सीबीआई की साख पर फिर आंच से तो अब पूरे देश में यह बात शायद ही कोई माने कि सीबीआई एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है और ऐसा माना भी नहीं जा सकता, क्योंकि मौके-दर-मौके पर यह देखने को मिलता रहता है कि सीबीआई वही करती है जो सरकार कहती है। हालांकि, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि सभी मामलों में ऐसा ही होता है किंतु राजनैतिक मामलों में काफी हद तक ऐसा ही देखने को मिला है। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, किंतु सीबीआई का दुरुपयोग तो आम तौर पर सभी सरकारें किया करती हैं। यह बात अलग है कि कोई सरकार ज्यादा करती है तो कोई कम। यूपीए सरकार में तो सीबीआई के दुरुपयोग की खबरें बिल्कुल आम हो गई हैं। सीबीआई की साख पर आंच का एक ताजा उदाहरण कोयला घोटाले की जांच में देखने को मिल रहा है। कोयला घोटाले की जांच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया था कि वह इस घोटाले से संबंधित रिपोर्ट को किसी को न दिखाए किंतु सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को स्वतः बताया कि उसने कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट कानून मंत्री अश्विनी कुमार को दिखाई थी। अब इस बात को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है कि क्या सीबीआई अपनी मर्जी से स्वतंत्र होकर जांच कर भी सकती है या नहीं। खैर अब तो यह मान लिया गया है कि सीबीआई स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं है और वह भी सरकार के ही इशारे पर काम करने वाली एक संस्था है।
भारतीय जनता पार्टी एवं अन्ेय दलों के नेता कांग्रेस पर अक्सर यह आरोप लगाते रहते हैं कि सीबीआई कांग्रेस का एक बहुत ही विश्वसनीय सहयोगी दल है। क्षेत्रीय दलों के अनेक ऐसे नेता हैं जिनके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। सीबीआई से अपने आपको बचाने के लिए मजबूरी में वे यूपीए सरकार का समर्थन करने के लिए विवश हो जाते हैं। संसद में जब कभी जरूरत पड़ती है तो श्री मुलायम सिंह यादव न चाहते हुए भी कांग्रेस का समर्थन करते हैं। इसके लिए श्री मुलायम सिंह यादव भले ही यह कहें कि वे कांग्रेस पार्टी का समर्थन मात्र सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कर रहे हैं, किंतु सच्चाई यह नहीं है। चूंकि, श्री यादव के खिलाफ आय से अधिक मामले में सीबीआई जांच चल रही है। देखने में आया है कि जब तक श्री मुलायम सिंह चुपचाप यूपीए सरकार का समर्थन करते हैं तब तक सीबीआई शांत रहती है किंतु जब वे यूपीए सरकार के खिलाफ कुछ बोलने लगते हैं तो सीबीआई अपना काम तेजी से प्रारंभ कर देती है।
बसपा सुप्रीमो मायावती के मामले में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। वे भी जब तक यूपीए सरकार का समर्थन करती हैं या कर रही हैं तब तक सीबीआई शांत है किंतु ज्यों ही वे सरकार को आंख दिखाना शुरू करेगी, त्यो हीं सीबीआई की जांच उनके खिलाफ तेज हो जायेगी। आखिर यह सब क्या है? अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए यह सीबीआई का दुरुपयोग नहीं है तो और क्या है?
अभी तक तो यही माना जाता था कि सीबीआई बुरे वक्त में सरकार का साथ देती है, किंतु अब इस श्रेणी में आयकर विभाग भी शामिल हो गया है। अपने राजनैतिक विरोधियों को परेशान करने एवं उन्हें निपटाने के लिए आयकर विभाग का दुरुपयोग बहुत तेजी से हो रहा है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ यदि आयकर विभाग के छापे नहीं पड़े होते तो संभवतः श्री नितिन गडकरी आज भाजपा के अध्यक्ष होते। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने आरोप लगाया है कि एनडीए सरकार ने भी उनके खिलाफ सीबीआई का दुरुपयोग किया था। यह बात अलग है कि भाजपा नेता उनकी बात को बिल्कुल भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं। सीबीआई के दुरुपयोग की बात तो कांग्रेस के लोग भी नहीं मानते हैं। बहरहाल, जो कुछ भी हो, किंतु आज आवश्यकता इस बात की है कि सीबीआई की साख को बचाने के लिए हर स्तर से प्रयास किये जायें।