असुरक्षा का भाव पलायन का एक प्रमुख कारण


ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद जिस प्रकार अंग्रेजों एवं अंग्रेजियत ने हिन्दुस्तान को जकड़ लिया था, उससे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि हिन्दुस्तान अब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा ही रहेगा किंतु देशभक्त क्रांतिकारियों या यूं कहिए कि देशभक्ति से ओत-प्रोत देशवासियों ने अहिंसक एवं बाद में हिंसक तरीकों से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बिगुल बजाया तो अंग्रेेजी शासकों में असुरक्षा का भाव पैदा हो गया। अंग्रेजी शासकों में इस असुरक्षा के भाव को पैदा करने में नेताजी सुभाष चंद बोस, महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, लाला लाजपत राय, रानी लक्ष्मीबाई सहित तमाम ज्ञात एवं अज्ञात क्रांतिकारियों ने अपनी अलग-अलग भूमिका का निर्वाह किया है।

आजादी के दीवानों ने पहले तो अपनी बात अहिंसक तरीकों से कहनी शुरू की किंतु अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों एवं आंदोलनकारियों की आवाज को दबाने के लिए हर संभव प्रयास किया, इसके कारण क्रांतिकारियों ने हिंसा का भी रास्ता अख्तियार किया। जिन देशभक्त क्रांतिकारियों ने जनरल डायर जैसे लोगों की हत्या की, उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। देशभक्तों में आजादी के प्रति इस तरह की ललक देख कर अंग्रेजों एवं अंग्रेजी सरकार के मन में असुरक्षा का भाव पनपना स्वाभाविक था और उनमें पनपे असुरक्षा के इसी भाव के कारण भारत आजाद हुआ।

भारत के आजाद होने के पहले की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि असुरक्षा एवं अवसरों के अभाव के कारण भारत लगातार कमजोर होता चला गया। आजादी के बाद लगभग 1965 तक लोगों ने पढ़ाई-लिखाई कर ज्ञान प्राप्त किया एवं हर दृष्टि से अपने को योग्य बनाया किंतु युवाओं को उनकी योग्यता के मुताबिक न तो अवसर मिला और न ही काम।

शिक्षित लोग उचित अवसर न मिलने के कारण अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे और उनमें असुरक्षा का यह भाव लगातार बढ़ता ही गया किंतु पूरी दुनिया को जैसे ही यह ज्ञात हुआ कि हिन्दुस्तान में ‘ब्रेन’ यानी दिमाग का उचित उपयोग नहीं हो पा रहा है तो विदेशी कंपनियों ने भारतीय युवाओं एवं यहां के अन्य लोगों को अवसर देना प्रारंभ कर दिया। इसके लिए यदि देखा जाये तो शासन एवं प्रशासन के स्तर पर लचर नीतियां, लचर कानून एवं लचर वातावरण काफी हद तक जिम्मेदार रहा। इसी की वजह से लोगों में असुरक्षा का भाव पैदा हुआ।

विदेशों में पैसा जब ज्यादा मिलने लगा तो भारतीय युवा विदेशों के प्रति और आकर्षित होने लगे। भारत एवं विदेशों में आर्थिक पैकेज का तुलनात्मक दृष्टि से विश्लेषण होने लगा तो उसमें विदेशी कंपनियां सर्व दृष्टि से भारी पड़ने लगीं और भारतीय प्रतिभाओं का विदेशी धरती पर पलायन प्रारंभ हो गया और यह पलायन लगातार जारी रहा। भारतीय प्रतिभाओं

द्वारा विदेशों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये गये।

इन सबके बीच भारत में चल रही सरकारों की ढुलमुल नीति एवं राजनीतिक दूरदर्शिता के अभाव में बड़े-बड़े घोटालों के कारण संपन्न लोगों में भी असुरक्षा का भाव पैदा हुआ और वे भी स्वदेश के बजाय विदेशी धरती को अपना आशियाना एवं कर्मभूमि बनाने लगे। ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं, इसकी विस्तृत रूप से व्याख्या हो सकती है और इसके समाधान पर भी व्यापक रूप से चर्चा हो सकती है किंतु इसके पहले यह जान लेना जरूरी है कि हिन्दुस्तान छोड़कर जाने वाले करोड़पतियों की तादाद कितनी है?

