किसी भी समस्या को टालने का मतलब यह है कि समस्या और बढ़ रही है यानी समस्या का समाधान यदि उचित समय पर कर दिया जाये तो एक समस्या की वजह से नई समस्याएं नहीं पैदा होंगी। उदाहरण के तौर पर जब कोई संक्रामक बीमारी आती है तो उसके फैलने का खतरा बरकरार रहता है इसलिए तत्काल उस बीमारी को समाप्त करने का काम किया जाता है। समय पर बीमारी का इलाज हो जाता है तो वह दूर हो जाती है अन्यथा वह विकराल रूप धारण कर प्रलय मचा देती है इसलिए किसी काम को समय पर करना अच्छा होता है। देश एवं दुनिया में तमाम ऐसी समस्याएं देखने को मिलती हैं जिनका निदान यदि समय रहते कर दिया गया होता तो वे उतनी विकराल नहीं बनतीं जितनी की वर्तमान समय में हैं। नक्सलवाद एवं आतंकवाद की समस्या को सुलझाने के लिए समय से प्रयास किया गया होता तो इतनी विकराल नहीं होती, कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से जब पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था, यदि उसी समय इस समस्या को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया गया होता तो कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्मभूमि से वंचित नहीं होना पड़ता।
भ्रष्टाचार, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद सहित अन्य समस्याओं पर समय से ध्यान नहीं दिये जाने के कारण ये समस्याएं बढ़ती गईं यानी कि इन तमाम समस्याओं को सुलझाने के लिए इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं किया गया। जैसा चल रहा है चलने दो, की नीति पर अमल किया गया। इतिहास गवाह है कि प्रबल इच्छाशक्ति के साथ जिन समस्याओं के समाधान में जुटा गया, उसका निराकरण हुआ। गृहमंत्री रहते हुए सरदार पटेल ने देश की रियासतों को एक करने का संकल्प लिया तो असंभव-सा दिखने वाला कार्य उन्होंने संभव कर दिखाया। इक्का-दुक्का जो रियासतें बच गईं, वे आज भी रह-रहकर पूरे देश को तकलीफ दे रही हैं।
सन 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया तो पाकिस्तान को सिर्फ धूल ही नहीं चटाई बल्कि उसके टुकड़े करवा कर बांग्लादेश नाम का नया राष्ट्र बनवा दिया। इसके साथ ही उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति उस समय देखने को जब उन्होंने आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से स्वर्ण मंदिर में सेना को घुसा दिया था। 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए कहा कि कारगिल की जब तक एक-एक इंच जमीन दुश्मनों से मुक्त नहीं हो जाती तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, परिणाम सबके सामने है। कारगिल की एक-एक इंच जमीन मुक्त हुई।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु समस्याओं को या तो टाला जाता है या बढ़ावा दिया जाता है। शासन-प्रशासन में तमाम नेताओं एवं अधिकारियों ने समय-समय पर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देकर असंभव को संभव कर दिखाया है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ का आयोजन पूरे देश के समक्ष है। अब तक प्रयागराज में जितने लोग पहुंचे हैं, उतने लोगों की भीड़ को सहज एवं सरल तरीके से कुंभ में डुबकी लगाने का मौका मिला और लोग सही-सलामत यदि अपने घर आ गये तो इसका मतलब यह है कि प्रबल इच्छाशक्ति के आगे सभी समस्याएं दम तोड़ देती हैं और असंभव-सा कार्य संभव में परिवर्तित हो जाता है।
विश्व स्तर पर देखा जाये तो इजरायल, अमेरिका, रूस, चीन सहित कई देश ऐसे हैं जो असंभव को आये दिन संभव में तब्दील करते रहते हैं। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे ने प्रबल इच्छाशक्ति दिखाई तो लिट्टे जैसी भीषण समस्या का निदान हो गया।
