समाज में भ्रम जाल इस कदर बढ़ता जा रहा है कि लोग भ्रम जाल में पड़कर अपनी ऊर्जा, समय और शक्ति गंवाते जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव होने के कारण आम लोगों का झुकाव भौतिकवाद की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है। येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने की इच्छा लोगों को भ्रम जाल के भंवर जाल में और उलझाये जा रही है। क्या अच्छा, क्या बुरा, कौन रास्ता आसान और कौन कठिन का भेद करने की क्षमता का निरंतर हरास होता जा रहा है। समाज में ठगों एवं जालसाजों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। असंभव को भी संभव बनाने की कोशिश में लोग लगे हुए हैं।
समाज में यदि कोई वास्तविकता के धरातल पर आने एवं लाने की बात कर रहा है तो उसकी बात लोग सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। झूठे सब्ज-बाग दिखाने वालों का बोलबाला है। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि यदि राजनीतिक दल एवं नेता दो-चार झूठे सब्ज-बाग दिखा दें तो लोग उसे चुनाव भी जितवा दे रहे हैं। लोगों को जब तक अपनी गलती का एहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि सर्वत्रा मृग मरीचिका की स्थिति बरकरार है। बेचारा हिरन रेगिस्तान में पानी की आस में भागता रहता है किन्तु उसे पानी नहीं मिल पाता क्योंकि पानी तो है ही नहीं तो मिलेगा कहां से? कमोबेश इसी प्रकार की स्थिति सर्वत्रा बनी हुई है। सब कुछ जानते हुए भी लोग मायावी चक्र एवं भ्रम जाल में फंसते जा रहे हैं।
भ्रम जाल को यदि परिभाषित किया जाये तो किसी भी बात को जानते हुए भी न जानने की कोशिश करना और न जानने योग्य बात को जानने की कोशिश करना यानी वास्तविकता से बहुत दूर जाकर काल्पनिक दुनिया में विचरण की स्थिति को ही भ्रम जाल कहा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर त्रोता युग में बनवास के समय लंका नरेश रावण का मायावी मामा मारीच सोने का मृग बनकर पंचवटी में आया तो माता जानकी उसे देखकर मुग्ध हो गयीं और प्रभु श्रीराम से उस स्वर्ण मृग की छाल लाने की जिद करने लगीं। उस समय प्रभु श्रीराम ने सीता जी से कहा कि सोने का मृग नहीं होता। निश्चित रूप से यह कोई माया है किन्तु माता जानकी अपनी जिद पर अड़ी रहीं और उसका परिणाम यह हुआ कि रावण के हाथों माता जानकी का हरण हो गया।
कहने का आशय यही है कि यदि माता जानकी यह स्वीकार कर लेतीं कि सोने का मृग नहीं हो सकता तो उनका हरण नहीं होता। इसी प्रकार की स्थिति को ही भ्रम जाल कहा जा सकता है। आज समाज में सर्वत्रा कुछ इसी प्रकार की स्थिति देखने को मिल रही है यानी भ्रम जाल एक गलत विश्वास है जो बाहरी सच्चाई के बारे में लगाये गलत अनुमान पर आधारित होता है या स्पष्ट शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि गलत होने का ठोस प्रमाण होने के बावजूद भी व्यक्ति उसे नहीं छोड़ता है।
हमारा देश भारत गांवों का देश है। देश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती थी किन्तु बदलते परिवेश में गांवों से शहरों की तरफ पलायन तेजी से हुआ है। पलायन के कारणों की चर्चा विस्तार से हो सकती है परंतु इसके बावजूद आज भी देश की अधिकांश आबादी गांवों में ही रह रही है। इसी बात को ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें ग्रामीण भारत के विकास के लिए विशेष रूप से ध्यान दे रही हैं। किसानों की आय को कैसे बढ़ाया जाये इसके लिए सरकारें निरंतर प्रयासरत हैं।
हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था हमेशा से खेती-बाड़ी, जड़ी-बूटियों, पशुपालन, लघु, कुटीर एवं घरेलू उद्योगों पर आधारित रही है। इसी व्यवस्था में रहते हुए भारत ने पूरे विश्व में सोने की चिड़िया का रूतबा हासिल किया था किन्तु देश जब से माल संस्कृति, बड़े-बड़े उद्योगों, मल्टी नेशनल कंपनियों एवं बड़े-बड़े बाजारों के भ्रम जाल में आया तब से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का ढांचा चरमरा गया। गांव-देहात के हाट-बाजार सरकारी उदासीनता के कारण बंद होने लगे। जिन गांवों में पहले दूध, दही, घी, साग-सब्जी व फल का भण्डार होता था, आज उन गांवों में भी ये सभी वस्तुएं बाहर से मंगाई जाने लगी हैं यानी कि गांव भी बाहरी दुनिया के भ्रम जाल में फंस कर तबाही के कगार पर आ रहे हैं। इससे उबरने का एक ही रास्ता है कि पाश्चात्य जगत के मायावी भ्रम जाल से निकलकर पुनः अपने गौरवमयी ग्रामीण संस्कृति पर चला जाये और उसी के अनुरूप जीवन जिया जाये।
