आजकल देखने में आ रहा है कि राजनैतिक दलों की चाल-ढाल विशुद्ध रूप से बदलती जा रही है। पहले राजनैतिक दलों में उन्हें ज्यादा तरजीह दी जाती थी जो संगठन को समझते थे, जमीन से जुड़े होते थे, आम जनता से सरोकार होता था, किसी भी सूरत में जनता-जनार्दन को संतुष्ट करने की क्षमता रखते थे। पार्टी में ऐसे नेाताओं को प्रमुखता दी जाती थी जिन्हें संगठन का ज्ञान होता था। संगठन को कैसे मजबूत किया जाये और आम जनता में संगठन को कैसे स्थापित किया जाये, जो लोग इस काम को कर सकते थे, उन्हें प्रमुखता दी जाती थी। आम तौर पर पहले राजनैतिक दलों में दो प्रकार की धाराएं चलती थीं, एक धारा में वे लोग होते थे जो जनता के बीच में भाषण देने की कला में दक्ष होते थे। अपनी भाषण शैली के माध्यम से ये नेता पार्टी के प्रति आम जनता का ध्यान आकर्षित करने का काम करते थे। चुनाव लड़ने वाले ऐसे अच्छे वक्ताओं को अपने चुनाव क्षेत्रें में बुलाते थे।
गौरतलब है कि ये वक्ता आम जनता के बीच जाकर अपनी पार्टी की विचार-धारा और रीति-नीति को अच्छी तरह से रखते थे। भारतीय जनता पार्टी में ऐसे लोगों में श्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सबसे अग्रणी है। हालांकि, आजकल वे अस्वस्थ हैं।
इन वक्ताओं के अतिरिक्त राजनैतिक दलों की एक धारा वह थी जो पर्दे के पीछे रहकर संगठन संभालने का काम करती थी। किसी भी नेता को मंच पर भाषण दिलवाने से पहले इन्हीं की भूमिका होती थी। कुछ वर्षों पहले तक भारतीय जनता पार्टी की पहचान एक अनुशासित पार्टी की थी, किंतु आज उसकी वह पहचान नहीं है। आज सभी नेता एवं कार्यकर्ता एक ही भाषा नहीं बोलते हैं, बल्कि जिसकी जब मर्जी कुछ भी बक देता है। इस मामाले में भाजपा का आलाकमान बार-बार चेतावनी देता रहता है, किंतु बकने वाले बक ही जाते हैं। इसका सीधा सा कारण यह है कि वर्तमान समय में वक्ताओं से कम महत्व प्रवक्ताओं का नहीं है।
अधिकांश नेताओं की फितरत यह है कि वे अपना समय जनता की बजाय मीडिया में जाकर बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। कोई नेता गली-मुहल्ले, गांव-कस्बे में अच्छे-से अच्छा काम करता रहता है किंतु वह ज्यादा लोगों की नजरों में नहीं आ पाता है परंतु वही नेता मीडिया में जाकर जब कोई उल्टा-पुल्टा बयान दे देता है तो वह मीडिया की नजरों में चढ़ जाता है। उसके उस बयान से पार्टी की चाहे जितनी भी किरकिरी हो किंतु नेता जी एक बार जनता की नजरों में तो आ ही
जाते हैं।
सच्चाई तो यह है कि पार्टी का एक अच्छा प्रवक्ता वही बन सकता है, जो पार्टी की रीति-नीति को अच्छी तरह समझता हो। कार्यकर्ताओं एवं आम जनता की भाषा को समझता हो परंतु आज देखने में आ रहा है कि राजनैतिक दलों में प्रवक्ता बनकर अपने को नेता के रूप में स्थापित करने के लिए जैसे होड़ सी मच गई है। तमाम नेता चाहते हैं कि पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता के रूप में उनका नाम मीडिया में आये। ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनका मानना है कि पहले किसी तरह आलाकमान के समक्ष अपना प्रभाव जमाया तो जाये। एक बार आलाकमान की नजर में जम गये तो नेता बनने में देर नहीं लगेगी।
प्रवक्ता बनकर राजनीति करने का रास्ता सबसे आसान है किंतु एक सर्वविदित सत्य यह है कि प्रवक्ता वक्ता की जगह नहीं ले सकते। आम जनता को आज भी अच्छे वक्ताओं की आवश्यकता है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि वक्ता और प्रवक्ता को उसकी असली भूमिका से अवगत कराया जाये।