प्रबल इच्छाशक्ति का ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर बदला लिया, वरना भारत वही देश है, जहां के सैनिकों का सिर काटकर पाकिस्तानी सैनिक ले गये थे, उस समय देश में बहुत आक्रोश पनपा था और इस बात की मांग उठी भी कि हमें अपने देश के सैनिकों के एक सिर के बदले दस सिर चाहिए लेकिन उस समय सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दिया।
डॉ. हेडगेवार ने प्रबल इच्छाशक्ति की बदौलत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसा बटवृक्ष खड़ा कर दिया जिसकी छांव में बैठकर करोड़ों लोग शुकून पा रहे हैं एवं राष्ट्र एवं समाज को नई दिशा मिल रही है। पं. मदन मोहन मालवीय ने इच्छाशक्ति की बदौलत काशी विश्व विद्यालय की स्थापना कर डाली। इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजादी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही मिली।
अपने व्यावहारिक जीवन में यदि लोग किसी काम के लिए संकल्प कर लेते हैं तो वह पूर्ण हो ही जाता है। यदि एक महीने का रोजा रखा जाता है तो निश्चित रूप से वह दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय ही है। इसी प्रकार नौ दिन तक नवरात्रि का व्रत अपने आप में प्रबल इच्छाश्िक्त का प्रतीक है। कोई मंगलवार को व्रत रखता है तो कोई वृहस्पतिवार को तो कोई अन्य किसी दिन, यह सब इसलिए संभव हो पाता है कि जब कुछ करने के लिए ठान लिया जाता है तो पूरा हो ही जाता है। श्राद्ध एवं अन्य धार्मिक अवसरों पर नानवेज (मांसाहार) का प्रयोग नहीं होगा या उस समय नियमित रूप से पूजा-पाठ होगा, यदि ऐसा संकल्प ले लिया जाता है तो वह भी पूरा हो भी जाता है। कोई भी व्यक्ति यदि यह सोच ले कि वह आज से ही शराब एवं सिगरेट छोड़ देगा तो उसका संकल्प पूरा भी हो जाता है।
अपने देश में जब कहीं कोई भी वीआईपी एवं बड़े अधिकारी विजिट के लिए जाते हैं तो वहां ताबड़तोड़ सारी व्यवस्थाएं हो जाती है एवं अन्य तरह की तमाम समस्याओं का निराकरण भी हो जाता है। आखिर यह सब कैसे संभव हो पाता है? यह सब संभव होने के पीछे भाव यही होता है कि यह कार्य तो करना ही होगा, इसलिए संभव हो जाता है। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) एवं गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) जैसे सफल आयोजन देश में किये जाते हैं तो यह प्रबल इच्छाशक्ति के कारण ही संभव हो पाते हैं। समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों को यदि सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया जाता है तो इससे यह साबित होता है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया जाये तो कुंभ, स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस जैसी स्थिति हमेशा बनाई जा सकती है।
वैसे तो अपने देश में कुछ लोग अपने को कानून से ऊपर समझते हैं और उनको लगता है कि कानून उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है किंतु शासन-प्रशासन जब अपने पर आता है तो बड़े से बड़े लोगों को सबक सिखा देता है। श्री लालू प्रसाद यादव एवं श्री ओमप्रकाश चौटाला जैसे दिग्गज नेता यदि जेल में हैं तो इसके कुछ मायने हैं। इसका साफ संकेत यह है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं है। होली, दीपावली, ईद, एवं क्रिसमस के दिन यदि लोग दिनभर प्रसन्न रहते हैं तो यह माना जा सकता है कि साल भर प्रसन्न एवं स्वस्थ रहा जा सकता है। बस आवश्यकता इस बात की है कि साल भर प्रसन्न रहने के लिए अपने अंदर एक सोच यानी इच्छाशक्ति विकसित करनी होगी।
कानून व्यवस्था की दृष्टि से देखा जाये तो तमाम ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब अधिकारियों ने चाहा तो शासन-प्रशासन की तस्वीर बदल दी। एक जिला अधिकारी चाहे तो पूरे जिले को सुधार सकता है। एक थानाध्यक्ष चाहे तो अपने क्षेत्रा के अंतर्गत अपराधों पर लगाम लगा सकता है किंतु इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि उसकी मंशा पाक-साफ एवं निःस्वार्थ हो तथा ईमानदारी उसकी रग-रग में हो।
