समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सभ्य घरों की महिलाओं पर यह कटाक्ष करके सभ्य और असभ्य के बीच विभाजन रेखा खींच दी है कि बड़ेें और उद्योगपति घरानों की महिलाएं ही महिला आरक्षण के मौजूदा प्रारूप के पारित होने पर सांसद और विधायिका चुनी जायेंगी और ये वे महिलाएं होगी, जिन्हें देखकर लोग सीटियां बजायेंगे। उनके उस कथन का निहितार्थ यह है कि सुंदर महिलाएं ही चुनी जायेंगी। यह कितना हास्यापद है, यह बताने की जरूरत नहीं हैं। क्या मुलायम सिंह यह चाहते हैं कि संसद में आरक्षण के बल पर अशिक्षित महिलाओं का जमघट हो,जो अपने पुरुष पतियों के दिशा-निर्देश पर काम करें। जिन महिलाओं को उचित शिक्षा नहीं मिली और जो सभ्य जगत के तौर-तरीकों से परिचित नहीं हैं। ऐसी महिला सांसद घर से बाहर संसद में भी पुरुषों के हाथ की कठपुतली बनी रहेंगी। यह तो महिला सशक्तिकरण नहीं हुआ। पहले महिलाओं को सुशिक्षित और राजनीति के दांव-पेंचों से अवगत कराया जाना चाहिए था और अगर ऐसा होता तो आज महिला आरक्षण विधेयक की जरूरत ही नहीं पड़ती।
उसका बेहतर विकल्प तो यह होता कि सभी राजनीतिक दल अधिकाधिक महिलाओं को चुनाव में उतारें। जो योग्य होंगी वे अवश्य चुनी जायेंगी। आज भी चुनी जाती हैं, बावजूद इसके कि राजनीतिक दल प्रायः उन्हें कमजोर सीटों पर चुनाव लड़ाते हैं। ये भी आरक्षण किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। आरक्षण प्रतिभा को निखारता नहीं, कुंठित करता है। अगर आरक्षण प्रतिभा को निखारता और गरीबी-अमीरी की दूरी को कम करता, तो संविधान के लागू होते समय ही आरक्षण की सुविधा ले रहे अनुसूचित जाति-जनजाति के लोग अपनी इस तीसरी पीढ़ी में दलित नहीं रहते। वे समाज में बराबरी का दर्जा पा चुके होते और फिर उनके लिए आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। इसी तरह पिछड़ों के लिए लागू आरक्षण को दो दशक से अधिक हो चुके हैंअर्थात उनकी भी एक नयी पीढ़ी अधेड़ अथवा व्यस्क हो चुकी है, किंतु सभी पिछड़ों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया। एक जाति विशेष ने आरक्षण का लाभ अधिकांश अपने खाते मंे डाल लिया है।
अनुसूचित जाति-जन जाति के आरक्षण का भी यही हश्र हुआ। उनमें भी आरक्षण एक अथवा कुछ ही जातियों के बीच सिमट गया है। स्पष्ट है कि आरक्षण दलित और पिछड़ी जातियों की समस्यायों का हल नहीं है। हल है सभी दलितों और पिछड़ों को प्रतियोगिता स्तर तक निःशुल्क शिक्षा सुविधाएं प्रदान करनी ही हैं। शिक्षा प्राप्त करने के दौरान छात्रा के मन में यह भाव होना चाहिए कि उच्च शिक्षा प्राप्त करके उसे प्रतियोगिता उतीर्ण करके ही सरकारी नौकरी प्राप्त करनी है। आज भाव यह है कि नौकरी तो मिल ही जायेगी, बस किसी तरह पास हो जाना चाहिए। यह सोच ठीक नहीं है। इससे निजात पाना ही समस्याओं का समाधान है।
सच्चाई तो यह है कि राजनीतिक दल महिलाओं की प्रतिभा को निखारना नहीं चाहते, बल्कि वे उनके वोट बटोरना चाहते हैं। वे जानते हैं कि यह विधेयक लोकसभा में पारित नहीं होगा। यादव त्रायी तो उसे पेश भी नहीं होने देना चाहती। महिलाओं को अपनी प्रतिभा के बल पर ही आगे बढ़ना होगा। वैसे भी कानून किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है।