एक दक्षिण अफ्रीकी  संस्था ‘न्यू वल्र्ड वैल्थ’ की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 7,000 करोड़पतियों ने भारत छोड़कर अपना स्थायी आशियाना किसी और देश को बना लिया जबकि वर्ष 2016 में यह संख्या 6,000 और वर्ष 2015 में 4,000 थी। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अमीरों का पलायन देश से लगातार बढ़ता जा रहा है। हालांकि, अमीरों का पलायन सिर्फ भारत से ही नहीं हुआ है बल्कि अन्य देशों में भी ऐसा देखने को मिल रहा है। वैश्विक स्तर पर यदि बात की जाये तो 2017 में 10,000 चीनी करोड़पतियों ने अपना देश छोड़कर अन्य देशों को अपना ठिकाना बना लिया। चीन के अतिरिक्त तुर्की के 6,000, ब्रिटेन के 4,000, फ्रांस के 4,000 और रूस के 3,000 करोड़पतियों ने अपना ठिकाना बदला है।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत एवं चीन दोनों में रहने के मानकों में लगातार सुधार हो रहा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में भारत और चीन के करोड़पति अन्य देशों को अपना ठिकाना नहीं बनायेंगे। दूसरे देशों को अपना आशियाना बनाने वाले देशों की सूची में आस्ट्रेलिया का नाम सबसे पहले स्थान पर आता है। वर्ष 2016 में अन्य देशों की तुलना में आस्ट्रेलिया में सर्वाधिक करोड़पति या एच.एन.डब्ल्यू.आई. बसे। उनकी यह संख्या 11 हजार रही। इस मामले में आस्ट्रेलिया लगातार दूसरे साल पहले स्थान पर रहा। इसका कारण वहां की बेहतर स्वास्थ्य नीतियां हैं, साथ ही वहां रहकर चीन, भारत, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम जैसे उभरते देशों में साथ व्यापार करना आसान है।

आस्ट्रेलिया के बाद सर्वाधिक करोड़पति अपना देश छोड़कर अमेरिका में बसे। उनकी यह संख्या 10,000 रही, वहीं ब्रिटेन में तीन हजार करोड़पति बसे। अमेरिका एवं ब्रिटेन के अतिरिक्त कनाड़ा, संयुक्त अरब अमीरात, न्यूजीलैंड और इजराईल में भी बड़ी संख्या में अन्य देशों से आकर करोड़पति बसे। रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि अगले दस वर्षों में भारत, फ्रांस, चीन, पूर्वी एशिया और अफ्रीका से सर्वाधिक करोड़पति ब्रिटेन में बसेंगे, वहीं ब्रिटेन के कुछ करोड़पति आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और अमेरिका जा बसेंगे। साथ ही भारत, चीन, वियतनाम, मारीशस और श्रीलंका संपत्ति के क्षेत्रा में बड़े बाजार के रूप में उभरेंगे।

करोड़पतियों के पलायन की बात की जाये तो पिछले साल सबसे अधिक फ्रांस से हुआ। वहां से 12 हजार करोड़पति दूसरे देशों में जा बसे। इसके बाद तुर्की और ब्राजील रहे। आशंका जताई गई है कि भविष्य में बेल्जियम, जर्मनी, आस्ट्रिया, ब्रिटेन और स्वीडन से भी बड़ी संख्या में करोड़पतियों का पलायन होगा। इसी संस्था की 2015 पर आधारित रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीयों के पास 5.2 लाख करोड़ डाॅलर की अनुमानित संपत्ति है। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस के बाद भारत सातवां अमीर देश बताया गया था, देश में 2015 में 2.36 लाख एन.एच.डब्ल्यू.आई. थे तो 2017 में यह संख्या 1.52 लाख थी।

यहां सवाल यह नहीं है कि करोड़पतियों का पलायन पूरी दुनिया में हो रहा है? प्रमुख बात यह है कि आखिर पलायन होता ही क्यों है? इस संबंध में विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि ‘असुरक्षा’ के भाव के कारण ही लोगों का पलायन होता है। पलायन चाहे अमीर का हो या गरीब का, असुरक्षा का

