डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन के रिश्तों में तल्खी बनी हुई है। चीन आये दिन किसी न किसी रूप में भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयास करता रहता है, किंतु यह अलग बात है कि भारत पर उसका असर नहीं के बराबर पड़ रहा है। रक्षा मंत्राी अरुण जेटली ने साफ-साफ कह दिया है कि भारत 1948 का भारत अब नहीं है। अब सवाल यह है कि चीन ऐसा क्यों करता है? इसका सीधा-सा मतलब है कि अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन ऐसा करता है। चीन का जितने भी देशों के साथ विवाद है वह प्रमुख रूप से सीमा को लेकर ही है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जिन्होंने अपनी सीमा का विस्तार करने के लिए लड़ाइयां लड़ी हैं। अमेरिका और रूस के अलावा चीन और इजराइल ऐसे देश हैं जिन्होंने हर युद्ध में अपना विस्तार किया है।
चीन धमका कर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर अपनी सीमा का विस्तार करता रहा है। यह उसकी सरकारी नीति का हिस्सा रहा है जबकि भारत का क्षेत्राफल हर युद्ध के बाद घटता गया। शांत होना अच्छी बात है किंतु शांति की आड़ में हम सिकुड़ते जायें, यह अच्छी बात नहीं है, यह कायरता है। इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। चीन अपने 14 पड़ोसियों से घिरे रहने के बावजूद किसी न किसी रूप में अपनी सीमा विस्तार में लगा रहता है। हालांकि, विवाद तो उसका 23 देशों के साथ चल रहा है। इतने देशों के साथ विवाद होने के बावजूद चीन डराने-धमकाने, डांटने-डपटने जैसी नीति अपनाकर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर अपनी सीमाओं का विस्तार करता रहा है जबकि भारत इसके विपरीत अखंड भारत होते हुए भी खंडित होता चला गया और अंततः 1947 में गुलामी के दौर से गुजर कर एक राष्ट्र का रूप ले लिया किंतु अपनी शांति पसंद नीति के कारण स्वतंत्रा भारत की सीमाओं को भी सुरक्षित नहीं रख पाया और सिकुड़ता चला गया।
1948 में पाकिस्तान और चीन के
द्वारा, 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान के द्वारा हुए युद्ध में भारत अपनी सीमाओं को सुरक्षित नहीं रख पाया। सामरिक युद्ध में यदि कहीं जीते भी तो वार्ता की टेबल पर हार गये। 1999 में कारगिल युद्ध के समय पहली बार भारत ने लड़कर अपनी भूमि को पूरी तरह खाली कराया और अमेरिका जैसे देश के समक्ष झुकने से भारत ने इनकार कर दिया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्राी अटल बिहारी वाजपेयी को बात करने के लिए बुलाया किंतु अटल जी ने कहा कि जब तक अपने देश की एक-एक इंच जमीन खाली नहीं करा लेंगे तब तक अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। कमोबेश उसी प्रकार की स्थिति भारत में इस समय भी है। भारत इस समय चीन के मुकाबले बहादुरी के साथ खड़ा है, संभवतः इसी वजह से चीन काबू में है। यहां यह सब बताने का आशय यही है कि यदि भारत आक्रामक नहीं होता तो पाकिस्तान और चीन बेकाबू होते। भारत की इसी आक्रामकता के कारण समस्याओं का शांति से हल ढूंढने का प्रयास हो रहा है। वास्तव में यदि देखा जाये तो मोदी सरकार की आक्रामक नीति बिल्कुल सही दिशा में है। यही सही नीति और सही लक्ष्य है। वैसे भी अपने देश में एक प्राचीन कहावत है कि वििमदबम पे जीम इमेज कममिदबम यानी आक्रामकता ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।
यदि इस दृष्टि से देखा जाये तो इजराइल दुनिया के समक्ष सबसे बड़ा उदाहरण है। जिस समय इजराइल आजाद हुआ, उस समय उसका क्षेत्राफल बहुत कम था किंतु अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए वह बार-बार युद्ध करता रहा और वर्तमान में उसने अपने क्षेत्राफल का काफी विस्तार कर लिया है। आज शाक्तिशाली राष्ट्र भी उससे टकराने की हिम्मत नहीं कर सकते। इजराइल के चारों तरफ मुस्लिम राष्ट्र हैं किंतु अकेले ही वह सब पर भारी पड़ता है। सीरिया, जार्डन, इजिप्ट और लीबिया जैसे देश उसके पड़ोसी हैं किंतु किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि कोई भी देश उसकी तरफ नजर उठाकर देख सके। ऐसा इसलिए नहीं है कि इजराइल बहुत संपन्न, शांत एवं शरीफ देश है बल्कि सभी को यह पता है कि यदि उसकी कोई एक इंच जमीन लेगा तो बदले में इजराइल उसकी दस इंच जमीन ले लेगा। कोई भी देश यदि इजराइल के एक व्यक्ति को मारेगा तो इजराइल उस देश के दस लोगों को मारकर उसका बदला लेगा। इजराइल अपनी इसी नीति के कारण सुरक्षित है और तमाम मुस्लिम देशों से घिरा होने के बावजूद अपनी सीमाओं का विस्तार करने में सफल रहा है।
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद वार्ता की टेबल पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्राी लाल बहादुर शास्त्राी अपनी इच्छा के अनुरूप समझौता नहीं कर पाये थे और बताया जाता है कि इस बात का उन्हें गहरा सदमा भी लगा था। 1971 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्राी इंदिरा गांधी की कुशल नीति के कारण पाकिस्तान का दो टुकड़ों में विभाजन तो हो गया किंतु उससे भारत को भौगोलिक रूप से विस्तार में कोई लाभ नहीं हुआ किंतु भारत के लिए बेहद गर्व एवं सम्मान की बात थी।