आजादी के आंदोलन के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस एवं महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने के लिए अलग-अलग रास्तों का चुनाव किया। दोनों बिल्कुल
विपरीत रास्ते थे। एक रास्ता हिंसा का था तो दूसरा अहिंसा का, देश को आजाद कराने में दोनों फार्मूले कारगर साबित हुए।
जाहिर सी बात है कि इसके पीछे नेता जी एवं महात्मा गांधी की प्रबल इच्छाशक्ति ही थी।
अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारा, इजरायल अपने एक सैनिक के बदले दुश्मनों के दस सैनिक मारकर बदला लेता है। अमेरिका एवं रूस दुनिया के किसी भी देश में जाकर बमबारी कर देते हैं तो इसके पीछे उनकी प्रबल इच्छाशक्ति ही है। उत्तर कोरिया जैसे छोटे से देश को अमेरिका यदि इतना महत्व दे रहा है तो इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उत्तर कोरिया की इच्छाश्िक्त बहुत प्रबल है।
पूर्वी एवं पश्चिमी जर्मनी जब एक हुए तो उस समय पूरी दुनिया में यही संदेश गया कि कुछ भी असंभव नहीं है। स्व. प्रधानमंत्रा श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तो तमाम देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिया किंतु अटल बिहारी वाजपेयी अपने इरादों पर अटल रहे और सभी समस्याओं का समाधान कुशलतापूर्वक करने में सफलता प्राप्त की।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो गुजरात दंगों के बाद अमेरिका सहित कई देशों ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया था, किंतु वे अपने मिशन पर लगे रहे, आज उसका परिणाम सबके सामने है। आज पूरी दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना हो रही है। वर्तमान सरकार ने इच्छा दिखाई तो कश्मीर के अलगाववादियों की सुरक्षा वापस ले ली और पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को भी बंद करवाने की घोषणा कर दी। आज देश में नेशनल हाईवे सहित सड़कों का जाल बिछ रहा है तो इसके मूल में भी दृढ़ इच्छाशक्ति ही है।
शिक्षा के क्षेत्र में देखा जाये तो कुछ बच्चे ऐसे भी देखने को मिलते हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी अपनी इच्छाओं को पूरा किया है। इसके पीछे उन बच्चों की इच्छाशक्ति प्रबल थी। आज देश में एक बात बहुत जोरों से कही जा रही है कि जब तक मोदी हैं, तब तक कुछ भी मुमकिन है यानी कि मोदी जी नामुमकिन को भी मुमकिन में बदलने की क्षमता रखते हैं। निश्चित रूप से श्री नरेंद्र मोदी मोदी के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे सकारात्मक ऊर्जा एवं क्षमता से परिपूर्ण शख्सियत हैं। हिटलर, मुसोलिनी सहित अनेक तानाशाहों ने भी यह साबित किया है कि वे अपने देश को सबसे अधिक मजबूत बनाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे यानी अपने देश को सर्वोच्च स्तर पर देखने के लिए उनकी इच्छा बहुत प्रबल थी। जब उनकी इच्छा प्रबल थी तो वह पूरी भी हुई।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि प्रबल इच्छाशक्ति के आगे कुछ भी मुमकिन है। जो लोग इस सोच के हैं कि जैसा चल रहा है चलने दो, उन्हें इस दिशा में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने अंदर इस प्रकार की प्रबल इच्छा विकसित करनी होगी कि देश है तो सब कुछ है। हम अच्छे होंगे तो समाज भी अच्छा होगा। जब समाज अच्छा होगा तो राष्ट्र स्वतः ही अच्छा हो जायेगा। एक उदाहरण के द्वारा मैं इस लेख का समापन करना चाहूंगा कि लंका में हनुमान जी को जाने के लिए जामवंत ने उनके अंदर की प्रबल इच्छाशक्ति को जागृत किया। इसके बाद महाबली हनुमान जी ने क्या किया, यह सर्वविदित है। इसी रास्ते पर हम सभी को चलना होगा।
अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(लेखक राम-जन्मभूमि न्यास के
ट्रस्टी रहे हैं और भा.ज.पा. केन्द्रीय
कार्यालय के कार्यालय सचिव रहे हैं)