नैतिक मूल्यों की मजबूती से ही राष्ट्र की वास्तविक सुख-समृद्धि संभव


इसमें कोई दो राय नहीं कि देश तेजी से विकास कर रहा है। सभी क्षेत्रें में विकास की रफ्तार बहुत तेज है किंतु समाज में अभी भी तमाम तरह की ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि क्या आजादी के दीवानों ने इसी भारत की कल्पना की थी? शहीदों ने अपनी जान की बाजी लगाकर क्या इसी भारत की बात सोची थी? दामिनी गैंगरेप की घटना के बाद राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम तरह की चर्चा हुई मगर क्या हुआ? अपहरण एवं बलात्कार की घटनाओं में और अधिक इजाफा होता जा रहा है।

दो वर्ष की बच्ची से लेकर अस्सी साल की वृद्धा तक के साथ बलात्कार की घटनाएं सुनने एवं देखने को मिल रही हैं। अपहरण एवं बलात्कार की घटनाओं  में सगे-संबंधियों की संलिप्तता को देखकर तो यही अहसास होता कि जैसे संबंधों का खून हो रहा है। बाप-बेटी के साथ दुष्कर्म करे, मां-बेटे एवं भाई-बहन  के साथ अनैतिक संबंधों की खबरें यदि सुनने एवं देखने को मिलें तो आसानी से समझाा जा सकता है कि आखिर हमारा समाज कहां जा रहा है? हम लोग पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के इतने दीवाने हो गये हैं कि हमें अपना अतीत ही याद नहीं रहा।

वास्तव में यदि गंभीरता से विचार किया जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि इस हद तक पतन का कारण नैतिक मूल्यों में गिरावट का होना है। नैतिक मूल्यों की याद दिलाने का मतलब यह कतई नहीं है कि बेवजह किसी पर ऊंगली उठाई जाये। इस देश की वास्तविक संस्कृति क्या दोबारा वापस नहीं आ सकती है? यह वही देश है जहां राम और रहीम का नाम एक साथ लिया जाता था। यह वही देश है जहां श्रवण कुमार जैसी औलाद ने जन्म लिया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इसी देश की धरती पर अवतार लिया जिससे समाज को एक दिशा दी जा सके। भगवान श्री राम ने धरती पर अवतार लेकर यह बताया एवं दिखाया कि आज्ञाकारी पुत्र, अच्छे शासक, अच्छे भाई, अच्छे पति एवं अन्य संबंधों की भूमिका कैसे निभाई जा सकती है? इसी देश की धरती पर अवतार लेकर भगवान कृष्ण ने यह दिखाया कि कृष्ण और सुदामा की बेमेल दोस्ती का निर्वाह कैसे किया जा सकता है? रहीम, कबीर और अन्य तमाम संतों ने इसी धरती पर अवतार लेकर मानवता को इस बात का संदेश दिया कि सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोग एक साथ मिलकर कैसे रह सकते हैं? मां-बाप का सम्मान, भाई-बहन के संबंधों की मर्यादा एवं रक्षा कैसे होती है? यह इस देश की प्राचीनतम परंपराओं में शामिल रही है। यह देखकर बहुत कष्ट होता है कि आखिर राम-रहीम की धरती पर यह सब क्या हो रहा है? समाज इतना निष्ठुर कैसे हो रहा है? पैसा ही सब कुछ बनता जा रहा है। आखिर इस तरह की संस्कृति क्यों पनपती जा रही है?

वास्तविक भारत का निर्माण तब तक संभव नहीं है जब तक हम अपनी सभ्यता-संस्कृति की तरफ अग्रसर नहीं होंगे? जब तक रिश्तों की मर्यादा एवं पवित्रता को नहीं समझेंगे। मात्र नियमों-कानूनों से ही सब कुछ ठीक-ठाक होने वाला नहीं है। समाज को संचालित करने के लिए सख्त कानून जरूरी हैं, लोगों में कानून का खौफ जरूरी है किंतु यह मान लिया जाये कि सब कुछ कानूनों से ही संभव हो जायेगा तो ऐसा होने वाला नहीं है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि सख्त कानूनों के साथ-साथ अपने नैतिक मूल्यों को भी मजबूत किया जाये क्योंकि बिना नैतिक मूल्यों के समाज में उच्च आदर्शाें एवं मानदंडों को स्थापित नहीं किया जा सकता है? वर्तमान परिस्थितियों में सांस्कृतिक  दृष्टि से मजबूत समाज से ही वास्तविक सुख-समृद्धि संभव है।