आजकल समाज में एक स्थिति यह देखने को मिल रही है कि सब कुछ होते हुए भी लोग निराशा के भंवर में डूब रहे हैं। डिपे्रशन का शिकार हो रहे हैं। यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि आज समाज में तमाम लोग ऐसे हैं जिन्हें यह लगता है कि वे रफ्तार में औरों से पिछड़ रहे हैं जबकि समाज के उन लोगों को नजदीक से देखा जाये जिन्हें लोग सर्वदृष्टि से सक्षम समझते हैं तो संभवतः यह पता लगेगा कि वे और भी अधिक परेशान हैं यानी यहां भी भ्रम जाल की ही स्थिति है। ऐसी स्थिति में बेहतर है कि अपने पास जो भी या जितना भी है उतने में संतुष्ट रहने का प्रयास किया जाये। इसी मार्ग पर चलकर भ्रम जाल से निकला जा सकता है।
अपने देश में रह रहे तमाम लोगों को ऐसा लगता है कि विदेशों में सब कुछ अच्छा है, वहां जाकर मालामाल हुआ जा सकता है। अमीर बनने की चाहत में तमाम लोग आये दिन कबूतरबाजी का शिकार हो रहे हैं यानी विदेश ले जाकर अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर भी लोगों को ठगा जा रहा है। जो लोग यह सोच कर संतुष्ट रहते हैं कि उचित अवसर मिलने पर ही कहीं जायेंगे तो उनका कोई नुकसान नहीं होता है क्योंकि ऐसे लोग विदेशों में जाकर मालामाल होने के लिए हाय-तौबा नहीं मचाते हैं बल्कि उचित समय का इंतजार करते हैं जबकि सच्चाई यह है कि उचित समय भी अपने समय पर ही आता है। यह सब लिखने का अभिप्राय यह है कि यहां भी भ्रम जाल की स्थिति बरकरार है जबकि वास्तविकता में ऐसा है नहीं। संत-महात्माओं के पास जाकर उनके द्वारा बताये गये मार्ग पर चलकर आर्थिक रूप से संपन्न बनने एवं अन्य सुख-सुविधाओं की इच्छा पाले तमाम लोगों को देखा जा सकता है। ऐसे लोगों को लगता है कि इस रास्ते पर चलकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि धार्मिक रास्ते पर चलकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं किंतु धार्मिक मार्ग पर सिर्फ इसीलिए चला जाये, यह ठीक नहीं है।
धर्म के रास्ते पर चलकर मन की शांति एवं मोक्ष की कल्पना की जाये तो अच्छा है। इस मार्ग पर चलकर जीवन में जो कुछ अच्छा हो जाये उसका लाभ उठाना चाहिए किंतु सिर्फ स्वार्थवश चला जायेगा तो कभी-कभी इच्छाएं पूरी नहीं भी हो सकती हैं तो ऐसी स्थिति में मन दुखी भी हो सकता है इसलिए यहां भी भ्रम जाल में पड़ने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है। धर्म के रास्ते पर चलना हमारा कर्तव्य है, यही मानकर चलना चाहिए न कि किसी लोभ एवं स्वार्थ के लिए। महाकवि गोस्वामी तुलसी दास जी ने श्रीराम चरित मानस मे लिखा भी है कि ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा,’ यानी कर्म ही प्रधान है। कर्म के अनुसार ही फल मिलेगा। कर्म से ही भाग्य को बल मिलता है और यह भी सत्य है कि समय से पहले और भाग्य से अधिक न कभी किसी को मिला है न मिलेगा।
कभी-कभी कुछ लोगों से मिलने के बाद ऐसा लगता है कि जीवन में चमत्कार होने वाला है यानी आशा का संचार हो जाता है किन्तु अपने आप में यह भी पूरी तरह सत्य है कि जीवन में आशावादी दृष्टिकोण तो जरूरी है परंतु अति आत्म विश्वास से बचना चाहिए। किसी के प्रभाव एवं भ्रम जाल में आकर अति आत्म विश्वास भ्रम जाल ही साबित होता है।
आजकल अपने देश में मुफ्त में बहुत कुछ देने की बात राजनेता एवं राजनीतिक दल कर रहे हैं किंतु क्या यह संभव है कि सब कुछ मुफ्त में दिया जा सकता है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए तमाम जन कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, यदि इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन ईमानदारी से हो जाये तो मुफ्त में कुछ भी देने या बांटने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऋण माफी से कितने किसानों का भला हुआ है? इससे किसानों की स्थिति में कितना सुधार हुआ है? जरूरतमंद की मदद की जाये, हमेशा इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है।