भाव चाहे कानून को हो या किसी अन्य प्रकार का किंतु मूल प्रश्न यह है कि क्या इस असुरक्षा के भाव को दूर नहीं किया जा सकता है? यदि पूरी तरह ‘असुरक्षा’ का भाव दूर नहीं किया जा सकता है तो कम तो किया ही जा सकता है। इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी वर्ग का पलायन रोकने के लिए कारणों की अच्छी तरह तहकीकात करके समाधान का काम किया जाये, इसी से दीर्घकाल तक भारत का भविष्य उज्जवल एवं समृद्ध होगा। हमें इस बात से कतई संतुष्ट नहीं होगा कि पलायन तो अन्य देशों से भी हो रहा है। इसे रोकने के लिए भारत को ठोस रणनीति बनानी होगी। विकास व रोजगार के अवसरों में संतुलन और सामंजस्य बनाना होगा।

देश से प्रतिभाओं का पलायन रोकने के लिए केन्द्रीय कैबिनेट ने उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों के लिए पीएम रिसर्च फेलाशिप (पीएमआरएफ) को मंजूरी दी है। आईआईटीज़, आईआईएसईआर और एनआईटी जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों के लिए देश की यह अब तक की सबसे बड़ी स्काॅलरशिप होगी। पीएमआरएफ के तहत चुने हुए स्काॅलर्स के लिए 70,000 रुपये से 80,000 रुपये तक मासिक छात्रावृत्ति और 2 लाख रुपये तक का वार्षिक रिसर्च ग्रांट दिया जायगा। केन्द्र सरकार ने तीन साल की अवधि के लिए 1,650 करोड़ रुपये फंड आवंटित करने को मंजूरी दी है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्राी प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक इस स्कीम को 2018-19 शैक्षिक सत्रा से लागू किया जायेगा और इसके लिए न्यूनतम स्कोर 8.5 सीजीपीए होना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने प्रतिभावान छात्रों का पलायन रोकने के लिए यह बेहतरीन पहल की है किंतु इसके साथ-साथ करोड़पतियों का भी पलायन रोकने के लिए सरकार को प्रयास करना होगा क्योंकि पलायन तो किसी भी तरह और किसी भी स्तर का देश के लिए अच्छा नहीं है। देश की प्रतिभा यदि देश के काम आती रहे तो यह बहुत अच्छी बात होगी। मेरा तो स्पष्ट रूप से मानना है कि जिस प्रकार सरकार छात्रों का पलायन रोकने के लिए छात्रावृत्ति दे रही है उसी तरह पूंजीपति प्रतिभाओं का भी पलायन रोकने के लिए सरकार को विशेष पैकेज की व्यवस्था करनी चाहिए, क्येांकि देश से पूंजीपतियों के पलायन से बेरोजगारी और बढ़ेगी। पलायन के लिए जिम्मेदार कारणों की बात की जाये तो मुझे मुख्य रूप से तीन कारण नजर आते हैं। ये तीनों कारण हैं, क्राइम, कानून व्यवस्था और सरकारी टैक्स नीति। यदि तीनों को बेहतर बना दिया जाये तो पलायन की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।

हालांकि, देश की बागडोर जब से श्री नरेंद्र मोदी के हाथ में आई है तब से इस दिशा में बहुत तीव्र गति से कार्य हो रहा है। मैं सिर्फ भारत की ही बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि पूरी दुनिया में जहां भी क्राइम अधिक होगा और कानून व्यवस्था बिगड़ेगी तो वहां लोगों में असुरक्षा का भाव पनपेगा। जहां तक व्यापार की बात है तो उसके लिए सरल टैक्स नीति बनानी होगी और बाबुओं के चंगुल में उलझने एवं फंसने से व्यापारी वर्ग को बचाना ही होगा। क्योंकि व्यक्ति जब मनौवैज्ञानिक एवं मानसिक रूप से अपने को फंसा हुआ पाता है तो पलायन की तरफ अग्रसर होता है। इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि कानून व्यवस्था एकदम चाक-चैबंद हो, टैक्स नीतियां लंबे समय के लिए ध्यान में रखकर बनाई जायें। अनिश्चितता एवं असमंजसता का वातावरण किसी भी कीमत पर न बनने पाये।

