नेतृत्व अपने आप में एक बहुत ही व्यापक शब्द है और यह एक प्रकार की कला भी है। सामान्य रूप से जब नेतृत्व की बात आती है तो अधिकांशतः इसे राजनैतिक नेतृत्व के रूप में लिया जाता है। वैसे देखा जाये तो नेतृत्व के कई प्रकार हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर प्रशासनिक, राजनीतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक या अन्य प्रकार के नेतृत्व हो सकते हैं।
स्वाभाविक सी बात है कि कोई भी व्यक्ति हर क्षेत्र में नेतृत्व का विशेषज्ञ नहीं हो सकता है इसलिए अलग-अलग क्षेत्रों का नेतृत्व करने के लिए अलग-अलग व्यक्तियों का नाम देखने एवं सुनने को मिलता रहता है। सभी तरह के नेतृत्व की चर्चा यहां कर पाना संभव नहीं है किंतु उस नेतृत्व की चर्चा करना निहायत जरूरी है जिसकी चर्चा जन-जन की जुबान पर होती है। जाहिर सी बात है कि राजनीतिक नेतृत्व की बात हो रही है। वास्तव में यदि देखा जाये तो नेतृत्व का ही बिगड़ा हुआ शब्द है नेता।
किसी भी व्यक्ति में नेतृत्व स्वाभाविक भी हो सकता है, विकसित भी किया जा सकता है या परिवार से विरासत के रूप में भी मिल सकता है। जो नेतृत्व पारिवारिक विरासत के रूप में मिलता है उसे तमाम लोग थोपे हुए नेतृत्व के रूप में भी मानते हैं। स्वाभाविक नेतृत्व को यदि परिभाषित किया जाये तो मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि ऐसा नेतृत्व उम्मीदों की कसौटी पर कसकर, आग में सोने की तरह तपकर या हीरे की तरह घिसकर विकसित होता है यानी स्वाभाविक नेतृत्व को उस रूप में लेना चाहिए कि जैसे ‘अखाड़े के लतमरुआ’ पहलवान होते हैं यानी जो व्यक्ति अखाड़े में रोज जाता है और हारता-जीतता रहता है वह व्यक्ति किसी दिन नामी पहलवान बन जाता है। कुछ इसी प्रकार की परिकल्पना स्वाभाविक नेतृत्व की भी है।
स्वाभाविक नेतृत्व सिर्फ समाज में ही रहकर विकसित हो सकता है। स्वाभाविक नेतृत्व सामाजिक समस्याओं के समझने, समझाने और उसे सुलझाने के अनुभव से ही विकसित किया जा सकता है क्योंकि उसमें व्यक्ति और समाज का संपर्क आमने-सामने जमीनी हकीकतों को लेकर होता है। समस्याओं के समाधान हेतु सामाजिक कार्यकर्ता जब प्रशासनिक ढांचे में घुसता है तब उसे प्रशासन की ओर से खड़ी हो रही बाधाओं की बारीकियों को जानने एवं समझने का अनुभव होता है। ऐसे सामाजिक व्यक्ति जब राजनीति में प्रवेश करते हैं तो वे एक सफल एवं कुशल नेतृत्व प्रदान करते हैं। यहां पर हम कह सकते हैं कि नेतृत्व की कला और मनुष्य का मनोविज्ञान कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ा है यानी जब तक हम समाज में रहने वाले व्यक्तियों के हावभाव, बोलचाल इत्यादि मुद्दों का अध्ययन नहीं करेंगे तब तक हमें किसी भी समस्या के प्रति एक धारणा बनाना कठिन हो जायेगा।
जिसमें समाज सेवा का जुनून होगा, वही राजनीतिक क्षेत्रा में भी नेतृत्व प्रदान कर सकता है। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्राी माननीय नितिन गडकरी अक्सर एक उदाहरण देते हुए कहा करते हैं कि राजनीतिक क्षेत्रा के अंतर्गत गमले में उगे हुए लोग बहुत दुख देते हैं। उनके कहने का अभिप्राय यह है कि जैसे किसी पौधे की जड़ें जब तक पृथ्वी में गहराई तक नहीं जाती हैं, तब तक उसका पूर्ण विकास नहीं हो सकता है, ठीक उसी तरह किसी को जब तक सामाजिक समस्याओं के निदान की बारीकियों की व्यापक जानकारी नहीं होगी तो समस्या के निदान में काफी दिक्कत आ सकती है, यह सब बिना अनुभव की भट्टी में तपे संभव नहीं है। गमले का उदाहरण देने का अभिप्राय इस बात से भी है कि जो पौधा गमले में उगता है उसका विकास एक निश्चित वातावरण एवं दायरे में हो सकता है जबकि एक निश्चित ढांचे एवं वातावरण में रहकर समाज का विकास नहीं किया जा सकता है।
राजनीतिक क्षेत्रा में यह चर्चा बहुत तेजी से हो रही है कि जब मास्टर का बेटा मास्टर, डाॅक्टर का बेटा डाॅक्टर, दुकानदार का बेटा दुकानदार बन सकता है तो राजनीतिक व्यक्ति का बेटा एवं बेटी राजनेता क्यों नहीं बन सकते हैं? यहां यह प्रश्न बार-बार उठता है कि जब किसी राजनीतिज्ञ की औलाद नेतृत्व प्रदान के लिए आती है तो उसकी तुलना उसके माता-पिता से होेने लगती है। ऐसे में जब वह अपने पिता की बराबरी नहीं कर पाता है तो पिता के मुकाबले लोग उसे कम आंकने लगते हैं। दूसरी बात यह है कि क्या नेता का बेटा नेतृत्व के मामले में अपने पिता एवं माता की तरह ही पूर्ण होगा, यह अपने आप में एक विचारणीय प्रश्न है।
