देश की सर्वोच्च अदालत ने पिछले दिनों एक अहम फैसला सुनाया। यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के फोटो खिचवाने को लेकर था। अदालत का कहना था कि अगर मुस्लिम महिलाएं फोटो नहीं खिंचवाना चाहती तो वे वोट डालने न जायें। अदालत के इस फैसले पर मुल्ला-मौलवी बहुत लाल-पीले हुए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं का फोटो खिचवाना शरीयत के खिलाफ है। उनकी आपत्ति शरीयत की वर्तमान व्यवस्था के मुताबिक सही हो सकती है, किंतु वे शरीयत के लिखे जाने और आज के बीच जो बदलाव आये हैं, उन्हें वे भूल जाते हैं। शरिया के बाद जो वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की गयीं, उनकी तो कल्पना भी मुस्लिम धर्म के प्रवर्तकों ने नहीं की होगी।
विज्ञान के विकास ने सुविधाओं के बाद द्वार खोल दिये हैं। पैदल हज यात्रा करने वाले हज-यात्राी पानी के जहाज से यात्रा करने के बाद अब हवाई जहाज से फटाफट यात्रा करने लगे हैं और उसके लिए उन्हें सरकार सब्सिडी भी देती है। शरीया के मुताबिक हज यात्रा के लिए सरकार से किसी भी प्रकार का अनुदान नहीं लेना चाहिए, किंतु वे लेते हैं, लेते ही नहीं हर वर्ष उसे बढ़ाने की मांग भी करते हैं। दिल्ली और उसके आसपास हज यात्रियों की सुविधा के लिए हज हाउस भी बन गये हैं। हज जैसी पवित्रा यात्रा के लिए सरकारी सुविधाएं लेने से उन्हें कोई गुरेज नहीं किंतु मतदाता पहचान पत्रा बनवाने के लिए फोटो खिंचवाने में शरिया आड़े आती है।
इसका सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि मौलवी दोहरे मानदंड अपनाते हैं। उनकी मानसिकता स्त्राी के प्रति उनके अपेक्षा भाव को भी प्रतिबिंबित करती है, शरिया पुरुष के लिए कोई और व्यवस्था करती है और स्त्राी के लिए कोई और। मौलवियों का यह नजरिया न केवल मुस्लिम स्त्रिायों के लिए अलग तरह से शरिया की व्याख्या करती है, बल्कि उन्हें मुस्लिम समाज में दूसरे दर्जे का नागरिक भी बनाती है। वह उन्हें एक बंद समाज का बंधक बनाती है।
आज मुस्लिम स्त्राी स्वयं को अपने ही लोगों के द्वारा तिरस्कृत होती है। वह फोटो नहीं खिचवा सकती है। घर से निकलते समय उसका बुर्का पहनना अनिवार्य है। वह खुली हवा में सांस नहीं ले सकती। ससुर बहू के साथ अनाचार करे, तो दंड की भागी वही बनती है। वह पति के योग्य नहीं रह जाती। अगर मौलवियों की माने, तो शरिया उसकी शख्सियत छीन लेती है। ये ही वे सब कारण हैं, जो उसे शिक्षा ग्रहण नहीं करने देते। वह 21वीं सदी में भी मध्यकालीन जीवन जी रही है। किंतु न केवल भारत में, बल्कि विशुद्ध मुस्लिम देशों में भी स्त्राी नवजागरण का विहान देख रही है, जिसे मौलवी नहीं देख पा रहे हैं या देखना नहीं चाहते। अनेक मुस्लिम देशों में महिलाओं ने प्रगति के सोपान चढ़े हैं और मौलवियों की तमाम बंदिशों के बावजूद उन्होंने खुली हवा में सांस ली है। उन्होंने शिक्षा प्राप्त की है और प्रशासनिक व्यवस्था में जिम्मेदारी के पदों पर आसीन हैं। भारत में मौलवियों के फतवे मुस्लिम समाज की निचले पायदान पर बैठी स्त्रिायों को भले ही प्रताड़ित करते हों, लेकिन उनका एक वर्ग ऐसा भी है, जिसने बंधनमुक्त होकर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है, लहरा रही हैं। वे उच्च प्रशासनिक पदों पर हैं, सांसद हैं, मंत्राी हैं। श्रीमती नजमा हेपतुल्लाह तो देश की उपराष्ट्रपति का पद भी सुशोभित कर चुकी हैं।
फिर भी, मौलवियों का मंुह बंद करने के लिए अधिकाधिक मुस्लिम महिलाओं को अभी बहुत कुछ करना होगा। घरबार संभालने से लेकर देश संवारने तक। महिला सशक्तीकरण के इस दौर में उनका पिछड़ना राष्ट्र के विकास में बाधक ही बनेगा। अनेक वर्जनाओं के बावजूद उन्हें अतीत के खोल से निकलकर समय के साथ चलना होगा। यह बात दकियानूसी और हर बात पर शरिया की दुहाई देने वाले लोग जितनी जल्दी समझ लें उतना ही बेहतर होगा।