पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर यदि नजर डालें तो साफ जाहिर होता है कि चुनाव आयोग इन चुनावों को पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाने में अपनी सराहनीय भूमिका का निर्वाह कर रहा है। देखने में आ रहा है कि चुनाव आयोग देश के प्रत्येक नागरिक को मतदान केंद्र तक पहुंचाने के लिए तमाम तरह से प्रोत्साहित एवं प्रेरित करने में लगा है। इसके लिए चुनाव आयोग की तरफ से अनेक तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है। मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए जिन कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है, उसमें महत्वपूर्ण हस्तियों को बुलाकर उनसे भी अपील करवाई जा रही है।
जाहिर-सी बात है कि जब प्रत्येक व्यक्ति के दिलो-दिमाग में यह बात बैठ जायेगी कि मतदान प्रत्येक व्यक्ति का वह अधिकार है, जिसके द्वारा सत्ताधारी वर्ग या सत्ता की लालसा पाले लोगों को यह संदेश दिया जा सकता है कि यदि आप लोगों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं किया तो जनता सबक सिखाने के लिए तैयार रहती है। ऐसा अतीत में कितनी बार हो भी चुका है कि जो लोग सत्ता के नशे में चूर थे, या जनता के हितों को भूल गये थे तो जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए उनका नशा उतारने में देर नहीं लगाई है।
हिन्दुस्तान में जब से श्री टी.एन. शेषन चुनाव आयुक्त बने, तबसे देश के लोगों को यह पता चल गया कि देश में चुनाव आयोग नाम की भी कोई संस्था है। अन्यथा उनके पहले चुनाव आयोग को मात्र सरकार का कठपुतली समझा जाता था, किंतु उस समय चुनाव में होने वाली धांधली को रोकने के लिए श्री टी.एन. शेषन ने जो अभियान शुरू किया, उनके आगे सभी राजनैतिक दलों को झुकना पड़ा। गौरतलब है कि मतदाता सूची में फोटो की प्रक्रिया उन्हीं के समय शुरू हुई। सरकार ने उनका असर या उनके प्रभाव को कम करने के लिए और भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति उनके साथ कर दी, किंतु वे अपने मिशन में लगे रहे और उन्हें अपने मिशन में कामयाबी भी मिली। फर्जी मतदान रोकने में उनके प्रयासों की जितनी भी सराहना की जाये, कम है, इसीलिए आज यह बात कही जाती है कि वर्तमान व्यवस्था में रहते हुए भी बहुत कुछ किया जा सकता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने जो रास्ता दिखाया, कमोबेश अन्य चुनाव आयुक्त भी उस रास्ते पर चलते हुए तमाम अन्य सुधारों को अंजाम दिया। आज स्थिति यह है कि सभी प्रत्याशियों एवं राजनैतिक दलों में इस बात का भय बना रहता है कि कहीं चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन न हो जाये।
पहले चुनाव में जहां तमाम तरह के ताम-झाम लगते थे, अब उसमें बहुत कमी आई है। काफी कुछ नियमों-कानूनों के अंतर्गत कर दिया गया है। चुनाव खर्च की सीमा, झंडे-बैनर, चुनाव कार्यालय, चुनाव प्रचार हेतु उपयोग की जाने वाली गाड़ियों एवं अन्य तमाम आवश्यक मामलों में नियम सख्त होने के कारण चुनाव अब पारदर्शी एवं निष्पक्ष होने लगे हैं। इसी कारण अब धीरे-धीरे सभी चुनावों में मतदान का प्रतिशत भी बढ़ रहा है। जब मतदाता निर्भीक होकर मतदान करता है तो निश्चित रूप से मतदान का प्रतिशत भी बढ़ता है।
मतदान के प्रति सभी लोगों को प्रेरित करने के पीछे एक कारण यह भी है कि यदि समाज के सभी तबकों के लोग पूर्ण रूपेण मतदान करने लगेंगे, तभी वास्तविक लोकतंत्र का नजारा लोगों को देखने को मिलेगा। यदि सभी लोग मतदान करने के लिए नहीं जाते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि सरकारें एवं राजनैतिक दल सिर्फ उनके लिए चिंतित रहते हैं जो मतदान में अधिक भागीदारी करते हैं किंतु वर्तमान परिस्थितियों में यदि नजर डाली जाये तो स्पष्ट दिखता है कि चुनाव आयोग लोकतंत्र को और मजबूत बनाने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहा है। हम सभी को उन प्रयासों को और अधिक सफल बनाने के लिए अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।