मेरा मानना है कि जिन परिवारों में समाज सेवाओं एवं नेतृत्व की परिपाटी रही है और घर के अन्य सदस्य भी उन सेवाओं में योगदान देते रहे हैं, निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कुछ न कुछ अनुभव के अंश विरासत में उन्होंने ग्रहण किये हुए हैं और इसी कारण वे सफल नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं और करना भी चाहिए। अगर उदाहरण के लिए भारत की एक मात्रा महिला पूर्व प्रधानमंत्राी की बात की जाये तो यह उदाहरण बिल्कुल सटीक बैठता है।
श्रीमती इंदिरा गांधी बाल्यकाल से ही अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ रहीं और बचपन से ही उनसे राजनीतिक बारीकियां सीखीं और समस्याओं के समाधान के बारे में प्रारंभ से ही उन्होंने जानने एवं सुलझाने की कला सीखी। इसी कारण उन्होंने देश का कुशलतापूर्वक नेतृत्व किया किंतु श्रीमती इंदिरा गांधी से यदि उनके पुत्र और पूर्व प्रधानमंत्राी राजीव गांधी की तुलना की जाये तो नेतृत्व के मामले में वे उनके बराबर कहीं टिक नहीं पाये। उसका कारण यह था कि राजीव गांधी की रुचि राजनीति में शुरू से ही बहुत अधिक नहीं थी।
राजनीति की बारीकियां श्रीमती गांधी के दूसरे पुत्र संजय गांधी ने उनसे सीखी, किंतु वे असमय काल के गाल में समा गये। इस मामले में एक बात देखने को यह मिली कि संजय गांधी में तानाशाह प्रवृत्ति हावी हो गई थी। इसी कड़ी में यदि बात राहुल गांधी की, की जाये तो राजनीति एवं नेतृत्व की कला में श्रीमती गांधी की तो बात ही छोड़िये अपने पिता राजीव गांधी के इर्द-गिर्द भी नहीं पहुंच पाये।
वैसे देखा जाये तो पारिवारिक विरासत के रूप में राजनीति एवं नेतृत्व पूरी दुनिया में रहा है। अमेरिका में सीनियर जार्ज बुश के बेटे जूनियर बुश राष्ट्रपति बने, पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन सफल राजनीतिज्ञ बनीं। इंग्लैंड के राजपरिवार में अभी भी वंशवाद है। इस वंशवाद को पूरा सम्मान भी प्राप्त है और लोग अभी भी उसका सम्मान करते हैं। दुनिया के कई देशों में अभी भी वंशवाद का शासन है। उनमें कुछ अच्छा नेतृत्व दे रहे हैं तो कुछ नहीं दे पा रहे हैं तो इसका सीधा-सा अभिप्राय है कि राजनीति की कला किसने कितनी गहराई एवं बारीकी से सीखने की कोश्ािश की, यह बात महत्वपूर्ण है। हिन्दुस्तान की बात की जाये तो दिग्गज नेता मुलायम सिंह के पुत्रा अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल यादव को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री बने किंतु वे दुबारा अपनी कुर्सी को बचा पाने में कामयाब नहीं हो पाये।
इस कड़ी में देखा जाये तो लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव और बेटी मीसा भारती, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के बेटे कुमार स्वामी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, कश्मीर के पूर्व मूख्यमंत्री एवं देश के पूर्व गृहमंत्री पी.एम. सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती, राजेश पायलट के सुपुत्र सचिन पायलट, माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जितेन्द्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद, केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सुपुत्र पंकज सिंह, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चैधरी देवीलाल और उनके बेटे ओम प्रकाश चैटाला तथा ओम प्रकाश चैटाला के बेटों अजय एवं अभय सहित नेताओं की एक लंबी श्रंृखला है जिन्होंने अपने माता-पिता से राजनीति, समाज सेवा एवं नेतृत्व की प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की है। अब यह समय ही तय करेगा कि ये नेता कितना कामयाब हो पाते हैं? इस विषय पर यदि गहराई से मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जाये तो सबके बारे में अलग-अलग राय सामने आयेगी किंतु ये नेतृत्व के मामले में अपने माता-पिता के मुकाबले कितनी लंबी छलांग लगायेंगे, उसकी परख तो वक्त ही करेगा। इस पूरे प्रकरण में एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि यदि किसी को जबर्दस्ती नेता बनाया जाता है तो वह राजनीति एवं नेतृत्व के मामले में लंबी रेस का घोड़ा साबित नहीं हो पाता है। कुशल नेतृत्व वही प्रदान कर सकता है जिसमें समाज सेवा का जुनून होगा और जनता के दुख-दर्द से जुड़कर हमेशा हम सफर के रूप में कार्य करेगा। परिवारवाद की राजनीति में नेतृत्व का विकास तो किया जा सकता है किंतु इस पर एक आम राय नहीं बनाई जा सकती है।
