प्रधानमंत्राी बनने के बाद से लगातार नरेंद्र मोदी जी की लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। जिन देशों ने अपने यहां उनके आने पर प्रतिबंध लगा रखा था आज वे देश प्रधानमंत्राी की नेतृत्व क्षमता का लोहा मानने लगे हैं। आज चर्चा का विषय यह नहीं है कि पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय नेता कौन है अपितु चर्चा इस बात की है कि आजादी के बाद से पूरे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं स्वीकार्य नेता कौन है? इस लिहाज से यदि मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आजादी के बाद से अब तक पूरी दुनिया में प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं स्वीकार्य नेता के रूप में उभरे हैं। यह चर्चा 8 नवंबर के बाद और तेजी से उभरी है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्राी ने 8 नवंबर को 500 एवं 1000 के नोट बंद करने की घोषणा की। इस नोटबंदी की भारत सहित पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। इसके दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे, यह तो बाद में ही पता चलेगा किंतु एक बात निश्चित रूप से ही कही जा सकती है कि प्रधानमंत्राी ने नोटबंदी का फैसला निहायत ही नेक इरादों से लिया है। वैसे भी कहा जाता है कि – ‘इरादे नेक हों तो मंजिल मिल ही जाती है।’ हालांकि, नोटबंदी के फैसले की आलोचना के तात्कालिक कारण हो सकते है किंतु इसके दीर्घकालिक परिणाम अच्छे एवं सुखद आने की संभावना अधिक है। प्रधानमंत्राी ने भी जनता से विनम्रतापूर्वक अपील की है कि जब होली एवं दीपावली में घरों की साफ-सफाई एवं रंग-रोगन किया जाता है तो उसकी गंध कुछ दिनों तक रहती है। यह तो कालेधन की सफाई का मामला है। इसकी सफाई में समय तो लगेगा ही और लोगों को परेशानियां भी होंगी?
प्रधानमंत्राी की अपील का लोगों पर असर भी हो रहा है। लोग कह रहे हैं कि कुछ दिनों की परेशानी झेलकर यदि भारत का भविष्य उज्जवल होता है तो वे उसके लिए तैयार हैं। इसी वजह से लोग तमाम तरह की परेशानियां झेलकर प्रधानमंत्राी के मिशन को कामयाब बनाने में उनके साथ खड़े हैं। हालांकि, विपक्ष का मानना है कि प्रधानमंत्राी ने यह फैसला उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लिया है, साथ ही विपक्ष यह भी कह रहा है कि इससे जनता बहुत परेशान हो रही है और उसेे यह भी उम्मीद है कि यदि आम जनता की परेशानियां लंबे समय तक बढ़ीं तो मोदी जी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
हालांकि, देश एवं दुनिया के तमाम राजनीतिक पंडितों को लगता है कि यह एक साहसिक फैसला है जिसके परिणाम कुछ भी हो सकते हैं किंतु लोकतांत्रिक देश में कोई भी नेता इस प्रकार के फैसले लेने से पहलेे सौ बार सोचता है। हालांकि, नोटबंदी के कारण तात्कालिक रूप से जो भी समस्याएं एवं परेशानियां उत्पन्न हुई हैं उसके निदान के लिए सरकार हर दृष्टि से प्रयासरत है और उम्मीद है कि इन तात्कालिक समस्याओं से देश जल्दी ही उबर जायेगा।
अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी जी लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता के इस मुकाम तक पहुंचे है तो यह कोई अचानक नहीं हुआ है बल्कि इसके पीछे एक लंबा समय लगा है और उनकी निःस्वार्थ
कार्यप्रणाली ही उन्हें यहां तक पहुंचाने में कारगर साबित हुई है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने नोटबंदी को कालेधन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करार दिया। आज भारत में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ शब्द साहस एवं विश्वास का प्रतीक बन गया है।
भारत ने आतंकवाद को समाप्त करने हेतु जब पीओके में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर अनेक आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया था तो भारत सहित पूरी दुनिया में इस सैन्य ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की काफी तारीफ एवं चर्चा हुई थी।
प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ चाहे वह सैन्य हो या आर्थिक, राष्ट्रहित के लिए बहुत जरूरी था। यह प्रजातंत्रा एवं राष्ट्रहित में बहुत लाभकारी है। देशवासियों को लगा कि मोदी जी जो भी फैसले ले रहे हैं वे निश्चित रूप से राष्ट्र एवं समाज हित में हैं। इससे उनका राजनीतिक स्वार्थ कितना सधता है, इस बात की तरफ उनका ध्यान कभी नहीं जाता है वरना लोकतांत्रिक देशों में कोई भी निर्णय लेने से पहले शासक इस बात का गुणा-भाग पहले लगा लेते हैं कि फैसले का क्या नफा-नुकसान हो सकता है? उदाहरण के तौर पर नोटबंदी के मामले में प्रधानमंत्राी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें मालूम है कि उन्होंने क्या किया है?
