चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनावों की भी सुगबुगाहट हो गई है। इसी के मद्देनजर जगह-जगह चैनल वाले चुनावी बहस चला रहे हैं। अलग-अलग नामों से चैनल चुनावी चासनी आम जनता के समक्ष पेश कर रहे हैं। आजकल देखने में आ रहा है कि चैनलों पर जब बहस होती है तो उसमें ऐसा देखने को मिलता है कि विषय की गंभीरता नहीं होती है। कौन कितनी शालीनता से अपनी बात रख रहा है यह बात बहुत मायने नहीं रखती है।
महत्वपूर्ण बात यह होती है कि कौन कितनी तेज बोलता है और किस प्रकार सामने वाले का मुंह बंद करा देता है? जोर-जोर से चिल्लाकर होने वाली बहसों का न कोई ओर होता है, न छोर! इन बहसों में जो लोग शामिल होते हैं, बात सिर्फ उन्हीं तक ही सीमित नहीं है बल्कि इन बहसों को संचालित करने वाले ऐंकरों का भी यही हाल है। उन्हें भी लगता है कि सामने वाला जब तक उनके सामने शांत या नतमस्तक न हो जाये तब तक उन्हें उमदा टीवी ऐंकर नहीं माना जायेगा।
चैनलों में बहस के दौरान आये दिन यह कहते हुए सुना जाता है कि ये झूठ बोल रहे हैं या इन्हें इस बात की जानकारी नहीं है। स्वयं ऐंकर ही कह देते हैं कि पहले आप अपनी जानकारी बढ़ाइये या फिर सामने वाले को कह दिया जाता है कि हमें आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। बहस में शामिल एक व्यक्ति दूसरे को कह देता है कि आपको जोर-जोर से बोलने की आदत पड़ चुकी है। ऐसे में जो लोग चैनल की मर्यादा, अनुशासन एवं सीमा में रहकर बात करते हैं, वे अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं। कभी-कभी तो ऐसे लोगों को लगता है कि वे इस प्रकार की मुंह-नोचवा बहस में शामिल होने योग्य ही नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा देखने को मिलता है कि निर्धारित समय में आधे समय तक तो ऐंकर स्वयं बोलते हैं और आधे समय में अन्य लोगों को अवसर मिलता है।
आज राजनैतिक दलों एवं तमाम लोगों में इस बात की चर्चा होती है कि आखिर चैनलों की बहस में शामिल होने योग्य कौन है? राजनैतिक दलों में यदि किसी विषय का कोई बहुत जानकार है किंतु उसमें इनती क्षमता नहीं है कि चैनल पर विरोधी गुट को या सामने वाले को दबा सके तो उसकी जानकारी एवं पूरी क्षमता बेकार हो जाती है। ऐसे में आज विचारणीय प्रश्न यह है कि चैनल इस बात का ध्यान दें कि बहस में शामिल लोगों को यह बात साबित करने का मौका दें कि वास्तव में उनके अंदर उस विषय की कितनी जानकारी है या कितनी शालीनता से अपनी बात रख सकते हैं।
आम जनता भी चैनलों पर आने वाले लोगों के बारे में जान सके कि कौन कितना काबिल है, कितना गंभीर एवं कितना मर्यादित है? अन्यथा किसी दिन राजनैतिक दलों एवं तमाम लोगों को इस बात की दिक्कत होगी कि वे चैनलों पर किसे भेजें? ऐसे में चैनलों पर राजनैतिक दल ऐसे लोगों को भेजने के लिए बाध्य होंगे जिनके पास विषय की जानकारी भले ही न हो, किंतु जोर-जोर से चिल्लाकर एवं सामने वाले पर दबाव बनाकर अपनी बात रखने की कला में दक्ष हों? चैनलों से मेरा विनम्र निवेदन है कि ऐसा माहौल बनायें जिससे विषय की गंभीरता एवं मर्यादा को और आधिक बढ़ावा मिल सके।