सरकारें हमारा घर-परिवार चलायेंगी। इस प्रकार की धारणा सिर्फ भ्रम जाल ही साबित होगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में देशवासियों ने 72 हजार की पेशकश ठुकरा कर एक मिशाल पेश की है। वैसे भी 15 लाख रुपये खाते में आने का इंतजार लोग आज भी कर रहे हैं। एक बात अपने आप में पूरी तरह से सत्य है कि जीवन में परिश्रम एवं सकारात्मक सोच के साथ काम करने के अलावा कोई भी विकल्प नहीं है। बाकी विकल्प यदि दिखते हैं तो वे सिर्फ भ्रम जाल ही साबित होंगे।
आजकल नेटवर्किंग कंपनियों का जाल पूरे देश में फैलाता जा रहा है। कंपनियां तमाम तरह के सब्ज बाग दिखाती हैं। सब्ज बाग भी ऐसा दिखाती हैं कि महीने-दो महीने में व्यक्ति की किस्मत बदल जायेगी। हो सकता है कि कुछ लोगों की बदली हो किंतु यदि विश्लेषण किया जाये तो कितनी कंपनियां स्थायी साबित हुई हैं? काम कोई भी अच्छा साबित हो सकता है किंतु इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी के सब्ज बाग में इतना न फंसा जाये कि भ्रम जाल साबित हो जाये। कुछ इसी प्रकार की स्थिति शेयर बाजार में भी देखने को मिलती है। तमाम लोग मालामाल हो जाते हैं तो काफी लोग बरबाद भी हो जाते हैं इसलिए भ्रम जाल से निकलकर वास्तविकता में जीने की कोशिश हमेशा करनी चाहिए।
इस प्रकार देखा जाये तो समाज भ्रम जाल के मकड़जाल में सर्वत्रा उलझा हुआ है और अधिकांश मामलों में यही देखने को मिलता है कि परिणाम ढाक के तीन पात नजर आते हैं। जीवन के हर मोड़ पर कदम-कदम पर आम जनता को स्वयं समझना होगा और अपने विवेक से ही कोई निर्णय लेना होगा। आजकल समाज में एक प्रवृत्ति यह देखने को मिल रही है कि चुनावी राजनीति में वही सफल हो पा रहा है जो सर्वदृष्टि से सक्षम है।
समाज में तमाम लोग ऐसे भी हैं जो चुनाव के समय अपने वोट की कीमत वसूलना चाहते हैं। अब सवाल इस बात का है कि जब वोट की कीमत वसूली जायेगी तो बाद में क्या होगा या हो सकता है, इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है इसलिए इस भ्रम से भी बाहर निकलना ही होगा कि जो आर्थिक रूप से सक्षम है, वह भ्रष्ट एवं बेईमान नहीं बनेगा क्योंकि आम तौर पर देखने को मिलता है कि भगवान ने जिसको जितना अधिक दिया है उसकी पैसे की भूख उतनी अधिक बढ़ती जा रही है। यह भी अपने आप में सत्य है कि गरीब व्यक्ति का भी अपना ईमान होता है इसलिए वह भी समाज के लिए बहुत बेहतर एवं उपयोगी साबित हो सकता है।
आज पूरे देश में प्रत्येक क्षेत्र में सटोरियों का भी भ्रम जाल खूब फैला हुआ है किन्तु क्या इस धंधे में सभी लोग आबाद हो रहे हैं, विश्लेषण किया जाये तो स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि इस धंधे में आबाद होने वालों से अधिक संख्या बरबाद होने वालों की है इसलिए इस भ्रम जाल से भी निकलने की आवश्यकता है कि सट्टेबाजी के माध्यम से बहुत पैसा कमाया जा सकता है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि जनता भ्रम जाल से निकलकर हकीकत को समझे और चुनौतियों का सामना करे। जिसकी जैसी स्थिति है, उसी के अनुरूप अपने जीवन को आगे बढ़ाये। आज इस वातावरण में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों एवं आदर्शों पर चलने की नितांत आवश्यकता है। जहां तक भारत सरकार की बात है तो उसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के स्वच्छता एवं स्वस्थ भारत के सिद्धांतों को अपना लिया है और उस पर चलने का यथासंभव प्रयास भी कर रही है किंतु महात्मा गांधी के एक और सिद्धांत को अपनाने की निहायत आवश्यकता है, वह है स्वदेशी पद्धति यानी पाश्चात्य जीवन शैली से मुक्त अपनी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति पर आधारित स्वदेशी यानी देशी या फिर यूं कहा जा सकता है कि अपनी पद्धति को अपना लिया जाये तो राष्ट्र एवं समाज को भ्रम जाल से उबारा जा सकता है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(लेखक राम-जन्मभूमि न्यास के
ट्रस्टी रहे हैं और भा.ज.पा. केन्द्रीय
कार्यालय के कार्यालय सचिव रहे हैं)