राजधानी दिल्ली में आठ निगम पार्षदों के स्टिंग आॅपरेशन के माध्यम से यही साबित होता है कि कोई भी दल कितने भी दावे करे, मगर लगता नहीं कि किसी भी दल का दामन बिल्कुल पाक-साफ है। हालांकि, सभी पार्षद अपने दलों से निलंबित हो चुके हैं मगर महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि ये सब कमियां व्यवस्था में ही मौजूद हैं। क्या सभी दलों में इतना नैतिक साहस है कि जितने भी इस प्रकार के भ्रष्ट लोग हैं, चाहे उनका पर्दाफाश हुआ हो या न हो, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकें। यदि ऐसा संभव होता है तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार आज नहीं तो कल मिट ही जायेगा। बशर्ते इसके लिए आवश्यक है कि सभी राजनीतिक दल बिना किसी भेदभाव के दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय दें।
भ्रष्टाचार के विरोध में रामलीला मैदान में प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे द्वारा किया गया आंदोलन कितना सफल रहा? सरकार से वे अपनी मांगे मनवा पाने में कितना कामयाब रहे? भविष्य में उनकी मांगों पर सरकार कितना गंभीरता दिखायेगी? यह सब बातें तो चलती रहेंगी और इस पर गर्मागर्म बहस भी होती रहेगी। किंतु इन सबके बीच एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि यदि भारत भ्रष्टाचार मुक्त हो गया तो, उस समय का भारत कैसा होगा? राजनीतिक दलों, नेताओं, अधिकारियों एवं विशिष्ट लोगों की जीवन शैली कैसी होगी? क्या सभी लोग ईमानदार हो जायेंगे? समाज से दिखावापन समाप्त हो जायेगा।
हालांकि, अभी ये सब बातें लोगों को काल्पनिक ही लगेंगी, मगर कुछ भी असंभव नहीं है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि दृढ़ निश्चय के साथ किसी काम को किया जाये? मान लीजिए यदि ऐसा हो भी जाता है या भ्रष्टाचार पर आधा भी अंकुश लग जाये, तो भी भारत को फिर से सोने की चिड़िया मान लिया जायेगा। आज तो स्थिति यह है कि इसके बारे में सिर्फ सोचा एवं बात ही की जा सकती है, मगर उम्मीद तो की ही जा सकती है।
अभी तक समाज में स्थिति ऐसी बनी थी कि पैसे वालों के ही ईर्द-गिर्द सब कुछ चल रहा था। यानी जिसके पास पैसा है वही सब कुछ है। इस बात की भी चर्चा नहीं होती थी कि वह पैसा कमाया कैसे गया है? अन्ना हजारे ने अब इस अवधारणा को बदल दिया है। अब लोगों को लगने लगा है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी देश एवं समाज के लिए कुछ कर सकता है? पैसा उसमें बाधक नहीं बन सकता है। अन्ना के आंदोलन से यह भी साबित हो गया कि यदि इरादे नेक हों तो दान देने वालों की भी कमी नहीं है। 12 दिन तक रामलीला मैदान में ऐसा ही देखने को मिला था। देश की आम जनता के बारे में तमाम तरह की बातें की जाती थीं। कहा जाता था कि जनता भी सिर्फ उन्हीं लोगों का साथ देती है, जिनके पास धन बल और बाहुबल है, मगर अन्ना के आंदोलन से यह साबित हो गया कि जनता अपनी जगह बिल्कुल सही है। यदि जनता को सुयोग्य नेतृत्व मिले तो वह किसी भी हद तक साथ निभाने को तैयार है। चाहे उसे कितना भी कष्ट क्यों न सहना पड़े? अन्ना से प्रेरित होकर आज आम आदमी में भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना जाग चुकी है।
लोगों में समाज सेवा के प्रति ललक अब और बढ़ रही है। भारत भ्रष्टाचार से कितना और कब तक मुक्त होगा? यह भी एक अलग प्रश्न है, मगर लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ वर्षों से दबा आक्रोश जाहिर कर दिया है। यदि अब भी सरकारें इसे न समझ सकें तो फिर क्या कहा जा सकता है? आज जो लोग संसद की सर्वोच्चता की दुहाई दे रहे हैं, क्या उनकी समझ में यह बात नहीं आती कि आखिर ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई? सब कुछ नियम-कानून ही नहीं होता, व्यावहारिकता एवं समाज भी कुछ होता है। जिस व्यवस्था में लोगों को घुटन होने लगे, उसमें सुधार तो करना ही पड़ेगा।