नोटबंदी से प्रभावित होने वाले लोग कोई मामूली लोग नहीं हैं बल्कि वे लोग हैं जो किसी भी सरकार को खरीदने या बनाने-बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं किंतु देश से कालाधन समाप्त करने के लिए किसी न किसी को तो आगे आना ही होगा। इस उदाहरण से यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी जी वही कर रहे हैं जो राष्ट्र एवं समाज के हित में है। राजनीतिक लाभ-हानि की दृष्टि से वे कोई फैसला नहीं ले रहे हैं। विपक्ष के लोग कहने के लिए चाहे कुछ भी कहें किंतु उन्हें भी यह अच्छी तरह मालूम है कि मोदी जी के सभी फैसले राष्ट्रहित में हैं।
नोटबंदी के मामले में विपक्ष चाहे कुछ भी कहे किंतु प्रधानमंत्राी ने इस मामले में पूरी तरह पारदर्शिता बरती है। उन्होंने पहले कहा था कि जिनके पास काला धन है वे 40 प्रतिशत टैक्स देकर अपना पैसा जमा कर सकते हैं। इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय मिला। अभी भी सरकार लोगों को मौका दे रही है कि टैक्स जमा कर लोग अपना पैसा जमा कर सकते हैं। बेनामी संपत्तियों के बारे में भी प्रधानमंत्राी ने अभी से आगाह कर दिया है। प्रधानमंत्राी के इस फैसले का जनता में क्या असर होगा, इसका परिणाम महाराष्ट्र एवं गुजरात के स्थानीय निकायों के चुनावों में देखने को मिल गया। इससे यह साबित होता है कि जनता ने नोटबंदी के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। इसके पहले भी देश में जो लोकसभा एवं विधानसभा के उप-चुनाव हुए थे उसमें भी भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन सराहनीय रहा।
प्रधानमंत्राी को लोकप्रिय एवं स्वीकार्य बनाने में उनकी अलग कार्यप्रणाली भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने 15 अगस्त को लाल किले से संबोधन में कहा था कि वे सिर्फ गंभीर मुद्दो पर बात करने की बजाय छोटे-छोटे मुद्दो पर भी बात करेंगे। ‘आदर्श सांसद ग्राम योजना’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’, सहित तमाम कार्यक्रम हैं जिनकी उन्होंने शुरुआत की। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि श्री नरेंद्र मोदी ने अन्य प्रधानमंत्रियों की अपेक्षा लीक से हटकर कार्य किया। प्रधानमंत्राी को क्या करना है, क्या नहीं इस बात पर सोचने की बजाय उन्होंने वही किया जो राष्ट्र एवं समाज के लिए अच्छा है। लकीर का फकीर बनना उनके स्वभाव में नहीं है।
प्रधानमंत्राी का यही स्वभाव उन्हें अन्य नेताओं की तुलना में महान एवं लोकप्रिय बनाता है। जनता की भावनाओं से वे अपने आपको कैसे रूबरू करते हैं उसे एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। नोटबंदी के बाद लोगों को जो भी परेशानियां हो रही हैं उसके बदले प्रधानमंत्राी ने कभी भी कोई ऐसी बात नहीं की जिससे लोगों की भावनाएं आहत हों बल्कि उन्होंने हमेशा जनता से निवेदन ही किया और राष्ट्रहित में थोड़ा कष्ट झेलने की सिर्फ भावुक अपील ही की अन्यथा आज के दौर में नेता एवं सरकारें किसी भी समस्या से निपटने के लिए जनता को नसीहत ही देती हैं।
वैसे भी देखा जाये तो आज एक व्यापक मिशन को लेकर बैंकों एवं एटीएम में कतारें लग रही हैं किंतु देश में लाइन में लगकर कोई काम कराना नई परंपरा नहीं है। अभी भी आम जनता को जगह-जगह लाइन में लगना पड़ता है। बिजली-पानी का बिल जमा कराने से लेकर रेलवे स्टेशन पर रिजर्वेशन कराने एवं प्लेटफाॅर्म टिकट लेने तक में लाइनें लगती हैं। अतः लाइन में लगने की परंपरा देश में बहुत पहले से प्रचलित है। अभी कुछ दिनों पहले ‘जियो’ का सिम लेने के लिए लोग लंबी-लंबी लाइनों में लगे थे। कहने का आशय यह है कि बैंकों में जो लाइनें लग रही हैं वह हमारे सिस्टम का हिस्सा हैं, इससे बहुत जल्द छुटकारा मिल जायेगा।