आजकल एक परिपाटी चल पड़ी है कि समाज में जिनका नाम है यानी जिन्हें लोग जानते हैं, ऐसे लोग नेतृत्व में तेजी से आगे आ रहे हैं। ऐसे लोगों के नाम पर भीड़ तो आ जाती है किंतु यह भीड़ वोटों में तब्दील हो जाये, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। नेतृत्व करने के गुणों की यदि बात की जाये तो सेवा, संघर्ष, संपर्क, समन्वय एवं संवाद इन बातों का होना नितांत आवश्यक है और हमेशा इन बातों पर जोर भी देना चाहिए।
स्वाभाविक नेतृत्व की बात की जाये तो वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी इसके एक बेहतरीन उदाहरण हैं, प्रधानमंत्री बनने से पूर्व वे लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और मुख्यमंत्री बनने से पहले भाजपा के संगठन में उन्होंने अपने आपको खूब तपाया है। कहने का आशय यही है कि प्रधानमंत्री आज यदि देश का कुशलतापूर्वक नेतृत्व कर रहे हैं तो उसका एक मात्र कारण यही है कि नेतृत्व के मामले में उनका स्वाभाविक विकास हुआ है, न कि वे थोपे गये नेता हैं। इसी प्रकार भाजपा अध्यक्ष माननीय अमित शाह, गृहमंत्री माननीय राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज सहित तमाम मंत्रियों एवं नेताओं की एक लंबी श्रंृखला है जो केन्द्र सरकार एवं भाजपा संगठन में रहकर राष्ट्र एवं समाज को कुशल एवं सक्षम नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं।
माननीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह अक्सर कहा करते हैं कि हम राजनीति सिर्फ सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि समाज बनाने के लिए करते हैं। लोगों से मिलने एवं बात करने का उनका जो तरीका है उससे लगता है कि वे निहायत ही स्वाभाविक नेता हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान सहित भाजपा के अधिकांश मुख्यमंत्रियों का यदि विश्लेषण किया जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे स्वाभाविक नेता हैं और अनुभव की भट्टी में ही तपकर निखरे हैं।
थोड़ा और पूर्व की बात करें तो डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, श्री अटल बिहारी वाजयेपी,
स्व. लाल बहादुर शास्त्री, श्री लालकृष्ण आडवाणी, डाॅ. राम मनोहर लोहिया, श्री ज्योति बसु, श्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, श्री प्रणव मुखर्जी, श्री मानिक सरकार आदि नेताओं ने अपने को स्वाभाविक नेता के रूप में स्थापित किया।
अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि देश में स्वाभाविक नेतृत्व का विकास किया जाये एवं उसे आगे लाया जाये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि कहीं जाते हैं तो उन्हें किसी का लिखा भाषण पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। वे बिना किसी लिखित भाषण के जहां चाहें, जितनी देर चाहें, बोल सकते हैं किंतु क्या श्रीमती सोनिया गांधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह से ऐसी उम्मीद की जा सकती है? जाहिर सी बात है कि श्रीमती सोनिया गांधी एवं डाॅ. मनमोहन सिंह से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि नेतृत्व के मामले में उनका स्वाभाविक विकास नहीं हुआ है।
भाजपा अध्यक्ष मााननीय अमित शाह जनता से मिलने-जुलने एवं संपर्क करने के लिए कार्यकर्ताओं को तमाम तौर-तरीकों एवं कार्यप्रणाली से इसलिए अवगत करा पा रहे हैं कि उनमें नेतृत्व कला का स्वाभाविक विकास हुआ है। इसे नेचुरल लीडरशिप भी कहा जा सकता है। वर्तमान में स्वाभाविक नेतृत्व की स्थिति चाहे जो भी हो किंतु अब सभी राजनीतिक दलों एवं समाजसेवियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे लोगों को सामने लायें या विकसित करें जो नेतृत्व के क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से आगे बढ़े हैं। इसी में राष्ट्र एवं समाज सभी का कल्याण है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(लेखक राम-जन्मभूमि न्यास के ट्रस्टी
और भा.ज.पा. केन्द्रीय कार्यालय के
कार्यालय सचिव रहे हैं)