प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे का आंदोलन कितना सफल रहा? सरकार से वे अपनी मांगे मनवा पाने में कितना कामयाब रहे? भविष्य में उनकी मांगों पर सरकार कितना गंभीरता दिखायेगी? यह सब बातें तो चलती रहेंगी और इस पर गर्मागर्म बहस भी होती रहेगी। इन सबके बीच एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि यदि भारत भ्रष्टाचार मुक्त हो गया तो, उस समय का भारत कैसा होगा? राजनीतिक दलों, नेताओं, अधिकारियों एवं विशिष्ट लोगों की जीवन शैली कैसी होगी? क्या सभी लोग ईमानदार हो जायेंगे? समाज से दिखावापन समाप्त हो जायेगा।
हालांकि, अभी ये सब बातें लोगों को काल्पनिक ही लगेंगी, मगर कुछ भी असंभव नहीं है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि दृढ़ निश्चय के साथ किसी काम को किया जाये? मान लीजिए यदि ऐसा हो भी जाता है या भ्रष्टाचार पर आधा भी अंकुश लग जाये, तो भी भारत को फिर से सोन की चिड़िया मान लिया जायेगा। आज तो स्थिति यह है कि इसके बारे में सिर्फ सोचा एवं बात ही की जा सकती है, मगर उम्मीद तो की ही जा सकती है।
अभी तक समाज में स्थिति ऐसी बनी भी थी कि पैसे वालों के ही ईर्द-गिर्द सब कुछ चल रहा था। यानी कि जिसके पास पैसा है वही सब कुछ है। इस बात की भी चर्चा नहीं होती थी कि वह पैसा कमाया कैसे गया है? अन्ना हजारे ने अब इस अवधारणा को बदल दिया है। अब लोगों को लगने लगा है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी देश एवं समाज के लिए कुछ कर सकता है? पैसा उसमें बाधक नहीं बन सकता है। अन्ना के आंदोलन से यह भी साबित हो गया कि यदि इरादे नेक हों तो दान देने वालों की भी कमी नहीं है। 12 दिन तक रामलीला मैदान में ऐसा ही देखने को मिला।
देश की आम जनता के बारे में तमाम तरह की बातें की जाती थीं। कहा जाता था कि जनता भी सिर्फ उन्हीं लोगों का साथ देती है, जिनके पास धन बल और बाहुबल है, मगर अन्ना के आंदोलन से यह साबित हो गया कि जनता अपनी जगह बिल्कुल सही है यदि जनता को सुयोग्य नेतृत्व मिले तो वह किसी भी हद तक साथ निभाने को तैयार है। चाहे उसे कितना भी कष्ट क्यों न सहना पड़े? अन्ना से प्रेरित होकर आज आम आदमी में भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना जाग चुकी है। लोगों में समाज सेवा के प्रति ललक अब और बढ़ रही है। भारत भ्रष्टाचार से कितना और कब तक मुक्त होगा? यह भी एक अलग प्रश्न है, मगर लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ वर्षों से दबा आक्रोश जाहिर कर दिया है। यदि अब भी सरकारें इसे न समझ सकें तो फिर क्या कहा जा सकता है? आज जो लोग संसद की सर्वोच्चता की दुहाई दे रहे हैं, क्या उनकी समझ में यह बात नहीं आती कि आखिर ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई? सब कुछ नियम-कानून ही नहीं होता, व्यावहारिकता एवं समाज भी कुछ होता है। जिस व्यवस्था में लोगों को घुटन होने लगे, उसमें सुधार तो करना ही पड़ेगा।
पहले कहा जाता था कि देश एवं समाज में भ्रष्टाचार जीवन का आवश्यक अंग बन चुका है। इस पर बात करना फिजूल की बात है मगर आज यह साबित हो गया है कि आम जनता के लिए सबसे बड़ा मुद्दा यही है। आज कुछ लोग व्यंगात्मक लहजे में कहते हैं कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत में भ्रष्टाचारियों का कमोवेश वही हाल होगा, जैसा पानी बिना मछलियों की। कुछ मिलाकर स्थिति ऐसी बन रही है कि जिन्होंने धन कमा लिया है, उन्हें उसे बचाये रखने की चिंता सता रही है। जो नहीं कमा पाये हैं, उन्हें न कमा पाने की चिंता सता रही है। काली कमाई वालों को इस बात की चिंता है कि समाज में उनका रूतबा कैसे बरकरार रहेगा?
भ्रष्टाचार मुक्त भारत में भष्टाचारियों की स्थिति क्या होगी? इस बात को सोच कर वे विक्षिप्त हो रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति यही बन रही है कि जनता की जागरूकता एवं आक्रोश को देखते हुए भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना हम सभी का कर्तव्य है। इसके लिए हर किसी को चाहे जितनी भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़े, तैयार रहना होगा।