद के ठंेम डंजमतपंस बनाने में होता है।
द यह कि एक श्रमससल आती है त्मक व्तंदहम ब्वसवनत की, उसमें ळमसंजपद का बहुत प्रयोग होता है। ब्ीमूहनउ तो ळमसंजपद के बिना बन ही नहीं सकती।
द यह कि आजकल जिलेटिन का उपयोग साबूदाना में होने लगा है, जो हम उपवास में खाते हैं।
द यह कि दूध से लेकर दही और मक्खन तक साबूदाना सोया सॉस, आटा, रवा, अचार, मसाले, बादाम, सब्जियां फ्रिज में कुछ भी भरें, चाहे खाने के बाद आधा बचा हुआ फल, कल की बनी दाल, चावल, सब्जियां, मसाले, सभी प्रकार के मसाले के पैकेट, शीत पेय, मिठाइयां, अधिक महंगी वस्तुएं इत्यादि फ्रीज में रखने पर कैंसर का वायरस बनती जा रही हैं।
द यह कि 1,000 लोगों के एक अध्ययन में पाया गया कि 1,000 में से 538 लोगों को कैंसर का पता चला था, उनमें से ज्यादातर महिलाएं थीं जिनके
द्वारा फ्रीज का अधिक इस्तेमाल किया
जाता है।
द यह कि जितना हो सके उतना ही लायें और बनायें।
द यह कि चने के आटे, अन्य आटे आदि में कीट बहुत जल्दी प्रवेश कर जाते हैं।
द यह कि दो दिन के लिए जितनी जरूरत हो उतने फल और सब्जियां बाजार से लाईं जायें।
द यह कि बचा हुआ अतिरिक्त दूध 48 घंटे में फेंक दें क्योंकि इसके बाद यह दूषित हो जाता है। द
संकलन – सम्पदा जैन
सेवन करें अगर…
द दूध न पचे तो सौंफ।
द दही न पचे तो सोंठ।
द छाछ न पचे तो जीरा व काली मिर्च।
द अरबी व मूली ना पचे तो अजवायन।
द कढ़ी न पचे तो कढ़ी पत्ता।
द तेल, घी, न पचे तो कलौंजी।
द पनीर न पचे तो भुना जीरा।
द भोजन न पचे तो गर्म जल।
द केला न पचे तो इलायची।
द ख़रबूज़ा न पचे तो मिश्री का उपयोग करें।