करोड़पति यदि दूसरे देशों में जाकर बस रहे हैं तो गरीब भी पलायन का दंश झेल रहे हैं तो पढ़ा-लिखा वर्ग भी परेशान है। ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति साइबर क्राइम की तरफ अग्रसर हो रहा है तो अनपढ़ एवं कम पढ़ा-लिखा झपटमारी की तरफ अग्रसर हो रहा है। बात सिर्फ यहीं तक ही सीमित नहीं है बल्कि, संपन्न वर्ग भी परेशान है। लोग अब बैंकों में पैसा जमा करने से घबराने लगे हैं, ऐसा किन कारणों से हो रहा है, इसके कारणों का विश्लेषण कर समाधान करने की आवश्यकता है। आधुनिकीकरण के यदि लाभ हैं तो नुकसान भी हैं।

गांवों से शहरों की तरफ यदि पलायन हो रहा है तो इसका मतलब यही है कि वहां असुरक्षा का भाव है, चाहे वह रोजगार को लेकर या स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर है या फिर किसी अन्य समस्या को लेकर। किसानों को यदि खेती घाटे का सौदा लगने लगी है तो उसके अंदर असुरक्षा का भाव पनपेगा ही। संपन्न वर्ग का यदि पलायन होता है तो उससे जुड़े लोग बेरोजगार होते हैं ऐसी स्थिति में बेरोजगारी की समस्या और बढ़ेगी।

कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि पलायन किसी भी तरह का होता है तो वह खतरनाक ही साबित होता है। कर्मठता और संपन्नता का पलायन और भी खतरनाक होता है। इससे सामाजिक असंतुलन भी पैदा होता है। पलायन का यह दंश कहीं भेड़चाल का रूप न ले ले, इसके लिए तुरंत सचेत होकर युद्ध स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। बांग्लादेश, म्यांमार एवं नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से यदि भारत में पलायन हो रहा है तो यहां समस्याएं और भी बढ़ती जा रही हैं। पलायन से इन देशों का कितना लाभ-हानि होता है, यह अलग बात है किंतु भारत के संदर्भ में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यहां बेरोजगारी और क्राइम की वजह से पलायन हुआ है। कश्मीर घाटी से यदि भारी संख्या में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ है तो उसका कारण कश्मीरी पंडितों में असुरक्षा का ही भाव था। इसी प्रकार जब पश्चिम बंगाल में माक्र्सवाद चरम सीमा पर था और ट्रेड यूनियनें काफी मजबूत थीं तो उद्योगपतियों, मारवाड़ियों एवं व्यापारियों ने अपने एवं अपने व्यापार को असुरक्षित समझकर देश के विभिन्न हिस्सों में पलायन किया था। इसके पीछे भी स्पष्ट रूप से अनुरक्षा का ही भाव था।

इसी तरह देश के कई राज्य सेे हैं, जहां देश के अन्य राज्यों के लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। यदि राज्यों की कानून व्यवस्था ठीक हो तो बहुत समस्याएं अपने आप सुलझ जाती हैं। उदाहरण के तौर पर इस समय उत्तर प्रदेश सरकार को लिया जा सकता है, क्योंकि इसके पूर्ववर्ती सरकारों के शासनकाल में जहां गुंडे-बदमाशों के हौंसले बुलंद थे और उनके डर से व्यापारी प्रदेश छोड़ रहे थे तो आज वहीं नामी-गिरानी गुंडे-बदमाश अपनी जान बचाने के लिए पुलिस के समक्ष समर्पण कर रहे हैं तथा जो अपराधी जेलों में बंद हैं वे अपनी जमानत करवाने से परहेज करने लगे हैं। सब कुछ वही है, बस सरकार और इच्छा शक्ति बदल गई है और उसका परिणाम सबके सामने आने लगा है। इसे कहते हैं, कानून का शासन।

वैसे, देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार एवं प्रदेश में भाजपा एवं उसकी सहयोगी दलों की सरकारें इस समय लोगों के दिलो-दिमाग से असुरक्षा का भाव समाप्त करने के लिए निहायत ही युद्ध स्तर पर कार्य कर रही हैं और इस कार्य में कामयाबी भी मिल रही है किंतु इस दिशा में सभी राज्य सरकारों को बेहतर कार्य करने के साथ-साथ केन्द्र सरकार के साथ बेहतर तालमेल की भी आवश्यकता है। इस काम में पार्टी एवं व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर कार्य किया जाये तो बहुत बेहतर होगा। इसी में राष्ट्र एवं सभी लोगों का भला है।

 

– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)

(लेखक राम-जन्मभूमि न्यास के

ट्रस्टी रहे हैं और भा.ज.पा. केन्द्रीय

कार्यालय के कार्यालय सचिव रहे हैं)