प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी की सच्चाई, ईमानदारी, देश के प्रति वफादारी, साहस और उनका विश्वास उनकी पूंजी है। इसी की बदौलत वे कोई भी निर्णय आसानी से ले लेते हैं। उनके फैसले से सारा विपक्ष सकते में है। उसे लगता है कि कहीं उसकी राजनीतिक दुकानदारी फीकी न पड़ जाये। प्रधानमंत्राी को लोकप्रिय बनाने में उनका राजनीतिक शिष्टाचार भी काफी मददगार साबित हुआ है। अपने राजनीतिक शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों एवं राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर न सिर्फ बड़े दिल का परिचय दिया बल्कि उन्होंने यह भी साबित किया कि राजनीतिक शिष्टाचार उनमें कूट-कूटकर भरा है। पाकिस्तान में जाकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्राी नवाज शरीफ की मां के पैर छूकर उन्होंने भारतीय संस्कारों की परंपरा को और अधिक आगे बढ़ाने का काम किया।
देश में सुरक्षा जवानों एवं फौजियों को इस बात का एहसास हुआ है कि वे वास्तव में फौजी हैं और उनका हाथ कहीं से बंधा नहीं है। उन्हें अब इतनी आजादी है कि दुश्मन की गोली का जवाब छिपकर या झुककर नहीं बल्कि गोलियों की ताबड़तोड़ गर्जना से दे रहे हैं। यही सब बातें प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी को महान बनाती हैं। प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी एवं उनकी सरकार आतंकवाद, नक्सलवाद एवं भ्रष्टाचार के मामले में न झुकने, न टूटने एवं न रुकने की नीति पर कार्य कर रही है। ऐसी स्थिति में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को अपनी नकली धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दुकानदारी चलाने में काफी दिक्कत महसूस हो रही है। ऐसा भी नहीं है कि सभी विपक्षी राजनीतिक दल मोदी जी के विरोध में खड़े हैं।
बिहार के मुख्यमंत्राी नीतीश कुमार प्रधानमंत्राी का धुर विरोधी होने के बावजूद नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्राी के साथ हैं और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रधानमंत्राी का यह निर्णय बेहद साहसिक है। श्री नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा है कि अब बेनामी संपत्तियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रधानमंत्राी ने भी स्पष्ट रूप से कह दिया है कि कालाधन समाप्त करने की दिशा में नोटबंदी अंतिम उपाय नहीं है बल्कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना है। अतः लोगों को सावधान हो जाना चाहिए अन्यथा बाद में कुछ लोग यही कहेंगे कि प्रधानमंत्राी ने समय नहीं दिया या फिर विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया।
यदि आम सहमति की बात की जाये तो व्यापक आम सहमति के आधार पर ऐसे फैसले करना बहुत मुश्किल है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी के लाभ बहुत हैं, इससे अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता एवं स्वच्छता आयेगी। इसे एक परिवर्तन के रूप में देशवासियों को स्वीकार करना चाहिए जिससे देश आतंकवाद एवं कालाधन से मुक्त होकर प्रगति के पथ पर और अग्रसर हो सके। साथ ही यह भी निर्विवाद रूप से सत्य है कि प्रधानमंत्राी की लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता जितनी अधिक होगी उतने ही वे राष्ट्रहित में फैसले ले सकेंगे।