भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी की कंपनी पूर्ति समूह से जुड़ी कंपनियों पर आयकर विभाग के छापों से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या इसमें किसी प्रकार की राजनीतिक साजिश की बू आती है। श्री नितिन गडकरी ने साफ कहा है कि उनके खिलाफ यह साजिश है। उनकी पार्टी को बदनाम करने के लिए राजनीतिक साजिश के तहत यह सब हो रहा है। आयकर विभाग के छापों के बाद यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या अब आयकर विभाग का भी राजनीति के लिए इस्तेमाल होने लगा है। अभी तक तो राजनीतिक कारणों से सीबीआई के दुरुपयोग की खबरें सुनने को मिलती रहती थीं, किंतु उस श्रेणी में अब सीबीआई का भी नाम जुड़ चुका है।
हिन्दुस्तान की राजनीति में कई बार ऐसा देखने को मिला है कि किसी मुद्दे पर जो दल सरकार की राय से भिन्न राय रखते हैं किंतु आवश्यकता पड़ने पर वही दल संसद में सरकार का साथ देने के लिए विवश हो जाते हैं खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के लिए विवश हो जाते हैं। खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के मुद्दे पर सपा, बसपा और द्रमुक जैसे दल एकदम विरोध में थे, किंतु लोकसभा एवं राज्यसभा में जब शक्ति परीक्षण की बात आई तो ये दल सरकार के साथ खड़े हो गये। उस समय यही कहा गया कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव एवं बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। यदि ये लोग सरकार का साथ नहीं देते तो इनके खिलाफ सीबीआई की तलवार लटक सकती थी। संसद में इस प्रकार के वाक्य कई बार देखने को मिले हैं। एफडीआई के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि यह जीत सरकार की नहीं बल्कि सीबीआई की जीत है। राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती ने कहा कि एनडीए सरकार ने भी उनके खिलाफ सीबीआई का दुरुपयोग किया था।
वर्तमान समय में सीबीआई का दुरूपयोग कौन कितना करता है, यह एक अलग बात है, किंतु अब जन-जन में यह चर्चा का विषय बन चुका है कि सीबीआई स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं है। सीबीआई के कई पूर्व निदेशक एवं अधिकारी भी कह चुके हैं कि राजनीतिक मामलों में सीबीआई पर दबाव रहता है। अब सवाल यह उठता है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के खिलाफ इस प्रकार के आरोप लगें तो उसकी निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता पर कैसे यकीन किया जा सकता है। सीबीआई की छवि यदि इस प्रकार की बनी है तो अकारण ही नहीं बनी है। इस प्रकार की छवि बनने में सीबीआई की भी अपनी भूमिका होगी।
अभी तक सीबीआई के दुरुपयोग की चर्चा तो जन-जन की जुबान पर होती थी, अब उस श्रेणी में आयकर विभाग का भी नाम शामिल हो गया है। अपने राजनैतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए अब सीबीआई की तरह आयकर विभाग का भी दुरुपयोग होने लगा है। राजनैतिक लोगों पर यदि आयकर विभाग की छापेमानी हो तो बहुत कम ऐसे नेता मिलेंगे जो इस दायरे में न आते हों, किंतु छापेमारी की कार्रवाई तो मात्र कुछ ही लोगों के खिलाफ होती है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई किसके कहने या किसके इशारे पर हुई है, इस बात की अब तक कोई प्रामाणिकता नहीं है किंतु श्री गडकरी ने स्वतः कहा है कि आयकर विभाग की कार्रवाई उनके खिलाफ राजनैतिक साजिश का हिस्सा है। कुछ लोगों का मानना है कि इस मामले में संभवतः कुछ भाजपा नेताओं का भी हाथ हो। इस मामले में वे नेता हो सकते हैं, जिनके संबंध कांग्रेसी नेताओं से अच्छे एवं मधुर हों। इस प्रकार की बातें आम-चर्चा में हैं, सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही साबित हो सकती है किंतु आवश्यकता इस बात की है कि भारत की संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता को बचाये रखना निहायत जरूरी है।