दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद पूरे देश में एक बात जोर पकड़ती जा रही है कि बलात्कारियों के खिलाफ सिर्फ सख्त कानून बनाने से ही काम चलने वाला नहीं है। सख्त कानून के साथ-साथ समाज में एक व्यापक सोच की आवश्यका हैै। लोगों को अपने आचरण एवं विचारों में बदलाव करना होगा। बच्चों को अपने घर-परिवार से ही यह शिक्षा मिलनी चाहिए कि महिलाओं एवं लड़कियों का सम्मान एवं आदर किस प्रकार किया जाये? हर लड़की एवं महिला में लोग बेटी, बहन एवं मां की छवि देखना प्रारंभ कर देंगे तो समाज में आधी से अधिक कमियां अपने आप समाप्त हो जायेंगी।
प्राचीन काल में भारतीय समाज में एक कहावत बहुत प्रचलित थी कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं किंतु मध्यकाल तक आते-आते महाकवि गोस्वामी तुलसीदास को श्री राम चरित मानस में लिखना पड़ा कि ‘ढोल गंवार, शुद्र, पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी।’
अब यह सोचने वाली बात है कि समाज में इस प्रकार का परिवर्तन कैसे आया कि महा कवि गोस्वामी तुलसी दास को इस प्रकार की बात लिखनी पड़ी। कमोबेश आज समाज की वैसी स्थिति नहीं है, जैसी कि मध्यकाल की परिस्थितियों में दृष्टि गोचर होती है किंतु वर्तमान समय में जिस प्रकार आये दिन महिलाओं के साथ अपहरण, बलात्कार, तेजाब फेंकने आदि की घटनाएं हो रही हैं, उससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि अब कुछ न कुछ तो करना ही होगा। ऐसे तमाम लोग हैं जिनका स्पष्ट रूप से मानना है कि समाज में नैतिक मूल्यों में जिस प्रकार गिरावट आ रही है, उसका परिणाम है कि ऐसी घटनायें आये दिन हो रही हैं। भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति सममान का जो भाव था, यदि वह समाप्त हो रहा है तो उस पर नये सिरे से एवं व्यापक रूप से मंथन करने की आवश्यकता है। कहा जा रहा है कि देश में जब से पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का बेतहाशा अनुशरण किया जाने लगा है तभी से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की अपनी कुछ अच्छाइयां भी हैं। भारतीय समाज यदि उन अच्छाइयों को ग्रहण कर बुराइयों को त्याग दे तो दिक्कत वाली कोई बात नहीं है, किंतु देखने में आ रहा है कि बुराइयां तो ज्यादा ग्रहण की जा रही हैं और अच्छाइयां लोग कम ग्रहण कर रहे हैं। शराब एवं नशा तो पाश्चात्य जीवन शैली के कारण ज्यादा बढ़ा है। जिस दिन भारत का हर युवा एवं भारतवासी अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को पहचानकर पूरी तरह अपने आपमें आत्मसात कर लेगा, उसी दिन से भारत में बलात्कार एवं महिलाओं के साथ यौन अपराधों में कमी आनी प्रारंभ हो जायेगी।
कुछ लोगों को लग सकता है कि अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की बात करने का अर्थ है कि महिलाओं की स्थिति को पुराने जमाने में ले जाना, दकियानूसी विचारों को बढ़ावा देना आदि किंतु ऐसी बात नहीं है कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को आधुनिकता से मिलाकर न चला जा सके। आधुनिकता एवं भारतीय सभ्यता-संस्कृति साथ-साथ चल सकते हैं।
आधुनिकता का सर्वत्र स्वागत होना चाहिए। आधुनिकता तो विचारों में होनी चाहिए, हाव-भाव में होनी चाहिए। आधुनिकता का मतलब सिर्फ यही नहीं है कि वह महज रहन-सहन एवं कपड़ों में ही दिखाई दे। आधुनिकता का मतलब यह भी हो सकता है कि अबला एवं गरीबों की हर स्तर पर मदद की जाये। किसी की मजबूरी का लाभ उठाने की बजाय उसकी मदद करनी चाहिए। सड़क पर यदि कोई घायल हो तो तमाशबीन बनने की बजाय अपनी क्षमता के मुताबिक उसकी मदद की जाये। बच्चों एवं बुजुर्गाें की रक्षा की जाये। ये सारी बातें हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों में प्राचीन काल से शामिल रही हैं। ऐसे में यदि हम अपनी जड़ों की तरफ पुनः वापस आते हैं तो सर्व दृष्टि से अच्छा ही रहेगा।