अयोध्या फैसले ने राम-रहीम को बराबर वजन पर रखा और न्याय का पलड़ा किसी ओर झुका नहीं। भारतीय अदालत ने सद्भाव, शांति और सौहार्द की जो मशाल जलायी है वह पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गयी है। इस फैसले ने देश की धर्मनिरपेक्षता के दीपक को निष्कम्प प्रज्वलित रखा और यह संदेश दिया- ‘ मधुर-मधुर मेरे दीपक जल, पल-प्रतिपल न्याय का पथ आलोकित कर।’
यह पंक्ति सुप्रसिद्ध कवयित्राी महादेवी वर्मा की है, जिसमें एक शब्द हटा कर केवल न्याय जोड़ा गया है। इस फैसले के बाद संपूर्ण देश के दोनों संप्रदाय के लोगों ने जिस सद्भावना, उदारता और संयम अपने आचरण में दिखाया है, वह धर्मनिरपेक्षता, न्यायपालिका और गांधी के प्रति हमारी आस्था की नींव को सुदृढ़ करता है। मैं महात्मा गांधी की चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि 2 अक्टूबर को उनकी जयंती है। हमने उस जयंती के आलोक में प्रेरणा ली है और वे जो सांप्रदायिक सद्भाव का सपना देखते थे, उसे हमने इस मौके पर साकार किया है। मुझे काॅलिंस और लापियर की पुस्तक ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ की याद आ रही है, जिसमें यह लिखा गया है कि ‘उनकी उत्कट इच्छा थी कि नया भारत एशिया को और सारे विश्व को मनुष्य को इस दुविधा से बाहर निकालने का मार्ग दिखाये।’ इस दुविधा से उनका तात्पर्य था साम्प्रदायिक हिंसा-अहिंसा। जब देश आजाद हुआ तब भी वे स्वतंत्राता के आह्लाद क्षणों में आयोजित समारोह में सम्मिलित नहीं हुए, प्रत्युत अहिंसा की उफनती तेजाबी भावना को शांत करने के लिए आमरण अनशन द्वारा प्रयास कर रहे थे।
वास्तव में हमारे देश के इतिहास में यह बात महत्वपूर्ण है कि हम गांधी के जीवन-दर्शन ओर सांप्रदायिक सद्भाव को संजोये रखने में सफल हुए हैं। यह उनके सपनों और उपदेशों की प्रासंगिकता है कि आज भारत के तरक्की करने के बावजूद उनका वह विचार हमारी सांसों में जीवित है।
उच्च न्यायालय के फैसले से विभिन्न राजनैतिक दलों की सहमति-असहमति हो सकती है, उनकी कुछ मांगे हों… तो उसके लिए न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया है, उसका प्रावाान है। वे उच्चतम न्यायालय में अपील कर फरियाद कर सकते हैं। लेकिन इस देश के लोगों ने, खास कर नयी पीढ़ी ने, इसको बहुत महत्वपूर्ण नहीं मान कर सांप्रदायिक सद्भाव के साथ देश में अमन-चैन बनाये रखा। देश की जनता ने मुट्ठी-भर लोगों के जहरीले मंसूबे को पनपने नहीं दिया जो अयोध्या-विवाद को ऐसी जमीन बनाना चाहते थे, जहां वे एक ऐसा बीज बोते जो अंकुरित हो कर देश में कांटों की झाड़ी बन जाता।
महात्मा गांधी का व्यक्तित्व ऐसा नहीं था, जिसके आधार पर उन्हें कोई प्रचंड-प्रखर क्रांतिकारी कहे, लेकिन वे मुक्ति-प्राप्ति के लिए ऐसे कोमल क्रांतिकारी हुए जिनके अस्त्रा-शस्त्रा का नाम था अहिंसा, सद्भाव और सौहार्द। उस शताब्दी में संपूर्ण विश्व में हिंसा की आग जल रही थी, जिसमें ठंडे छींटे लेकर भारत को आजादी दिलायी थी गांधी ने। अयोध्या-फैसले के समय मुझे वे याद आ रहे हैं, जिन्होंने प्रेम-सद्भाव का जो दीप जलाया था उसे आज भी हमने सतत जलाये रखा और पूरी दुनिया में उसका आलोक विकीर्ण किया। अयोध्या-फैसले पर हमने जो संयम, सद्भाव और सौहार्द बनाये रखा है, उससे यह साबित होता है कि गांधी आज भी हमारे लिए अर्थपूर्ण, प्रेरक ओर प्रासंगिक हैं।
त्र अमरेन्द्र कुमार