भारतीय सेना को सलाम


देवभूमि के रूप में सुविख्यात पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में आई भीषण आपदा में यूं तो जनसेवा के कार्य में पूरी सरकार, स्थानीय लोग, स्वयंसेवी संस्थाएं एवं अन्य तमाम लोग लगे। जिसकी जितनी क्षमता थी, सबने अपना सहयोग किया, किंतु इसी पूरे तंत्र के बीच सेवा भाव के मामले में जितनी चर्चा भारतीय सेना के जवानों की हुई उससे देशवासियों का दिल गदगद हो गया।

सेना की तारीफ इसलिए करनी होगी कि उसने लोगों को संकट से निकालते हुए, लोगों की जान बचाते हुए लोगों को खाना खिलाते हुए एवं सेवा के अन्य तमाम कार्य करते हुए, किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी नहीं करवाई। सेवा कार्य करते हुए कोई फोटो नहीं खिंचवाया। ट्रकों में लदी राहत सामग्री के साथ फोटो नहीं खिंचवाया।

उत्तराखंड आपदा से बचकर आये ऐसे तमाम लोग हैं जिन्होंने बताया कि सेना के जवानों ने अपना भोजन भी उन्हें दे दिया, अपने सोने की जगह उन्हें दे दी। यहां तक कि अपने कपड़े भी पीड़ितों को दे दिया। सेवा कार्य करते हुए जो लोग अपना प्रचार करना चाहते हैं, उनके प्रति भी मेरे मन में अच्छा भाव है, क्योंकि समाज में सभी लोग ऐसे नहीं हैं जिन्हें गुप्त रूप से दान देने एवं सेवा कार्य करने की आदत हो।

यह बात अलग है कि समाज मंे अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह सोचते हैं कि दान यदि प्रचार करके दिया जाता है तो उसका महत्व कम हो जाता है। धन्य हैं ऐसे लोग जिनके मन में आज के जमाने में भी ऐसा भाव है। वरना आज का समय तो ऐसा है कि लोग सौ रुपये का सामान बांटते हैं तो एक हजार रुपये उसके प्रचार में खर्च करते हैं, क्योंकि ऐसे लोगों का यह शौक होता है कि यदि वे कुछ करें तो दिखना भी चाहिए। ऐसे लोगों का साफ मानना है कि जो दिखता है वह बिकता है।

समाजसेवियों का मानना है कि जो कुछ किया जाये वह अवश्य दिखना चाहिए। एक बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है कि ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा’ जब इस भाव वाले लोग हमारे समाज में मौजूद हैं तो ऐसे में सेना के अंदर जिस प्रकार का निःस्वार्थ सेवा भाव है, उसकी दाद देनी चाहिए। सेना के जज्बे को नतमस्तक होकर सलाम करना चाहिए।

उत्तराखंड सरकार की बात की जाये तो उसने भी अपनी तरफ से अपनी तारीफ में खूब विज्ञापन छपवाये, किंतु यह बात अलग है कि उसकी नाकामियां ही अधिक चर्चा में रहीं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का रूटीन बयान अनेक बार सुनने को मिला। अखबारों में उनकी फोटो देखने को खूब मिली। राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने तरीके से वाहवाही लूटने की खूब कोशिश की मगर सेना के बारे में ऐसा सुनने को नहीं मिला कि जवानों ने अपने प्रमोशन के लिए किसी भी तरह का प्रचार का सहारा लिया हो या सेवा कार्य के बदले कहीं दिखाने की कोशिश की हो। टेलीविजय चैनलों की तरह सेना के जवानों ने कभी यह नहीं कहा कि सबसे ऊंची पहाड़ियों एवं दुर्लभ स्थानों पर सबसे पहले वही पहुंचे।

सामाजिक संस्थाओं की बात की जाये तो इसमें से अधिकांश ने प्रचार पाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। कई जगह ऐसा देखने को मिला कि एक पतीला भोजन बांटने में सैकड़ों फोटो खिंचवा लिए गए और सबसे मजे की बात तो यह है कि इन चित्रें को समाचार पत्रें और चैनलों पर भी दिया गया। भोजन बांटते हुए तमाम फोटो फेसबुक एवं सोशल मीडिया में भी देखने को मिले।

ऐसे माहौल में यदि सेना के जवानों ने बिना किसी स्वार्थ के विषम परिस्थितियों में जिस प्रकार सेवा का कार्य कर मिसाल पेश की है कि उससे पूरे देश को नसीहत लेनी चाहिए। सेना जैसा सेवा भाव जिस दिन सभी के देशवासियों मन में आ जायेगा, उस दिन देश में निश्चित रूप से एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण होगा। हो सकता है कि सेना में भी कुछ कमियां हो, किंतु सब कुछ के बावजूद सेना के जज्बे एवं उसके सेवाभाव को सलाम करते हुए उसका मनोबल और अधिक बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।