वर्तमान प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी की बात की जाये तो पाकिस्तान एवं चीन के प्रति वे काफी आक्रामक हैं। उनकी इसी आक्रामकता के कारण दुनिया के कई शक्तिशाली देश भारत के साथ खड़े हो गये हैं। पहली बार अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद को संरक्षण देने वाले देशों की सूची में डाला है। अमेरिका ने पहली बार सीधे-सीधे पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि यदि उसने अपनी नीति नहीं बदली तो आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली धनराशि उसे रोक दी जायेगी। यह सब भारत की पूरी दुनिया में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक नीति के ही कारण संभव हो पाया है। डोकलाम विवाद पर ही यदि नजर डाली जाये तो चीन की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई विशेष समर्थन नहीं मिल पा रहा है। चूंकि, भारत की आक्रामक नीति के कारण ही चीन पूरी दुनिया में बेनकाब हो रहा है। चीन से जो भी देश त्रास्त हैं वे भारत को अपना नेता मानने लगे हैं और भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगे हैं। चीन के सामने भारत का सीना तानकर खड़ा होने की वजह से ही चीन के पड़ोसी देशों को यह लगने लगा है कि चीन उतनी बड़ी महा शक्ति नहीं है, जितना उसे प्रचारित किया है। वियतनाम की विदेश मंत्राी ने भारत दौरे के समय बयान दिया था कि चीन कोई महा शक्ति नहीं है। भारत यदि साथ दे तो बीजिंग में जाकर उसका झंडा उखाड़ देंगे। आखिर, यह सब क्या है? यह सब सिर्फ इसलिए है कि भारत शांति के साथ आक्रामक नीति पर भी अमल कर रहा है।
पाकिस्तान की बात की जाये तो वह जम्मू-कश्मीर में उथल-पुथल मचाता रहा है। प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने बहुत कोशिश की कि पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हों किंतु पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। कश्मीर में वार्ता के माध्यम से शांति के लिए बहुत प्रयास किये गये किंतु उसका कोई परिणाम नहीं आया परंतु जब से कश्मीर में सेना ने आतंकवादियों को ढूंढ़-ढंूढ़कर मारना शुरू किया है, तबसे वहां की स्थितियों में सुधार होना शुरू हो गया। आतंकवादियों की फंडिंग की जांच होने से तमाम अलगाववादी नेताओं की करतूतें सामने आने लगी हैं। वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं। पंजाब का भी आतंकवाद बिना सख्ती के समाप्त नहीं हुआ था। सऊदी अरब एवं अन्य मुस्लिम देशों में लोग चोरी एवं अपराध करने से इसलिए डरते हैं क्योंकि उनको मालूम है कि किसी भी तरह का अपराध करने पर तत्काल सजा मिलेगी? जो लोग भारत में रहते हुए नियम-कानूनों का पालन करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, वही लोग जब विदेशों में जाते हैं तो डर के कारण नियम-कानूनों का पालन करने लगते हैं। आखिर विदेशों में जाकर उनके अंदर इतना परिवर्तन कैसे आ जाता है? महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी श्री रामचरित मानस में लिखा है कि भय बिन होइ न प्रीति अर्थात् भय के बिना प्रीति नहीं होती।
बहरहाल, जो भी हो किंतु कहने का आशय यही है कि यदि हम अपने आप में समर्थ हैं तो हम शांत भी रहेंगे और सुरक्षित भी। वैसे भी अपने देश में जगह-जगह यह बात सुनने को मिल जायेगी कि समरथ को नहीं दोष गोसाईं अर्थात जो व्यक्ति बलवान एवं समर्थ है उसका कोई दोष नहीं होता। चीन हो या पाकिस्तान यदि भारत उनके सामने किसी भी प्रकार की कमजोरी जाहिर करेगा तो उसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ेगा। डोकलाम विवाद में भारत के आने से भूटान का भी हौंसला बढ़ा है और नेपाल तथा श्रीलंका भी फिर से भारत के करीब आने लगे हैं। अपनी जमीन दान में देकर शांति की स्थापना करना निहायत ही कायरता है। कल्पना की जा सकती है कि इस समय यदि केन्द्र में यूपीए की सरकार होती तो डोकलाम विवाद पर क्या होता? अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने यदि दिलेरी दिखाते हुए हमारे वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण की इजाजत न दी होती तो क्या भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बनता। यदि भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र न होता तो क्या चीन जैसा शक्तिशाली देश दबाव में आता। पाकिस्तान के आतंकी गुट क्या भारत में और अधिक उथल-पुथल नहीं मचाते। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि ‘कर बल बहियां आपनो, छोड़ पराई आस’ यानी अपनी भुजाओं में जो ताकत है, उसी पर भरोसा करना चाहिए और दूसरों से उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।